anger

आक्रोश

पत्रिका का मुख्य उद्देश्य आक्रोश के विभिन्न पहलुओं को व्यक्त करना है।आखिर आक्रोश क्यों,? किसलिए? किसके लिए?इसका सन्दर्भ क्या है?कौन फायदा उठा रहा? यूं तो जब आक्रोश भीड़ के द्वारा व्यक की जाती है तो सामान्य तौर पर भीड़ की सोचने- समझने की क्षमता समाप्त हो जाती है और जिस प्रकार जानवरों के झुंड में से एक ओर कोई दौड़ता है तो पूरी भीड़ संक्रमित हो उधर ही दौड़ पड़ती है।कुछ ऐसा ही बर्ताव इन्सानों की भीड़ भी करती है और परिणाम स्वरूप तोड़ -फोड़ , आगजनी, मार- पीट जैसी असामजिक घटनाऐं सामने आती है.

सामान्यतः गुंडे, लुटेरे फ़ायदा उठाते है। नेताओं में भी जनता को बरगलाने वाले नेता अपना उल्लू सीधा करते हैं। आधे से ज्यादा आक्रोश जताने वाले भीड़ में सम्मिलित लोगों को पूर्ण बातों की जानकारी भी नहीं होती है। सभी जा रहे हैं "विरोध प्रगट करने बस इसलिए जाना है"....किसी ने आधा सच आधा झूठ फैलाया, भोली जनता को उकसाया, प्रदर्शन करने के लिए थोड़े पैसे दिए इसीलिए भीड के साथ चलो चलें!...चाहे वह मुद्दा कुछ भी हो। बेवकूफ जनता सिर्फ मोहरा होती है। प्रदर्शन किसी वक्तव्य या नेता के खिलाफ हो या उसके प्रति समर्थन की भावना हो भेढ़ मनोवृति की जनता प्रदर्शन कारी भीड़ में शामिल हो स्वयं का नुकसान कराती है।

कांग्रेस के हाथों से सत्ता फिसलते ही भारत में विपक्षियों के दल में शामिल भ्रष्टाचारियों, गद्दारों , आतंकियों को पालने वाले, हिन्दू विरोधी और देश को अंदर ही अंदर खोखला बनाने वाले नेताओं में खलबली मच गयी। पहले सत्र में विपक्षियों की उम्मीदों के विपरीत अकर्मक की जगह एक सकारात्मक सक्रिय सरकार के कारनामों ने जनतांत्रिक ढंग से उन्हें दुबारा ( मोदी को) सत्ता में ला दिया। विपक्ष विशेष तौर पर कांग्रेस के लिए यह अत्यंत दुःख दायी था। धूर्त नेताओं को सत्ता में रह झूठ और लूट की ऐसी आदत पड़ी थी कि उन्होंने छल - छद्म, झूठ, दंगे फसाद को खुले आम अपना हथियार बना देश विरोधी गति विधियों में शामिल हो सरकार के विरुद्ध मोर्चा खोलने का काम नित्य नए तरीके से करने लगी है।

संविधान के तहत किसी कानून की सच्चाई के प्रति शांति से सामान्य जनता को जागरूक कर उसके सकारात्मक एवं नकारात्मक पहलू को समझाया जा सकता है। गणतांत्रिक देशों में अपनी भावनाओं को व्यक्त करने की स्वतंत्रता है, परन्तु जहां कोई अटपटे, आधे अधूरे वक्तव्य देश, समाज या संप्रदाय विशेष का नुक़सान करता है तो वहीँ आक्रोश में अनुचित व्यवहार हमारी गणतांत्रिक सिद्धांतों का अपमान करती है। कई देश विरोधी नेताओं के अनुचित वक्तव्य भारत देश छवि को भी धूमिल करने के साथ ही नेताओं के छिछोड़ेपन को भी प्रदर्शित करती है जो सहज ही अस्वीकार्य है।....

आज के समय एवं काल के संदर्भ में देखा जाए तो कई सांसदों और विधायकों ने हिन्दुधर्म , हिन्दुओं और मोदी को नीचा दिखाना ही अपना मुख्य ध्येय समझ रखा है। ऐसा लगता है कि उनकी राजनितिक सीढ़ियों की पदोन्नति का पैमाना हिन्दू एवं मोदी को निरन्तर अपमानित करने की क्षमता पर ही निर्भर करती है। ऐसी स्थिति में हिन्दुओं का आक्रोश स्वभाविक है।

