मंदिरों परिसरों में जानलेवा हादसे
३० मार्च की इंदौर के बलेश्वर झूलेलाल महादेव मदिर में हुई दुर्घटना में कम से कम ३६ लोगों की जान गयी और कई लोग घायल हुए।यह दुर्घटना मंदिर परिसर में एक कुँए के ऊपर बनाए फर्श के धँस जानें से हुआ है।उल्लेखनीय है कि कुँए के ऊपर यह बनाया गया फर्श तब धँस गया जब इसके ऊपर बड़ी भीड़ थी।भक्तों को तो शायद पता भी न हो की उस सतह के नीचे कुआं था परन्तु वहाँ रख-रखाव कर रहे लोगों या प्रवन्धकों को तो पता होना चाहिए था कि उस जगह सुरक्षा की दृष्टि से कितने लोगों को जानें की अनुमति होनी चाहिए थी।इसीलिए मंदिर प्रशासन पर वहाँ के पुलिस स्टेशन में प्राथमिकी दर्ज कराई गयी है।
भारत के कुछ प्रसिद्द मंदिरों में अक्सर हादसे होते रहे हैं और हाल के वर्षों में हुए कुछ घटनाओं के विवरण निम्नलिखित हैं:-
इन सब के जिम्मेदार वहाँ के मंदिर ट्रस्ट और वहाँ की सरकारी तंत्र रहीं हैं। ऐसा बहुत ही कम हुआ है कि बड़े हादसे के बाद भी किसी पर कोई कानूनी कार्यवाही की गयी हो।सबसे ज्यादा हादसा भीड़ में भगदड़ के बाद ही हुआ है।कुछ मंदिरों के द्वार बहुत ही संकरे है जिनमें से कुछ सिमित लोग ही आ जा सकते है।फिर ऐसे मंदिरों के गर्भगृह के प्रवेश द्वार बड़े क्यों नहीं किए जाते ? या फिर प्रवेश और निकास अलग अलग क्यों नहीं किए जाते ? अनेकों मंदिरों के गर्भ गृह छोटे हैं।इनमें से जितनों में आगंतुकों की संख्याँ ज्यादा हैं ऐसे गर्भ गृहों या उसकीं दीवारों में परिवर्तन या सुधार क्यों नहीं किया जाता ? यह तो सुरक्षा एवं सुविधा दोनों के लिए अत्यावश्यक है।
मंदिर परिसर में अत्यधिक भीड़ का जमा होना भी खतरे की घंटी है।अधिकाँश मंदिरों और पर्यटन स्थलों भगदड़ का कारण अत्यधिक भीड़ में एक छोटी सी अफवाह होती है। अतः वहाँ के संयोजकों की जिम्मेवारी होती है कि भीड़ को नियंत्रित किया जाए और जहाँ तक हो सके प्रवेश और निकास द्वार अलग अलग रखे जाएँ चाहे वे अगल बगल ही क्यों न हो।
2015-१६ में ऊपर दिखाए गए NCRB के आंकड़े बताते हैं कि भारत के मंदिरों और पर्यटन स्थलों में ज्यादातर मौत भगदड़ में कुचले जानें के कारण हुआ है और ऐसी भगदड़ की घटनाएं कुछ स्थानों में बार बार होतीं हैं।यह बड़े शर्म की बात है कि स्थानीय सरकार सुरक्षा के लिए यथोचित उपाय नहीं करती।
मोदी राज में जहाँ मंदिर परिसरों की बड़े पैमाने पर सौंदर्यीकरण हो रहा है, कुछ जगहों में हादसों के द्वारा मृत्यु अवांछित हैं।अगर काशी विश्वनाथ, महाकाल और बौद्ध ‘तीर्थ कॉरिडोर’ बन रहे हैं तो ऐसे मंदिरों का भी जीर्णोद्धार और परिवर्तन या सुधार आवश्यक है जहाँ हादसे से भक्तों व आगंतुकों की मौत हो जाती है।