बिहार में अग्निपथ के नाम पर दंगा करने वाले कौन हैं ?
जब अपने नेता के भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने के लिए कांग्रेस के कार्यकर्ता पूरे भारत में सड़क पर प्रदर्शन कर रहे थे, टायर जला रहे थे, उसी अशुभ घड़ी में रक्षा मंत्री तथा तीनों सेना प्रमुखों ने सेना में भर्ती का एक क्रांतिकारी योजना शुरू करने का ऐलान किया जिसके लिए वे सब पिछले लगभग डेढ़ साल से मंथन कर रहे थे। यह क्रांतिकारी योजना ब्रिटिश समय से चले आ रहे भारतीय सेना में भर्ती होने की प्रक्रिया से काफी अलग है ।इसके तहत कम से कम दसवीं पास भारतीय युवा १७-१/२से २१ साल की उम्र में "अग्निवीर" के रैंक में एक ऑनलाइन प्रवेश परिक्षा के बाद ६ महीनें की ट्रेनिंग लेकर सेना में नियुक्त हो सकेगा । उन्होंने यह भी बताया कि इससे सेना को काफी लाभ होगा।वैसे यह बेहतर होता अगर इस योजना की यथासंभव विस्तृत जानकारी देश को दी जाती जिससे लोगों के बहुतेरे जवाब स्वतः ही मिल जाते।अब जब उत्तर भारत में जैसे हाहाकार सा मचा है, तीनों सेना प्रमुख बार-बार मीडिया में आकर लोगों को समझाने की कोशिष कर रहे हैं लेकिन अग्निपथ की आग है कि बुझने का नाम ही नहीं ले रही।
भारत में क्रांतिकारी परिवर्तन ला कर अग्रणी देशों की गिनती में लाने की मोदीजी की नीयत तो बिलकुल साफ़ और सराहनीय है चाहे वह जितनीं भी योजनाएं लागू हुई हो I लेकिन मोदी २.० के मंत्रियों ने जिस तरह से इसे लागू किया वह किसे भी तरह से ठीक नहीं; चाहे वह सत्ता पक्ष की गलती से हो या फिर विपक्ष की कुत्सित मानसिकता के फलस्वरूप । चाहे वह CAA, फार्मAct, अजान, हिजाब या फिर यह अग्निपथ हो, परिणाम एक जैसा ही हुआ : सडकों पर दंगा, अराजकता और आगजनी । किसी अच्छी योजना को कितनीं अव्यवस्थित याबुरी तरह से लागू किया हो सकता है इसकी महारथ आज के केंद्रीय मंत्रियों को हासिल है। मोदीजी कैसे इन अयोग्य मंत्रियों को ढोए जा रहे हैं समझ के परे है। इन सारे के सारे उपक्रमों में राजनैतिक विपक्षी पार्टियों, आढ़तियों या मुसलामानों द्वारा आंदोलन ने सरकार एवं देश को लगभग शिथिल कर घुटनों पर लादिया। गृह मंत्री अमित शाह का तथाकथित 'सरदार पटेल' जैसा सख्त रूप कहीं नहीं दिखा।प्रदर्शनों के नाम पर विपक्ष उत्पात मचाता रहा।देश विदेश में भारत की थू थू होती रही। लेकिन देश को जलता देखकर विपक्ष खुश है और विजेता की तरह गौरवान्वित महसूस कर रहा है।
