चलते - चलाते: उत्तराखण्ड जोशी मठ
उत्तराखण्ड की खूबसूरती,
ऊँची -ऊँची पर्वत श्रृंखला,
सौंदर्य से ओतप्रोत देवभूमि,
मधुर-सुसंस्कृत देवबालाएँ।
औली का बर्फ,कृत्रिम झील,
नन्दादेवी के शिखर दर्शन,
धारा देवी के अश्रु पूरित नयन,
धौलीगंगा अलखनंदा के जल।
घाटी के रक्षक नरसिंह देव,
वहाँ के जन-जन की आस्था,
अनुभूति में रचे-बसे संस्कृति
संस्कार के अभिन्न संस्करण।
आज वहाँ विकट प्रश्नचिन्ह है,
क्या रहेगी सुरक्षित यह देवभूमि,
भूस्खलन, भू-धसान, भूकम्प, की
अप्रत्याशित प्राकृतिक आपदा से?
लोगों के धँसती जमीन में,
मेहनत से लगाई आमदनी के
उम्मीद की नष्ट होती फसल,
जैसे टूटती साँस हो बेबस की।
घरों की विदीर्ण दीवारें,धँसते फर्श,
टूटे- फटे छतों के कारण बेघर लोग,
कैसे-कब कहाँ तक भाग सकते हैं,
पुरखों की जमीन छोड़ कर ये लोग।
जड़ों से उखड़, कहीं और बस जाना,
आसान नहीं है, माँ-मिट्टी से बिछुड़ना,
लाखों लोगों को खाना-कपड़ा ही नहीं,
पूर्वजों की जमीन,अपना समाज चाहिए।
इन्हें है आवश्यकता,दोहरी व्यवस्था की,
जोशी मठ में अपने पूर्वजों के जमीन की,
सुरक्षित जीवन हेतु सुरक्षित आवास की,
सरकार मजबूत घर बना कर दे इन्हें भी।
धामी सरकार, केन्द्र सरकार हो जागृत!
करें इन मूल वासिंदों के लिए स्थाई प्रबंध,
खाली कराएं सरकारी जमीन अवैध रूप से
कब्जा किए गए घुसपैठिए बांग्लादेशियों से।
अपने मूल वासिंदों को बसा, कर सुरक्षित,
अवैध घुसपैठियों को कर देश से निर्वासित,
देश-हित,भारतीय संस्कृति के संरक्षण हित,
सी.ए.ए.,एन.आर.सी.,यू.सी.सी.,है सर्वहित।
डॉ. सुमंगला झा।