A martyre

शहीद के परिवार की पीड़ा

शहीद वीरगति आदि शब्दों का प्रयोग प्रायः हमारे देश के नौजवानों के लिए जो देश विरोधी ताकतों से लड़ते हुए, संकट में फँसे हुए या प्राकृतिक आपदाओं में जान की बाजी लगा कर नागरिकों की सुरक्षा करते हुए अप्राकृतिक मौत को भी गले लगा लेते हैं उनके लिए किया जाता है। प्रायः इन लोगों के प्रति "ऊँ शान्ति," या श्रद्धांजलि अर्पित कर आम लोग अपने कर्तव्यों से छुटकारा पा जाते हैं ,इसके बाद की समस्या जो शहीदों के परिवार वाले झेलते हैं उसे सिर्फ ऐसे दुखों से पीड़ित परिवार ही महसूस कर सकते हैं।राजनीति करने वाले नेताओं में ऐसे घटिया स्तर के नेताओं की सँख्या आ गयी हैं जो अपने व्यक्तिगत फायदे के लिए सेना के जवानों का उपयोग भी करना चाहते हैं एवं उन्हें बदनाम कर विदेशी ताकतों को बढ़ावा देने एवं वोट की राजनीती के तहत आतंकियों को भी शहीद कहने लगते हैं।

अर्धपुलिस बल तथा फौजी जहाँ जनता की सेवा करते हुए लगभग प्रत्येक क्षेत्र मे आपदाओं के दौरान अपनी ड्यूटी करते हुए जान गँवा रहे हैं वहीं नेताओं का एक खास तबका, एक खास पार्टी के नेता उन्हें बदनाम करने की कोशिश में लगे हैं। वे शायद देश के कुछ हिस्सों को अलग-थलग कर विदेशियों के हवाले कर देना चाहते हैं। चीनियों एवं यूरोपीय समुदाय के आकाओं द्वारा अर्थपोषित पार्टी ;भारत विरोधी गतिविधियों को उकसाने, देश में अस्थिरता पैदा करने के कार्य तल्लीनता से करते हैं।

आये दिन कर्तव्य परायण फौजियों ,सिपाहियों पर होने वाले जानलेवा हमले, ऐसा सोचने के लिए मजबूर करता है कि ये देशविरोधी नेताओं के इशारों पर ही करवाये जाते हैं। अंदरूनी हिस्सों में निजी हितों के लिए कुछ नेताओं द्वारा प्रशासनिक व्यवस्था का गलत इस्तेमाल होता है। पुलिस वाले या फौजी इसमें दोनों ओर से( बाहरी एवं अंदरूनी दुश्मनों द्वारा) मारे जाते हैं। ऐसा खयाल आता है कि देशभक्त एवं कर्मठ जो अपनी जिम्मेदारी ईमानदारी से निभाते हैं वे सभी यदि एक-एक कर शहीद ही होते जायेंगे तो अपने देश हिंदुस्तान एवं यहाँ के हिन्दुओं की भी रक्षा कौन करेगा ? हिन्दू अपनी शांति, उदारता एवं सर्वे भवन्तु सुखिनः की उदार वादी नीतियों पर चलते हुए,आतंकियों एवं धमकी देने वालों को पालते हुए असुरक्षित रहते हैं।

बाहरी देशों के द्वारा कुरान जलाये जाने पर या नशा-तस्करों द्वारा मणिपुर में हिंसा भड़काने, जिसमें आग और पेट्रोल डालने का काम कांग्रेस की आला कमान के शहजादे, ईसाई एवं मुस्लिम समुदाय कर रहे हैं, उससे "आर एस एस" एवं हिन्दू समुदायों का क्या वास्ता है? लेकिन वामपंथियों की कुटिलता ने यहाँ भी हिन्दुओं को मिटाने के लिए दंगा फैलाया है एवं दोष राष्ट्रीय सेवा संस्थाओं को दे रहे हैं। फसाद को उत्प्रेरित करने वाले ईसाई या इस्लामियों को नुक्सान होता है तो ये एकतरफा हंगामा करना,मानवाधिकार की बातें करना आरम्भ कर देते हैं। न्यायालय अचानक गहरी नींद से जग, विशेषाधिकार के तहत मात्र एक विशेष तबके के लिए स्वतः संज्ञान लेते हैं,जो उचित नहीं है,क्योंकि ,हिन्दू बर्बर मजहबियों से सिर्फ आत्मरक्षा का प्रयास कर रहे हैं।