प्रदर्शन के पहले दिन हमनें बिहार से प्रतिक्रिया देखा था उसमें सेना भर्ती के लिए कोचिंग चलाने वाले भी थे जिनकी दुकानों को बंद होने का खतरा था।उन्हों ने भी अपने ट्रेनिंग के युवाओं को आंदोलन तथा दंगा के लिए उकसाया। फिर हमनें वो आवाजें भी सुनी जो पिछले दो सालों में भर्ती न होने के चलते अपनी बढे उम्र को लेकर उद्वेलित थे जो एक तरह से जायज था। यह बात साफ़ हो गयी है कि ये दंगाई न तो छात्र और न ही सेना में भर्ती के इक्षुक वे लोग हैं जिनकी उम्र 17.5 - २१ साल की हो या पिछले २ सालों से भर्ती की तैयारी में इनकी उम्र २३ साल की हो गयी है। ध्यान से देखें। इन दंगाइयों की उम्र ज्यादातर अधेड़ों जैसी हैं लेकिन कुछ कॉलेज जानें वाले उम्र के युवा भी हैं।कुछ वीडियो में एक अजीव दृश्य देखा है कि शक्ल सूरत से मुसलमान हैं लेकिन अपनी चिर परिचित टोपी के बिना। शायद जान बूझ कर संदेह पैदा करने के लिए एक भगवा रंग का कपड़ा लपेट रखा है।
आगजनी में रत ये कौन हैं। बिहार में सबसे ज्यादा आगजनी कहाँ-कहाँ हो रही है? दंगे ज्यादातर राजद, कम्युनिस्ट तथा कोन्ग्रेस विधायकों के चुनाव क्षेत्रों में हो रहा है जैसे जहानाबाद (RJD, CPI), बक्सर (RJD, INC, CPI), नवादा (RJD, INC), सारण (RJD-6, CPI-1, BJP-3), भोजपुर (RJD/CPI-5, BJP-2), मुंगेर, बेगूसराय (RJD/CPI/BJP-2 each) आदि।इन दंगाइयों ने कई जिलों में दंगा और आगजनी किया है।गोपालगंज के सिधवलिया तथा भभुआ, छपरा, आदिरेलवे स्टेशन में आग लगा दी। मुजफ्फरपुर, जहानाबाद, बक्सर, सारण, भोजपुर, मोतिहारी, कैमूर, मधेपुरा और अन्य जिलों में भी जहाँ राजद का यादव-मुस्लिम समीकरण, कम्युनिस्ट की माओवादी अलगाववादी याकांग्रेस का मोदी विरोधीमानसिकता है; काफी उत्पात मचाया गया है। रेल यातायात के साथ-साथ सड़क यातायात पर पथराव की घटनाओं में कई स्थानीय लोग घायल हो गए।
बिहार में आगजनी और हिंसा मुख्यतया उन जिलों में हुई है जहाँ RJD, CPI, या कांग्रेस के ज्यादातर समर्थक हैं।ये तीनों पार्टियाँ बिहार को अस्थिर करने के लिए बेचैन थे और अग्निपथ के बहाने इनको वो मौका मिल गया। उन इलाकों में या तो यादव मुस्लिम का वर्चस्व ही या फिर वो माओवादी क्षेत्र है। अपवाद के रूप में दंगाग्रस्त कुछ ऐसे जिला या क्षेत्र भी हैं जोबीजेपी या फिर JDU, विधायक के क्षेत्र भी हैं लेकिन यह लगभग नामुमकिन है कि उनके समर्थकों ने दंगा या आगजनी की हो।नवादा (RJD-3, INC/BJP-1 each) में बीजेपी विधायक पर हमलाकरवाया गया।यह क्षेत्र राजद और कांग्रेस का गढ़ माना जाता है।
किसी सत्ताधारी पार्टी के विधायकों या उनके पार्टी ऑफिसपर आखिर कोई विद्यार्थी या सेना में भर्ती के इक्षुक कोई प्रत्याशी भला क्यों हमला करेगा ? यह काम सरासर किसी राजनैतिक प्रतिद्वंदी का हो सकता है।यह बात किसी से छुपी नहीं कि पिछले लगभग १ साल से राजद के नेताओंके सुर बिगड़े हुए हैं और वो यही चाहते हैं कि बिहार में उत्पात मचे। पिछली कुछ महीनों से नितीश कुमार भी RJDसे कुछ कानाफूसी करते दिखे हैं।वहाँ अवश्य कोई राजनैतिक खिचड़ी पक रही है। शायद यही कारण है कि गृह मंत्री नितीश कुमार ने पुलिस को सख्ती बरतने से रोक रखा है और RJD के मुस्लिम-यादव बे-लगाम दंगा और उत्पात मचा रहे हैं। बिहार की क़ानून व्यवस्था लगभग ठप्प है। कहीं कहीं तो पुलिस बिलकुल मूक दर्शक बन कर दंगे देख रही होती है।
