इस्लाम की घृणा और असहिष्णुता के विपरीत सनातन धर्म तो हर मानव, हर जीव, हर जीवंत वास्तु, समस्त प्रकृति, यहाँ तक कि पूरे सृष्टि में परमेश्वर की छवि देखता है, उनकी पूजा तक करता है। ऐसे विशाल आध्यात्म का वोध दिलाने वाली सनातन धर्म की तुलना क्षुद्र नीयत वाली इस्लाम और उसके अल्लाह से करना कतई उचित नहीं। ओंकार स्वरुप मानने वाला सनातन धर्म कभी यह नहीं कहता कि अगर तुम मेरे अलावे किसी और भगवान को मानोगे तो मैं तुम्हें दंड दूंगा। सनातन धर्म में तो ‘विश्वेदेवाः’ का मंतव्य है कि सभी देवी देवता आध्यात्म स्वरुप हैं, पूज्य हैं । किसी भी वेद में यह नहीं कहा गया है कि ब्रह्मा, विष्णु या महेश उस व्यक्ति को दंड देंगे जो उन्हें न मानकर किसी और भगवान् को मानता है जैसा कि कुरान के इस आयात में कहा गया है।
इस्लाम के संस्थापक मुहम्मद को अनेकों देवी देवताओं को मानने वालों से इतनी घृणा थी कि उसने कुरान में उनकी ह्त्या करने तक की बात कही है।कुरआन में इस तरह की कम से कम ६० आयतें हैं जिसमें अन्य धर्मों या पंथों को मानने वालों से भेदभाव, घृणा, असहिष्णुता तथा धार्मिकविद्वेष की बात कहीं गयी है (पढ़ें “60 Hateful & Intolerant Verses of Quran (Parts-1 & 2)” https://articles.thecounterviews.com/articles/60-hateful-intolerant-verses-quran-part-1/ and https://articles.thecounterviews.com/articles/60-hateful-intolerant-verses-quran-part-2/)।यही कारण है कि आज पूरे विश्व में कुरान के आधार पर लगभग >१७५ जिहादी संस्थाएँ चल रही है जिसका उद्देश्य सिर्फ इस्लामी आतंक फैलाना है (पढ़ें "Is Quran a source of hate and intolerance”, https://articles.thecounterviews.com/articles/is-quran-a-source-of-hate-and-intolerance/) । इसके ठीक विपरीत विश्व में लगभग १३० करोड़ हिन्दू हैं लेकिन हिन्दुओं का धर्म ग्रंथ वेद, उपनिषद अन्य धर्मावलम्बियों के प्रति असहिष्णुता या जबरन धर्म परिवर्तन का अधिकार नहीं देता। हिन्दुओं का एक भी आतंकवादी समूह नहीं जैसे कि इस्लाम का अल-क्वायदा, ISIS, तालिबान, मुजाहिद्दीन, लश्कर, जैश, बोको हराम इत्यादि आतंकी समूह दुनिया भर में फैले हैं।इसलिए सनातन धर्म का इस्लाम से तुलना बेतुका है।
यह बात भी अति उल्लेखनीय है कि कुरान में यहूदियों, जोराष्ट्रियन, ईसाईयों, जीसस क्राइस्ट, उनकी माता मेरी आदि के प्रति घृणास्पद बातें लिखी गयी है।इससे यह बात बिलकुल स्पष्ट हो जाती है कि कुरान ईसाई धर्म फैलने के बहुत बाद में आया है और यह तार्किक भी है क्योंकि दुनिया जानती है कि इस्लाम की स्थापना सातवीं सदी में मुहम्मद (जिसे वे पैगम्बर मानते हैं ) द्वारा किया गया था।अतः अरशद मदनीं का यह तर्क कि विश्व का पहला मानव मुसलमान था, सनातन धर्म की उपेक्षा करने वाली एक मनगढंत कहानीं है। अगर ऐसा ही होता तो विश्व की सबसे पुरातन धर्म ग्रंथ वेद और उपनिषद में हर मुसलमान की आस्था होती, घृणा नहीं।
विश्व में बहुतेरे लोगों का यह मानना है कि इस्लाम एक कैंसर रूपी बीमारी है जिसे अपनी सरजमीं पर बढ़ने से रोकना ही होगा अन्यथा यह कैंसर आपको निगल जाएगा (जैसा अधिकाँश इस्लामी देशों में हुआ था ) या फिर आपको वह कैंसर वाला हिस्सा काट कर फेंकना पड़ेगा जैसा भारत से साथ हुआ था जिसमें इस्लाम रूपी कैंसर से ग्रसित अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश काटा गया (पढ़ें “Britain Diseased with Islamic Cancer” https://articles.thecounterviews.com/articles/britain-diseased-with-islamic-cancer/)। नेहरू और कांग्रेस ने हिन्दुओं के साथ छल कर भारत को धर्म के नाम पर विभाजन होने के पश्चात भी मुसलमानों को वोट बैंक बनाकर यहाँ रखा जो अपनीं जनसंख्याँ इस रफ़्तार से बढ़ाते हैं कि आज भारत पर पुनर्विभाजन का खतरा आ गया है। इसके लिए देश कभी भी नेहरू और कांग्रेस को क्षमा नहीं करेगा (पढ़ें “विभाजन विभीषिका और भारतीय धर्म” https://articles.thecounterviews.com/articles/indian-partition-and-indian-religions/)। भारत का धार्मिक अनुसांख्यिकी को सुरक्षित रखने के लिए हिन्दू राष्ट्र घोषित करना अत्यावश्यक है।
आज इस्लाम का विस्तार पूरे विश्व में कैंसर की तरह बढ़ रहा है, बाँकी धर्मों से लगभग 50% ज्यादा।भारत में भी लगभग यही क्रम है जिसके फलस्वरूप १९५१ के लगभग ९.४ % मुसलमान आज लगभग १७% हो गए हैं और उसी अनुपात में हिन्दुओं की प्रतिशत जनसंख्याँ घटती जा रही है। मुसलमानों की असहिष्णुता हिन्दुओं को अपने ही देश में, अपनी ही जमीन से पलायन करने को वाध्य कर रहा है।इसीलिए हाल के वर्षों में यह आवाजें उठ रहीं हैं कि अगर विश्व में 23% मुसलमानों के लिए ४७ इस्लामी धर्म-देश हैं तो फिर 16% हिन्दुओं के लिए भारत एक हिन्दू राष्ट्र क्यों नहीं हो सकता (पढ़ें "भारत एक ‘हिन्दू-राष्ट्र’ हो"https://articles.thecounterviews.com/articles/india-hindu-nation-rashtra-indian-religions/) ? भारत को एक मात्र हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए अगर संविधान का भी संशोधन करना पड़े तो यह अवश्य किया जाए।याद रहे संविधान के १०० से ज्यादा संशोधन हो चुके हैं।हाँ ! ध्यान रहे कि इस्लाम और ईसाई धर्मावलम्बियों को भी भारत में वही सब अधिकार दी जाएँ जो उन देशों में हिन्दुओं को प्राप्त हैं ।