
चलते - चलाते: कविता
लिखना मेरी कमज़ोरी है,
मैंआज कहूँ या कल बोलूँ,
पर बातें वही पुरानी है।
महसूस-करूँ! कहती-सुनती,
लिखती, भरती कोरे-कागज
पढ़ने वाली भी मैँ ही हूँ।
जाने किस कल्पित दुनियाँ में
दुविधा पैदा कर जीने में,
हूँ कहीं बनी मैं सूत्रधार ,
बन कहीं नायिका आती हूँ ,
अज्ञात बनी, अनजानी हूँ ,
मैं कथा नित्यप्रति रचती हूँ।
दुनियाँ में वक्त की धारा में ,
शत प्रतिशत सत्य नहीं पाती,
मिलती लोगों से यहॉँ -वहाँ,
ढूँढूं किस्से भी जहाँ -तहाँ,
हूँ रही भटकती कहाँ-कहाँ
पर झूठ नहीं लिख पाती हूँ।
कुछ गहराई में जाती हूँ,
जीवन से पात्र उठाती हूँ।
सन्देह कहीं कल्पना कहीं,
लेकर आधार कथाओं का'
उसको विश्लेषित करती हूँ,
मैं उसमें सत्य पिरोती हूँ।
कुछ शब्दों के संयोजन से ,
'रचना' जो स्वतः निखरती है,
अनुभव, भावों से सिक्त बनी,
सुःख -दुःख साझा करने वाली ,
अति प्यारी मित्र वह मेरी है ,
लिखना मेरी कमजोरी है।
डॉ सुमंगला झा।।