अन्य धर्मावलम्बियों के विरुद्ध इस्लाम की बर्बरता और हैवानियत आज के समय में भी पूरा विश्व झेल रहा है। अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश में उनकी हैवानियत से लगातार नरसंहार होता चला आ रहा है। मध्य पूर्व के देशों में ईसाईयों का लगभग नरसंहार सा हो रहा है। इन हैवानों ने स्वतंत्र भारत के कश्मीर में वहाँ के मूल निवासी ‘पंडितों’ पर वो जुल्म ढाये जिसकी झलक हाल ही में बने 'कश्मीर फाइल्स' फिल्ममें देखने को मिली थी (read ‘Looking back at Ralive, Tsalive ya Galive: 1990 genocide in Kashmir’) । ईराक के यज़ीदियों पर तो इन हैवानों ने ऐसे जुल्म ढाए जो रोंगटे खड़े कर दे। पाकिस्तान में ये हैवान आये दिन सिख और हिन्दुओं की अस्मिता पर हाथ डाल रहे हैं। अब इनकी बढ़ती आवादी के कारण भारत में भी इनका जुल्म बढ़ता जा रहा है और यह सिर्फ भारत में ही नहीं वल्कि पूरे विश्व में, जहाँ भी इनकी आवादी बढ़ रही है, उन सारे देशों में इस्लामी हैवानियत बढ़ती चली जा रही है चाहे वह फ़्रांस, मलेशिया, नाइजीरिया, सूडान, CAR,पूर्वी अफ्रीका या और कोई देश हो (read ‘New Islamo-Fascism in World’ referred above) ।
इस्लामी हैवानियत का जो रूप अभी भारत देख रहा है यह इस्लामी आतंकवाद से कहीं ज्यादा है। कल इन्हों ने राजस्थान के उदयपुर में एक व्यक्ति की गला काट कर ह्त्या कर दी। इसके पहले भी इन आतताइयों ने भारत में ही किशन भरवाड़, चंदन, कमलेश तिवारी सहित ऐसी ही कई जघन्य अपराध किए हैं। ऐसा ही उन्होंने पाकिस्तान में कार्यरत एक श्रीलंकाई नागरिक के साथ भी किया था जिसे उनहोंने सड़क के चौराहे पर जला दिया। इस्लामी हैवानियत अभी हाल के ही दिनों में स्वीडेन और फ़्रांस में भी देखने को मिली थी I ये घटनाएँ चाहे देखने में छिट-पुट प्रतीत हों, लेकिन बड़े सुचारु रूप से विश्व इस्लामिक जिहाद संगठन द्वारा चलाईं जा रहीं हैं। इनके पीछे अनेकों संगठन और समूह हैं। आज के दिन विश्व में १७० से ज्यादा जिहादी आतंकी संस्थाएँ हैं जिसका संज्ञान संयुक्त राष्ट्र को भी है।
इस्लामी कट्टरवाद फैलाने में मुल्लाओं तथा उलेमाओं का विशेष हाथ है। हर जुम्मे की नमाज में खुत्बा पढ़ा जाता है जिसमें कट्टरवादी मुल्ले काफिरों के खिलाफ युवाओं को भड़काते हैं, उनमें अतिवादी होने का बीज डालते हैं। जिहाद की तालीम उन्हें कुरान से मिलती है और नृशंस होने का प्रशिक्षण जिहादी गुटों से। मत भूलिए आज से डेढ़ साल पहले का वो विडिओ… जिसमें एक अबोध बच्ची को एक गुड़िया (काफिर) का गला काटने की तालीम चर्चा का विषय बनी थी। हैवानियत इन जिहादियों के डीएनए में प्रतीत होता है।इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि पूरे विश्व में इस्लाम के प्रति लोग धीरे-धीरे ही सही, क्रुद्ध हो रहे हैं और इस्लामी हैवानियत के प्रति एक स्वाभाविक रोष बढ़ रहा है (पढ़ें ‘Factual Islamophobia in World’) I
और विडम्बना देखिए ! बड़ा विश्व समुदाय खामोश है। वे सब याद रखें कल उनकी भी बारी आएगी। आने वाले सालों और दशकों में इस्लाम की हैवानियत से कोई भी देश, प्रांत या समुदाय अछूता नहीं रह पाएगा। जिहादी आग की धाह सबों पर पड़ेगी। काफी दिनों से कुछ आवाजें उठ तो रहीं हैं लेकिन उसका कोई असर नहीं पड़ रहा है। वक्त आ गया है विश्व समुदाय संगठित होकर इन आतताइयों का सफाया करे चाहे उसके लिए जो भी कीमत उठाना पड़े (read ‘Islamic hate: treat the disease not Symptoms’) । अन्यथा, हो सकता है जिहाद और इस्लामी हैवानियत के खिलाफ एक स्वाभाविक परन्तु भयंकर प्रतिक्रया फूट पड़े जो भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देशों में भी कट्टरवादी मुसलमानों का सफाया कर दे। वैसे भी आवाजें उठ रहीं हैं कि धर्मनिरपेक्ष देशों में कुरान पर प्रतिबन्ध लगे जो आम मुसलामानों में घृणा फैलाते हैं (read "Is Quran Quran a source of Hate and Intoleance? ) । अब तो लोग यह भी मानने लगे हैं कि चीन के जिनजियांग में इस्लामी कट्टरवाद को नियंत्रण में लाने का जो मॉडल या तरीका अपनाया जा रहा है वह आज के परिपेक्ष में कदाचित जायज है।