विश्व व्यापी स्तर पर हंगामा मचाने वाले, स्वयँ को भले ही पीड़ित बताते हों लेकिन सत्य तो यह है कि ये अपनी हरकतों एवं सोच के कारण ही घृणा के पात्र हैं; अन्यथा हिन्दू विहीन अफगानिस्तान, सीरिया, सूडान, नाइजीरिया, पाकिस्तान आदि देशों में तो शांति रहनी चाहिए थी। लेकिन किसी भी मुस्लिम बहुल देश में गैर इस्लामियों के साथ भाई-चारा, मानवाधिकार या शान्ति शब्द अपने आप में उपहास है। सरल प्रवृति वाले हिन्दू आसानी से धूर्त पादरियों एवं बर्बरता के उपासक मौलानाओं के कुटिल बुद्धि के शिकार हो जाते हैं परिणाम यह है कि भारत में जहाँ भी इस्लामी या ईसाई समुदाय बहुसंख्यक हैं वहाँ हिन्दुओं को धमकी दी जाती है। माहौल बना कर हिन्दुओं की कहीं सामूहिक तो कहीं निशाने पर लेकर एकल हत्याएं भी होती रहती हैं, जिसके लिए विश्वव्यापी प्रदर्शन या विदेशों में तोड़फोड़ या आगजनी की घटनाएं आज तक नहीं हुए हैं।

भारत में इस्लामिक एवं ईसाई समुदाय हिन्दुओं एवं आर एस एस के विरुद्ध नारे लगाते हैं जबकि हिन्दू बहुल होने के कारण ही देश में प्रजातंत्र जिन्दा है। आर. एस. एस. की स्वार्थ विहीन सेवा के कारण ही कोरोना या किसी भी प्राकृतिक आपदा में सभी नागरिक मुस्लिम और ईसाई भी सुरक्षित रहे हैं। कभी किसी पुजारी या पंडित ने मंदिर में जबरन धर्म परिवर्तन नहीं कराया है। परन्तु पादरियों की मौकापरस्ती सरेआम जग जाहिर है, दूसरी तरफ इस्लाम में लूटना-खसोटना, आगजनी करना एवं अन्य धर्म के लोगों को मारना, उनके धर्म स्थलों को बर्बाद करना बचपन से सिखाया जाता है। सुव्यवस्थित ढंग से अपराधी कार्यों में सक्रिय ये समूह इतने फुर्तीले हैं कि इनके अपराधों का पता लगाना मुश्किल होता है। जैसे चोरी के नई कार के कलपुर्जे चोर बाजार में मिनटों में गायब हो जाते हैं वैसे ही अगवा किये गए गैर-इस्लामी व्यक्ति एवं लड़कियाँ इस्लामी गुण्डों के बीच गायब हो जाते हैं। गुमशुदी ,धर्म परिवर्तन एवं जबरन निकाह की खबरें आये दिन सुर्खियों में होतीं हैं।

हिंदुस्तान की सशस्त्र सेना,आर एस एस ,एवं शांतिप्रिय हिन्दुओं को बदनाम करने की साजिश के बावजूद हिन्दूओं ने अपना धैर्य बनाये रखा है ,शायद सिर्फ इसीलिए देश अभी भी सुरक्षित है अन्यथा आतंकी मजहबियों के कारण तो समूची दुनियाँ ही बर्बादी की ओर जा रही है। हिन्दू विहीन देशों में भी ये घृणा के पात्र बन कर घृणा और आतंक ही फैला रहे हैं? मंदिरों,चर्च एवं उनके शिक्षा संस्थाओं को ध्वस्त करने वाले समुदाय को कुरान का अपमान या उसे जलाया जाना बुरा लगा है, वे विश्वव्यापी प्रदर्शन कर रहे हैं,धमकियाँ दे रहे हैं तो क्या उन्होंने कभी सोचा कि उनके ध्वंसात्मक कारनामों से किसी भी देश के अन्य धार्मिक समुदायों पर क्या बीतती होगी ? आखिर क्यों और कब तक गैर इस्लामी समुदाय हलाल होते रहेंगे? बिना लड़े बकरों की तरह जान गँवाते-जवान,साधु-संत,ऋषि-मुनि,वैज्ञानिक, पुलिस वाले,बच्चे ,लड़कियाँ ; क्या ये न्याय के पात्र नहीं हैं? क्या इन अवशरों न्यायिक प्रणाली कभी स्वतः संज्ञान लेती है ? आखिर भारत सरकार या हिन्दू किस दिन का इंतजार कर रहे हैं?

