चलते-चलाते : पप्पू की बारात
पटना में बारात सजी थी,
बिन सेहरे का दूल्हा था ,
दुल्हन का तो पता नहीं था
बारात चोर का तगड़ा था।
डाकू-डाकिनी,भूत-पिशाच ,
भ्रष्टाचारियों का ठगबंधन
चक्कर ले-ले दूल्हे के संग,
लिए जमानत का गठबंधन।
हुए इकट्ठे एक मंच पर,
बड़े-बड़े शातिर,सब चोर,
कोस रहे थे चौकीदार को,
जिसमें जितना भी था जोर।
ई.डी और पुलिसवाले भी,
सी.बी.आई के अधिकारी,
सभी इशारों पर चलते थे,
जब वे सत्ता में रहते थे।
भैंस ढूँढना,ढोर घुमाना,
गुण्डों को संरक्षण देना,
जो भा जाए नेता के दिल,
उसको अगवा करवा लेना।
चमचे उनके अधिकारी थे,
जब तक सत्ता में विपक्ष थे,
आज मिली जो इन्हें छूट है,
सभी समस्याओं की जड़ है।
आए दिन है गड़बड़ झाला,
चोर बने! ई.डी. के निवाला
चश्मिश-गिरगिट,पलटूटोली,
घपले बाजों की हमजोली।
लूट-वसूली जनता से कर,
शहजादों का बटुआ भरना,
गधहे का कर चरण वन्दना,
सत्ता में किस विधि से आना?
हुआ विचार विमर्श विविध ही,
निकल न पाया था निष्कर्ष,
तख्त चढ़ाओ पप्पू को ही,
किस विधि हो इसका उत्कर्ष ?
डॉ सुमंगला झा।