"चीनी-चीनी' -The 1962 Chinese Aggression
“बिन चीनी सँसार में, नहीं मिठाई कोय, चीनी बढ़े जो रक्त में,मधुमेह ही होय।“
ये चीनी बहुत ही रोचक पदार्थ है, उसके बिना किसी त्योहार का आनन्द नही है। बचपन में एक नारा सुना था "हिंदी-चीनी भाई-भाई",परन्तु इसका अर्थ समझ में नहीं आया था। पुनः बड़ों को बहस करते सुनती थी कि चीन और पाकिस्तान के साथ लड़ाई हो रही है, तिब्बत पर चीन ने अधिकार कर लिया आदि-आदि I चूँकि पूरे मोहल्ले में एक ही रेडियो था तो घर में औरतों की और बरामदे पर पिताजी के दोस्तों की भीड़ समाचार आने के समय लगी रहती थी। अजीब समय होता था, भीड़ में सभी लोगों की भावनाएँ एक सी ही होती थी,"देश के दुश्मन को कैसे हराया जाए"।
कभी -कभी बड़े से नक्से को बिछा कर उस पर एक-दूसरे को समझाते देखती थी, अपने लिए ये बातें तिलस्मी दुनियाँ से कुछ कम नहीं थी, परन्तु जब मौका मिलता सुनती बहुत ध्यान से थी ताकि अन्य बच्चों की टोलियों में अपने सनसनी-खेज, अधकचड़े ज्ञान का उदबोधन कर, आज कल के नेता "राहुल गाँधी" की तरह ही कुछ भाषणबाजी कर पाऊँ।
आज उन बातों को याद कर काफी हँसी आती है, खास कर जब काँग्रेस के किसी प्रमुख नेता या "राहुल" का कोई ट्वीट किसी 'अंतरराष्ट्रीय' या देश के 'अंदरूनी समस्याओं' के बारे में पढ़ती हूँ। मोदी जी पर तंज कसने वाले राहुल या कांग्रेसी ये भूल जाते हैं कि 'चीन' का भारत के बॉर्डर के अत्यन्त करीब आ जाना या भारत के बहुत बड़े भूभाग, अक्साई चीन या तिब्बत पर कब्जा उन्हीं के खानदान की कारस्तानी का हिस्सा है।
पाकिस्तान और चीन दोनों की विस्तारवादी नीति को उत्प्रेरण, अवसर एवं सुभीता देने का कार्य भी काँग्रेसियों की स्वार्थी, सामंतवादी-नेहरू-खान-गाँधी-परिवार की ही देन है। सीमा पर अपनी सेनाओं को सुव्यवस्थित सुविधाओं से अभावग्रस्त रख, घुसपैठियों के अन्दर आने पर भी उसके खिलाफ सख्त कदम न उठाना, दुश्मनों के मनोबल को बढ़ाता रहा है।
आज जब मीडिया की अधिकता के कारण हर प्रकार की सकारात्मक तथा नकारात्मक खबरें हिंदुस्तानियों की समझ में आ रही है, तो कोंग्रेसियों के सारे गुप्तरोग भी सरेआम जनता के सामने आ रहे हैं।
माओबादी ड्रैगन का विस्तारवाद, पाकिस्तानियों का जिहादी आतंकवाद या क्रिस्चियनिटी धर्मपरिवर्तन का धूर्तता भरा पाखंड ये सभी काँग्रेसियों की खासकर अंटोनोनियो माईनो की क्रूर-धूर्त शातिर चालबाजियों का ही परिणाम है। एक कहावत है :-
"अधिक लोभ मत कीजिए, अधिक लोभ दुःख खान, अधिक लोभ से शीश पर, चलता चक्र महान।"
परन्तु ये कहावत देश को लूट कर खाने वालों को या विदेशी-दुश्मन देशों से गुपचुप समझौता करने वालों को याद नहीं रहा, शायद यही कारण है कि वे अपनी उदरपूर्ति के लिए बेहिसाब समझौते कर स्वयँ के अर्थ का बहीखाता बढ़ाने में लगे रहे हैं।
