साधुओं पर हमले, रामनवमी या अन्य पूजा और उत्सवों में बिहार में हिन्दुओं पर तरह तरह का राक्षसी आक्रमण चल रहा है; वह चाहे हाल के महीनों में बिहार के अन्यान्य जिलों, बिहार शरीफ हो या सीतामढ़ी, चम्पारण हो या सिवान। जहाँ भी मुसलमानों की प्रतिशत संख्याँ 10-11 % से ज्यादा होती है, ये राक्षसी आक्रमण बढ़ने लगते हैं।
राक्षसी उत्पात तो चल ही रहा है; अराजकता, भ्रष्टाचार, ह्त्या, फिरौती का धंधा फिर से चल पड़ा है और विरोध प्रदर्शन करने वालों पर पुलिस द्वारा प्रतारण आम बात हो गयी है चाहे वह छात्रों द्वारा प्रदर्शन हो या बीजेपी का विरोध। अभी हाल ही में शांति पूर्वक प्रदर्शन कर रहे बीजेपी कार्यकर्ताओं पर तो इस कदर पुलिस की बर्बरता की गयी है कि एक की मौत भी हो गयी है जिसके लिए रावण रूपी राजतंत्र को कोई ग्लानि नहीं है।
अब रावण-तन्त्र नितीश को प्रधानमंत्री बनने का मृगतृष्णा दिखाकर दूध की मक्खी के तरह उठाकर फेंकनें की फिराक में है ताकि बिहार में सीधी रूप से पुनः ‘जंगल राज’ या ‘रावण राज’ स्थापित कर सके। इस रावण तंत्र का खात्मा भी अत्यावश्यक हो गया है चाहे वह प्रजातंत्र के दायरे में हो या रामनवमी उपरान्त रावण दहन।
प्रजातांत्रिक पथ मुश्किल सा ही लग रहा है क्योंकि १० लाख सरकारी नौकरी देने का प्रलोभन देकर रावण-दल बिहार में सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी के रूप में उभरी है ।अब, जब ‘रावण रूपी राजतंत्र’ को १० लाख सरकारी नौकरी देने का चुनावी वादा पूरा करने के लिए कहा जा रहा है तो शासन तंत्र राक्षसी प्रवृत्ति दिखाने लगती है।
प्रादेशिक स्तर पर सबसे कम सरकारी नौकरी देने में बिहार सबसे ऊपर है जैसा संलग्न टेबल में देखा जा सकता है। उल्लेखनीय है कि प्रादेशिक सरकारी नौकरी में बिहार महाराष्ट्र की आधी से भी कम है। यहाँ तक कि कांग्रेस, समाजवादी व बहुजन समाजवादी पार्टी की अराजकता वाली सरकारों से त्रस्त UP आज ‘योगी राज’ में दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति कर रही है लेकिन बिहार जड़वत वहीं का वहीं है, वही “ढाक के तीन पात”I आज देश का कोई राज्य नहीं जहाँ बिहार के नागरिक मजदूरी के लिए मजबूर न हों। यहाँ तक कि वे श्रीनगर में जिहादियों द्वारा तथा तमिलनाडु में वहाँ के रूढ़िवादी मुख्यमंत्री के इशारे पर तथाकथित ईसाई कट्टरपंथियों द्वारा मौत के घात उतारे जा रहे हैं।
उपर्युक्त डाटा २०१७ के अंत का है।आज के दिन बिहार में लगभग ३.२ लाख सरकारी नौकरी रह गयी है।इसके अलावे बिहार में अन्यान्य मुख्यमंत्रियों की अनमनस्यता के कारण कोई निजी कंपनी निवेश करने से कतराती है कि कौन मरे उस रावण तंत्र और जंगल राज में। यही कारण है कि बिहार में सबसे अधिक बेरोजगारी है और लोग दूसरे राज्यों में मजदूरी के लिए ही सही, पलायन को मजबूर हैं चाहे वहाँ उनकी हत्याएँ ही क्यों न हो रही हो।
पिछले कुछ महीनों से बिहार के मुख्यमंत्री अपनी मृगतृष्णा की तलाश में बिहार को अपनी दुर्गति में छोड़, देश के तथाकथित सारे महाचोरों को इकट्ठा करने में लगे है कि किसी तरह मोदी जी को हराया जाय और वे प्रघान मंत्री बन सकें।आजकल तथाकथित VIP चोरों का गठबंधन बनाने की खबर जोर शोर पर है जिसमें एक से बढ़कर एक महत्वाकांक्षी व्यक्ति अपनीं अभिलाषा पूरा करने की फिराक में लगा है।
ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि आने वाले महीनों और सालों में ये रावण रूपी राक्षसी ताकतें बिहारी नागरिकों का दमन करेंगी क्योंकि यह उनके M-Y फर्मूले में है। मेरा अररिया जो ६० - ७० के दशक में १७ % मुसलमानों से साथ लगभग शांत था आज के दिन लगभग ४५ % मुसलमानों के साथ जिहादी रास्ते पर चल पड़ा है।आए दिन खबरें आतीं हैं कि मस्जिदों में बम बनाए जा रहे हैं।एक मुल्ला सायकिल पर बम लिए जा रहा था जिसके फटने से वह घायल हो गया।जिहादियों, मस्जिदों में बने हथियार को वहाँ की सरकार मुट्ठी भर मुसलमान वोटों के लिए अनदेखी क्यों के रही है ? किशनगंज आज मुस्लिम वाहुल्य हो गया है और हिन्दुओं को वहाँ से पलायन करने को वाध्य होना पड़ रहा है। यही हाल कटिहार का भी है।आखिर बिहार किस ओर जा रहा है ? बिहारियों की दुर्गति वहीं की सरकार क्यों कर रही है ? वहाँ की जनता को प्रण लेना होगा कि जहाँ तक हो सके, रावण रूपी राक्षसी ताकत को हराना ही होगा।बिहार को शाप चाहे जिसकी भी लगी हो, उससे मुक्त होने के लिए हम बिहारियों को रावण रूपी राक्षस से निपटना ही होगा।