चलते - चलाते : बैठो अकेले, आ जाना।
जब बहुत क्षुब्ध हो जाओ, चहेते अपने लोगों से,
बैठो जा कर अकेले ही,खुली हवा में;आकाश तले,
सुनो!कुछ चिड़ियों की चहचहाट,कबूतरों का गुटरगूँ,
देखो उड़ती तितलियाँ, सुनो तोते के झुंड की टी..टी..
कितनी रोचक होती है,छोटी सी टिटहरी की ट्वीट,
या फिर चंचल गिलहरियों की स्क्रुव्रुईल एवं व्यस्तता,
सधे दो पाँवों पर चलती है,बड़े से अखरोट को थामें,
आँखों की भावों को पढ़,भागती हैं,मिलती ज्यों नजरें।
बरबस हँसी आ जाती है,देख इनकी सच्ची मासूमियत,
नीला आकाश,हवा के झोंके,भागते काले बादल-समूह,
सूखी धरती पर,पहली बर्षा की बूंदों की बरसती फुहारें,
मिट्टी से आती सोंधी खुशबू,उड़ा देती है,मन की व्यथायें।
यूँ ही नहीं होती है,ये प्रकृति सच्ची सहेली मनुष्यों की,
अवशोषित कर लेती है,हमारी अंतरात्मा की व्यथा भी,
देती है संदेश हमें 'ये'भी कि नहीं हो अकेले टूट कर भी,
मैं हूँ! यहाँ,जन्म से मृत्यु तक प्रण लिए,साथ निभाने की।
बाँहें बिछाये, आगोश में लेने को तत्पर खड़ी रहूँगी,
बिना थके, बिना चिड़चिड़ाये, बिना उकताए तेरे लिए,
जब थक जाओ,दुनियाँ में; कष्टों का बोझ झेलते हुए,
अपने ही लोगों द्वारा दिये गए, अवहेलना-अपमान से।
माँ हूँ मैं तुम्हारी,आ जाना ममता भरी मेरी ही गोद में,
सीता की भाँति,शांतचित,सम्मान सहित स्वाभिमान से।
डॉ सुमंगला झा।