स्वादिस्ट मिष, मक्खन, मिष्टान्न भोजन से निरंतर उदरपूर्ति होने से बदहजमी, उच्चरक्तचाप, मधुमेह आदि होना भी स्वाभाविक ही है। इतनी सारी बीमारियों को दूर करने के लिए इन्सुलिन का इंजेक्शन, करेले का रसपान और अन्य दवाईयों के कड़वी खुराकें स्वाभविक रूप से आवश्यक है।
अब इस एकछत्र हिटलरवादी परंपरा का पालन करने वाली माईनो परिवार के लोंगों को स्वयँ के विभिन्न तथा गुप्तरोगों का इलाज कष्टप्रद प्रतीत हो रहा है। सदैव शहद खाने वाले माईनो परिवार उर्फ काँग्रेस-परिवार को कई कड़वी दवाईयाँ मिलने के कारण उनका मानसिक संतुलन भी बिगड़ रहा है जिसका प्रमाण माईनो परिवार तथा उनके चाटुकारों द्वारा दिये गए अटपटे वक्तव्य, ताने और धमकियाँ हैं।
बी.जे.पी शाशित प्रदेशों में भी लोगों को गुमराह करने, बेतुकी बयानबाज़ी, आगज़नी, दंगे, हिन्दुओं एवं हिन्दुओं के धर्मस्थल पर लोकतांत्रिक आजादी के नाम पर 'ये' (कोंग्रेस पालित आतंकी गुण्डे) तोड़-फोड़ करवाने के लिए आमादा हैं।
कांग्रेस शाशित या वामपंथी सरकार द्वारा शाशित प्रदेशों में हिन्दुओं के मानवाधिकार, विचारों की अभिव्यक्ति, प्रेस एवं राष्ट्रवादी पत्रकारों को वहाँ के सरकार के विरोध में या उनके कुकर्मों के बारे में बोलने की आजादी नहीं है। कोंग्रेसियों के खास कर माईनो परिवार के विरुद्ध बोलने वालों की पिटाई, हत्या, जेल मामूली बातें हो गयी हैं। यही लोग मोदी को गाली देते हैं। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर भड़काऊ और देश को तोड़ने वाली बयानबाजी करते हैं। हिन्दुओं के खिलाफ जहर उगलते हैं।
गुंडागर्दी, हिटलरशाही के प्रतीक माईनो और उसके समर्थकों द्वारा हिन्दुओं की आस्थाओं को चोट पहुँचाया जा रहा है, उनके इलाकों में हिन्दुओं की औरतें-बेटियाँ या दलित सुरक्षित नहीं हैं। उनकी आवाज़ को कुचला जा रहा है, पुलिस वालों के सामने भी हत्यायें होती है, दंगाईयों, गुण्डों, जिहादी इस्लामियों की गलतियों को नजरअंदाज किया जाता है।
आतंकवाद,पाकिस्तान-चीन आदि की भाषा बोलने वाली पार्टियों के नेता संविधान, देश के कानून, सरकारी सम्पत्तियों, हिन्दुओं, हिन्दू-मंदिरों को निरन्तर अपमानित, लांछित और ध्वंसिकरण का अभद्र कार्य कर रहे हैं। यही ओछी प्रवृतियों वाले लोग जब संविधान एवं जनतंत्र की रक्षा की बात करते हैं तो अत्यंत हास्यास्पद ही लगता है।