लगभग प्रतिदिन के तर्ज पर हिन्दू एवं दलित लड़कियों का मुसलमानों द्वारा किये गए प्रताड़ना, हत्या, बलात्कार आदि घटनाओं को नजरअंदाज कर विपक्षी नेताओं के वक्तव्य की सुई एवं आक्रोश सिर्फ बिलकिस बानो और आसिफा के नामों पर अटकी रहती है। कांग्रेस शासित प्रदेश में आये दिनों बढ़ती मॅहगाई, मनमाने क्षेत्रों पर कर लगाने की घटना, आगजनी, बॉम्ब ब्लास्ट , दंगे , दुष्कर्म, आदि पर चुप्पी साधने वाली प्रियंका वाड्रा, " बी जे पी" शासित राज्यों में घटित किसी घटना के प्रति मुखर और आक्रामक हो उठती है। नेहरू, इंदिरा , राजीव के रहनुमा बने कोंग्रेस ने निरन्तर संविधान को अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए तोड़ने मरोड़ने का कार्य किया है। आज भी इनका रवैया वही घिसा - पिटा है। यह बीजेपी सरकार द्वारा किये गए कार्यों में व्यवधान डालने का काम , न्यायालय, इ. वी. एम. आदि पर दोष देते हुए यहाँ तक कि संविधान को तोड़ने - मरोड़ने का कार्य बड़ी ही कुशलता से करते हैं।

तर्क , तथ्य , सरकारी संस्थान यदि छद्म गाँधी परिवार की स्वार्थपूर्ति करती है तो ठीक अन्यथा उसके विरोध में झूठ फैलाते हुए सडकों पर गुण्डागर्दी करने उतर आते हैं। कोंग्रेसियों के लिए संविधान हिन्दुओं को लूटने और उन्हें नुकसान पहुँचा कर सिर्फ मुस्लिम समुदाय को खुश करने के लिए हथियार के सामान है जिसे वे पॉकेट में ले कर घूमते रहते हैं। अगर आज संसद सत्रों का जीवंत प्रसारण हमें देखने के लिए न मिलता होता तो कांग्रेस के कुकर्मों, संविधान में की गयी हेराफेरी, हिन्दू विरोधी गतिविधियॉं, देश को आर्थिक नुक्सान पहुँचाने वाले गद्दार नेताओं को हम पहचान ही नहीं पाते । कोंग्रस ने सदैव अपनी करनी से हिन्दुओं के साथ छल किया है। प्रश्न तो यह भी उठता है कि जिस समस्या से पीछा छुड़ाने के लिए धर्म के आधार पर देश का विभाजन किया गया वह समस्या सुलझी क्यों नहीं ? हिंसक मुस्लिम समुदाय और अहिंसक हिन्दू समाज एक साथ नहीं रह सकते हैं इसके बावजूद भारत को हिन्दू राष्ट्र क्यों नहीं बनाया गया? आज भी स्वतंत्र भारत में बहुसँख्यक हिन्दू समाज अल्पसंख्यक मुस्लिम समाज द्वारा ही प्रताड़ित क्यों है? इस सभी बातों के लिए कांग्रेस जिम्मेदार है क्योंकि स्वार्थी नेहरू के दोहरी नीतियों ने बहुसँख्यक हिन्दू समाज को अपने दोगले कृत्यों तथा विभाजन की निति के तहत धोखा देते हुए भारत में भी दोयम दर्जे का नागरिक बना कर रखा है।

कई राज्यों में हिन्दुओं को न्याय के लिए आवाज उठाने पर भी उन्हें जेल में डाल दिया जाता है। आक्रोश है ! कि देश विरोधी भावनाऐं फैलाने वालों के लिए जो एकतरफा बयान देते हैं, डैमोक्रेसी के नाम पर सिर्फ एक ही धर्म को जरुरत से ज्यादा सपोर्ट करते हैं, हिंदुस्तान में हिन्दुओं की प्रताड़ना पर भी चुप्पी क्यों साध लेते हैं। पुलिस और सेनाओं के जवानों पर पथराव करने वालों को संरक्षण देना चाहते हैं, देश विरोधी कार्य कलापों में अभिलिप्त युवाओं को स्वाभिव्यक्ती की पनाह देते हुए प्रोत्साहित करते हैं। आज अगर बी. जे. पी. पुलिस या सेना इन पत्त्थर बाजों, पेट्रोल बम, फेंकने वाले, आगजनी करने वालों के खिलाफ अपने और मासूम जनता की सुरक्षा के लिए कोई कदम उठाती है,तो उसे असंवैधानिक, अमानुषिक साबित करने की कोशिश करते हैं। आक्रोश तो स्वाभाविक ही है कि अन्य देशों में खास कर मुस्लिमों के देश में प्रताड़ित हिन्दुओं के लिए न तो किसी प्रकार की आवाज़ उठाते है,न ही किसी देश की एम्बेसी के सामने प्रदर्शन करते है। मानवाधिकार वालों की कैसी दोहरी नीति या मानसिकता है कि इन्हें हिन्दुओं को दी जाने वाली प्रताड़ना दिखती ही नहीं है।