पाकिस्तान में जहाँ निन्यानबे प्रतिशत मुस्लिम ही हैं वहाँ पर गैर इस्लामिक नागरिकों पर रॉकेट से हमले किये जाते हैं, समूची दुनियाँ सिर्फ चर्चा और निंदा कर चुप हो जाते हैं। मानवाधिकार वाले या अंतरराष्ट्रीय कानून उन पीड़ितों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए गुहार नहीं लगाते हैं न ही कुछ कर पाते हैं। कोई भी अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन जैसा कि धारा 370 हटाने के बाद कश्मीर में भेजा गया था, पाकिस्तान नहीं भेजे जाते हैं, लेकिन आतंकियों के रहनुमाओं द्वारा हिंदुस्तान में मुस्लिम आतंकियों को बचाने के लिए रात में भी कोर्ट खुलवाए जाते हैं। हिन्दुओं की सुरक्षा का प्रश्न विश्व स्तर पर उठाना वाजिब एवं आवश्यक है।

मृतकों के लिए किसी के 'ऊँ शांति' कहने मात्र से जिंदगी वापस नहीं आती है न ही आतंकियों के पापकृत्य पवित्र हो जाते हैं हाँ कुछ क्षण के लिए ये शब्द स्वयँ को आत्मशांति जरूर देती है। कुछ नेता श्रद्धांजली अर्पित कर अपने कर्तव्य से छुटकारा पा लेते हैं परन्तु कई नेता तो इतने गिरे हुए हैं कि सिपहियों या सेना के जवानों पर ही इल्जाम लगा देते हैं। इसके बाद के नतीजे परिवार के लोग झेलते हैं। नेताओं द्वारा प्रेरित आतंकी तथा आतंकवादी घटनाओं के कारण हमारी पीढ़ियों की सुरक्षा की कोई गारण्टी नहीं है? कर्नाटक में जैन मुनि की हत्या,राजस्थान में स्त्रियों, बच्चों को मुस्लिम आतंकियों द्वारा मारा जाना लेकिन कोई आवाज नहीं उठने देना साबित करता है कि ज्यादातर हिन्दुओं को राजनीतिक हत्याओं के बारे में बातें करने की इजाजत नहीं है या उन्हें नेताओं द्वारा व्यक्तिगत प्रताड़ना का डर है। जाहिर है कि गहलौत सरकार हिन्दुओं को प्रताड़ित कर उन्हें डराने का अत्याचार भी कर ही रही है । हत्यारों , बलात्कारियों, आतंकियों को बचाने वाली या उसके विरुद्ध कठोर कदम न उठाने वाली कोई भी सरकार उतनी ही दोषी है जितने कि आतंकियों को समर्थन और सुरक्षा देने वाले समूह।

कभी सोचा क्यों हिन्दुओं को हर जगह हलाल का जानवर बनाया जा रहा है, कभी गहराई से सोचें ! बुरा लगता है तो क्षमाप्रार्थी हूँ। सच्चाई यह है कि एक सर्वाधिक समुन्नत संस्कृति और विश्वव्यापी मानव धर्म को खत्म करने का प्रयास किया जा रहा है। यद्यपि स्वार्थी हिन्दू नेताओं के भी अपराध नजर अंदाज नहीं किये जा सकते हैं। प्रताड़ित हिन्दू सीमा पार इस्लामी देशों में ही नहीं देश के अंदरूनी हिस्सों में भी छिपे हुए हथियारों और बॉम्ब से लैश आतंकियों के समूहों के कारण असुरक्षित हैं। जिंदा रहना है तो इनसे निपटना आवश्यक है।

कोंग्रेसियों की गलत नीतियों ने देश और देश के अंदर भी नागरिकों की सुरक्षा को दाँव पर लगा दिया है। देश की डेमोग्राफी बदल दी गयी है ऐसे घुसपैठियों और आतंकियों को बसाया है जिन्हें गरीबी के कारण खाना तो सरकार से मुफ्त चाहिए लेकिन हथियारों का जखीरा और बॉम्ब उन्हें मुफ्त में मिलते हैं या फिर इनके लिए उनके पास पैसे एवं घर में जगह बहुत हैं। हिन्दुओं के पास न तो हथियार हैं न ही हथियार खरीदने के लिए पैसे हैं, न ही इन्हें कुछ मुफ्त में कुछ मिलता है। कभी कभी ऐसा लगता है कि ये हिन्दुओं की अंतिम पीढ़ी है जो सनातन वैदिक धर्म को बचाने की कोशिश, धैर्य के साथ बिना हथियार उठाये कर रही है लेकिन विडंबना यह है कि ये देश के अन्दर एवं बाहर हर मोर्चे पर बकरों की तरह हलाल होते, शहीद होते जा रहे हैं जिसके लिए कभी विश्वव्यापी आंदोलन नहीं होते हैं।

गजब का बँटवारा किया नेहरू ने देश का ,
पाकिस्तान बना कर भी मुल्लों को है पाला।
इटालियन की क्रूर चाल से कटते रहे हिन्दू,
हिन्दुओं को ही बदनाम भी करते रहे घोंचू।

जब कहीं-किसी क्षेत्र में,आती है आपदा ,
हर मुश्किल में मौजूद होते,फ़ौज के जवान ,
बिडम्बना देखो! बिके हुए नेता हैं बदज़ुबान,
थकते नहीं कभी हैं,इन्हें करते हुए बदनाम।

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