चलते - चलाते :मातृ दिवस
मातृदिवस के अवसर पर,
देते अब लोग बधाई हैं,
मातृत्व अर्थ कितना विस्तृत है,
समझ कहाँ कब पाते हैं?
एक समय था माँ की ममता,
हरदम छाई रहती थी,
माँ को कोई कष्ट नहीं हो,
चेहरे को पढ़ लेती थी।
बात काटना, तर्क-दलीलें,
नहीं कभी हम देते थे,
उनकी आज्ञा सिरोधार्य कर,
सोचा कभी न करते थे।
माँ है मेरी, वह जो कहती,
शत प्रतिशत है सत्य वही,
मेरा भला न दूजा सोचे,
माँ से बढ़ कर नहीं कोई।
बच्चे नहीं मनाते थे तब,
मातृदिवस या पृतृदिवस,
लेकिन सारी दुनियाँ सिमटी,
उनके ही चरणों में थी।
आज दूर हैं बच्चे माँ से,
दुनियाँ में हैं व्यस्त बहूत,
याद यदि वे कर लेते हैं,
हम होते संतुष्ट बहुत।
परिवर्तन के समयचक्र में,
पिसते हैं परिवार बहुत,
बच्चे रहें सुरक्षित औ खुश
इतना ही संतोष बहुत।
पीढ़ी दर पीढ़ी माँ होती,
बच्चों के ही लिए है जीती,
किसी जीव की भी वो माँ हो,
रक्षक बन भक्षक से लड़ती।
माँ की ममता,माँ का गुस्सा,
माँ की ताकत का अंदाजा,
माँ का त्याग समझ न आये,
जब तक माँ खुद न बन जाये।।डॉ सुमंगला झा।