गत चार दिन पहले, जो कोंग्रेसी देश भर में राहुल गांधी को प्रवर्तन निदेशालय में तलब किए जानें के बाद प्रदर्शन में आए थे वे अग्निपथ-हिंसा शुरू होने के बाद कहाँ लुप्त होगए ?कहीं वही तो दंगाई नहीं बन गए ? दूसरी तरफ नूपुर शर्मा के खिलाफ जो कट्टरवादी मुसलमान सडकों पर पत्थरबाजी कर रहे थे वे गत शुक्रवार को कहाँ गायब होगए ? कहीं वे भी इस अग्निपथ - हिंसा में तो नहीं लग गए कि विद्यार्थी / युवा के नाम पर ही देशविरोधी गतिविधियों में हाथ साफ़ कर लिया जाए।मुमकिन है ऐसा भी हुआ हो।
आइये आप को बिहार के दंगाइयों की कुछ तस्वीरें दिखाते हैं।आपको शायद २० साल से काम के उम्र के कुछ छात्र दीख जाएं लेकिन ज्यादातर अधेड़ उम्र के ही लोग दिखेंगे जिनको अग्निपथ भर्ती से कोई सरोकार नहीं।
इनमें से कुछ तस्वीरों में कम्युनिष्टों के लाल रंग भी दिखाते हैं।
कहीं कहीं तो राजनैतिक पार्टियों के झंडे भी बाहर आ गए हैं।
मायनें यह कि बिहार में मचाए जा रहे दंगे और उत्पात में सारे विपक्षी राजनैतिक पार्टी के लोग अपने अपने रोटी सेंक रहे हैं।ज्यादातर इन तस्वीरों से यह तो सावित नहीं होता की ये लोग दंगाई हैं।इसके लिए तो दंगे और आगजनी के जितने विडिओ हैं उनको देखकर ही उनकी पहचान और अपराध सिद्ध हो सकता है।आजकल ऐसे सॉफ्टवेयर हैं जो आसानी से दंगाइयों की पहचान कर सकती है जिसे कानपुर दंगे के बाद उपयोग में लाया गया था। यह नितांत आवश्यक है कि बिहार सरकार या फिर केंद्रीय रेल मंत्री रेलवे की क्षति पूर्ती के लिए
ऐसा करें और दंगाइयों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करें।
अग्निपथ योजना की सफलता के बारे में तीनों सेना प्रमुख आस्वस्त हैं।फिर कौन क्या कहता है इसका कोई मायनें नहीं। देश की प्रमुखविपक्षी पार्टियों के नेता युवाओं को भड़काने में लगे है।कुछ सेवा निवृत्त अधिकारियों के भी मत बँटे हैं।ऐसे में उचित यही है कि तीनों सेनाएँ अपने लिए गए फैसले पर अडिग आगे बढ़ें और आने वाले समय में इस योजना में जो भी थोड़ा बहुत बदलाव करना पड़े, करें। अभी सेना की आवश्यकताओं से सबसे ज्यादा भिज्ञ वही हैं। हमें उनपर विश्वास रखना ही चाहिए।
अब जब दंगाई अपने मकसद में कामयाब होते लग रहे है, आवश्यकता है युवाओं के मन से अनिश्चितता निकालने की।उन्हें अग्निपथ योजना की सूक्ष्म से सूक्ष्म जानकारी गेनी पड़ेगी।इस सम्पादक ने भरपूर कोशिष की की वायुसेना प्रमुख से कुछ सवालों के उत्तर लिए जाएँ परन्तु उनके स्टाफ ऑफिसर साक्षात्कार से जैसे डर रहे हैं।वायु सेना अगले कुछ दिनों में एक नोटिफिकेशन निकालने वाली है और अभी कुछ भी कहने से शायद बच रही है।