आक्रोश होता है अपने ही देश के नेता देशविरोधी नारे लगाते हैं, आतंकवादियों की सुरक्षा चाहते हैं, स्वार्थ सिद्धि के लिए देश के संविधान का सर्वाेच्च न्यायालय के निर्णयों का अपमान करते है, सहिष्णु हिन्दुओं के बीच जहां वे हर प्रकार की सुविधाओं का उपभोग करते हैं,वहीं हिन्दुओं को आतंकी कहने की निर्लज्जता प्रदर्शित करते हैं। आक्रोश होता है जब हिन्दुस्तान में ही अगर कुछ हिस्सों में ,मुस्लिम जनसंख्या बहुतायत में है तो वहां किसी हिन्दू परिवार को तरह -तरह से परेशान किया जाता है,जगह छोड़ कर चले जाने के लिए बेबस किया जाता है। कांग्रेस सरकार इनके प्रति सदैव चुप्पी साधे रही है। कांग्रेसियों की दोहरी नीति के तहत बहुत सी बातें दबाई गई हैं,,कुछ पत्रकारों को सच्चाई व्यक्त करने से भी वंचित रखा गया है, उन्हें जेल में भी डाला गया है, कहाँ चली जाती है समाचार पत्रों की स्वतंत्रता एवं स्वायत्तता।

आक्रोश है ! कि लियाकत अली के साथ किए गए गए समझौते पर जब पाकिस्तान ने वादा - खिलाफी की, बांग्लादेश ने वादा खिलाफी की तो इस बात को प्रदर्शित नहीं किया गया,,.....कहीं प्रदर्शन भी नहीं किया गया परन्तु आज जब पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बग्लादेशों से आए हुए प्रताड़ित लोगों को बसाने का प्रयास किया जा रहा है तो यहां रहने वाले मुस्लिम, कांग्रेसी, उनकी सहायक पार्टियां विरोध प्रदर्शन कर रहीं है।शर्म आती है ये सोच कर कि इन्हीं खून चूसने वाले गद्दारों को हमने अपनी अज्ञानता के कारण वोट दिया, उन्हें सिर - आँखों पर बिठाया।

बंटवारे के समय पाकिस्तान में हिन्दुओं का सिक्खों सबकुछ छीन लिया गया परन्तु यहां से जाने वाले मुस्लिमों की संपत्ति वकफ बॉर्ड को सौंप दी गई जो अब भी उन्हीं लोगों को फ़ायदा पहुंचा रही है। आक्रोश स्वाभाविक है कि आज तक घाटी से भागे हुए पंडितों को न्याय नहीं मिल पाया है ,कांग्रेस की सरकार ने टैक्स देने वालों के पैसों का मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति के लिए इस्तेमाल किया है । सिर्फ मुस्लिम समुदायों को खुश करने के लिए हिन्दुओं की आवाज को दबाया गया है, उन्हें इस्लाम या क्रिसचियनिटी में तब्दील करने के लिए बढ़ावा दिया गया है। अपनी ही, विशेष कर वैदिक संस्कृति को कुचलने की उन्हें नीचा दिखाने का प्रयास किया गया है,

जबकि सत्य यही है कि मानव सभ्यता के विकास में वैदिक संस्कृति, सनातन धर्म सर्वोपरि, सर्वश्रेष्ठ है, क्यों कि यह धर्म आत्मा के उन्नयन का पाठ पढ़ाता है,ईसाई या इस्लाम धर्म की तरह सिर्फ किसी व्यक्ति विशेष के "मत" को जो कहीं - कहीं अमानवीय तत्वों का भी पोषण करता है , उसे ... येन केन प्रकारेन ...मानने के लिए बाध्य नहीं करता है।

विश्व मानवता, सहनशीलता , वसुधैव कुटुंबकम् का पाठ पढ़ाने वाले भारत एवं इसकी वैदिक संस्कृति,सभ्यता,हिंदुत्व की आत्मा जो विश्वात्मा के रूप में प्रचलित होनी चाहिए उसकी आत्मा और स्वाभिमान पर बार - बार चोट किया जाता है।
फिर आक्रोश क्यों न हो? आक्रोश तो स्वाभाविक है।

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