बेबसी का फायदा उठाने वाले कट्टरपंथी-प्रवृत्तियों वाली समुदाय जो अपनी जल्लादी प्रवृत्तियों के कारण कहीं भी किसी भी देश में आतंकियों, बलात्कारियों, हत्यायों और अराजकता का पर्याय बन रहे हैं वो भला किस जनतांत्रिक देश में रहने के भी हकदार होते हैं और किसका भला कर सकते हैं? ये तो सहनशीलता की पराकाष्ठा को चरितार्थ करने वाले हिंदुस्तान के हिन्दुओं की ही उदारता है कि घुसपैठियों और विदेशियों को देशवासियों की ही संज्ञा दे कर, सुविधा और संवैधानिक अधिकारों से संवार कर संरक्षण भी दिया हुआ है। किसी इस्लामिक या ईसाई देशों में तो ऐसे मज़हबी कट्टर समुदायों को घुसने भी नहीं दिया जाता है न ही नागरिकता दी जाती है।
इस्लामी या ईसाई समुदाय की अपनीअंदरूनी मजहबी या रिलीजियस बुराईयाँ इन्हें अंदर से खोखला कर, बेलगाम- बर्बरता का बादशाह बना चुकी है। संस्कारहीन, क्रूर प्रवृत्तियों के पोषक समुदाय की संख्याओं की बढ़ोतरी भी सिर्फ क्रूरता और बर्बरता को ही बढ़ाती है जो उदारवादी हिन्दुओं के लिए खतरनाक और जानलेवा होता जा रहा है।
ये ईसाइयों और मुसलमानों के जलन की हीन भावना ही है कि डेढ़ या दो हज़ार साल के उम्र वाले मझहब/रिलिजन द्वारा हिन्दुओं और हिन्दू-सनातन-धर्म को जो लाखों वर्षों से अपनी श्रेष्ठता के कारण जमीन से जुड़ी हुई है, उसे नीचा दिखाना और खत्म करना चाहती है। परिणाम का तो पता नहीं परन्तु इतना तो कहा ही जा सकता है कि -"बुरे काम काम का बुरा नतीजा"।
"लूट-खसोट, गुंडागर्दी, अतिक्रमण, बालात अवैध अधिग्रहण से अमीर तो बना जा सकता है परन्तु शान्ति के समर्थक, सनातन-हिन्दू-धर्म के सिद्धांतों को ,विचारों को अपनाए बिना न तो मानवतावादी संस्कार सुरक्षित है न ही प्रकृति, पृथ्वी, विश्व या अंतरिक्ष।
किसी भी देश में सुव्यवस्थित शासन व्यवस्था बनाये रखने के लिए धर्म के नाम पर मज़हबी उन्माद, शक्तिशाली देशों के छद्म से परिपूर्ण विचार, विस्तारवादी राजनीति तथा आक्रांतक प्रवृति का त्याग नितान्त आवश्यक है। पड़ोसी देशों के साथ भी संबंध तभी अच्छे हो सकते हैं जब पड़ोसी देश मित्रता के नाम पर पीठ में छुरा घोंपने, धोखा देने, देश के अंदरूनी हिस्सों में अलगाववादी समूहों को उकसाने या आतंकवादी गति-विधियों को बढ़ावा देने के कुत्सित कार्य न करें जैसा कि पाक या चीन द्वारा किया जा रहा है।
सम्पूर्ण विश्व में राजनीतिक संतुलन, शान्ति, समृध्दि, वसुधैव कुटुम्बकम की भावना का प्रत्यारोपण, शांति का उपासक, संतुष्टि का पोषक, सत्य-सनातन सदियों पुरानी हिन्दू-वैदिक-धर्म की मान्यताओं के अनुशरण से ही सम्भव हो सकती है। मानवतावादी भावना का विकास जो हिन्दू धर्म का मूल मंत्र है, उसी के द्वारा ही मानवाधिकारों को भी सुरक्षित रखा जा सकता है। आतंक, बालात, बर्बरता पर आधारित मझहब, रिलिजन या विचारधारा कभी मिठास या शान्ति नहीं ला सकती है।
सत्य-सनातन-प्राकृतिक-पुरातन वैदिक संस्कारों से परिपूर्ण संतोष और अपरिग्रह की भावना से परिपूर्ण धर्म ही "चीनी" की बीमारी को खत्म कर, जीवन में चीनी की मिठास घोल सकती है।