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“भारत जोड़ो”: कितना मिथ्या कितना सत्य ?: भाग-२

कांग्रेस अपने लिए ऑक्सीजन की तलाश में सड़कों पर भटक रही है जिसे 'भारत जोड़ो' का नाम दिया गया है।कुछ लोग इसे यूं भी समझनें लगे है कि कांग्रेस अपने मूल उद्देश्य से भटक कर पूरी तरह से सड़कों पर आ गयी है। देश का शासन गया और प्रदेशों का भी। जिन तीन राज्यों में राहुल गांधी २०१८ में झूठ के सहारे चुनाव जीते थे उनमें से एक मध्य प्रदेश तो पहले ही हाथ से निकर चुका है और बाँकी राजस्थान व छत्तीसगढ़ में इतने अंतर्कलह हैं कि अगली चुनाव में वहाँ हारना लगभग तय माना जाता है।तो इस तरह कांग्रेस का देश और राज्यों से लगभग पूरा सफाया हो जाएगा। बस एक राज्य झारखंड रह जाएगा जहाँ की भ्रष्ट सोरेन सरकार की उंगली थामे और दूसरे तामिलनाडु में क्रिस्चियन सांप्रदायिकता की पराकाष्ठा पार कर रहे स्टालिन सरकार में पिछलग्गू बना कांग्रेस चल रहा होगा । यह कांग्रेस पार्टी के लिए चुल्लू भर पानीं में डूब मरने जैसी बात ही है।

राजनीति में उठा-पटक, हार-जीत चलती रहती है लेकिन अपने आदर्शों की बलि चढ़ाकर विरले ही कोई पार्टी जीवित रहा है। सोनियाँ-राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस का ह्रास अप्रत्याशित है।सोनियाँ गांधी उर्फ़ एंटोनियो माइनो ने कांग्रेस को जिस ‘मुस्लिम व क्रिश्चियन वोट बैंक’ की लोभ में 'हिन्दू-विरोधी' होने की आम छवि प्रदान की उसका फल उन्हें अब भुगतना पड़ रहा है। यह हिन्दू-विरोधी छवि ख़ास कर सोनियाँ गांधी ने दी है जब उन्होंने "हिन्दू आतंकवाद का एजेंडा गृह मंत्री शिंदे के मार्फ़त शुरू करवाया था।हिन्दुओं के प्रति उनकी उदासीनता से काफी लोग आहत हुए थे जिन्होंने बीजेपी का साथ देना बेहतर समझा। इसके अलावे भी उन्होंने और उनकी सरकार ने हिन्दू आस्थाओं के अवहेलना की। इन सबों से बड़ा कारण रहा अतिवादी या कट्टरवादी मुसलमानों का साथ देना, चाहे वह राम जन्मभूमि का मुद्दा हो, राम सेतु का, गोधरा-हिन्दू-ह्त्या काण्ड के बाद गुजरात दंगे का या फिर भारत में अवैध घुसपैठिये बांग्लादेशी या रोहिंग्या मुसलमानों के साथ देने का। कांग्रेस का चेहरा मुस्लिम-परस्त और हिन्दू-उदासीन या हिंदी-विरोधी बनता गया जो समय के साथ कुछ अन्यान्य मुद्दों (जिसे भ्रष्टाचार, परिवारवाद, चाटुकारिता आदि) के साथ उनके लिए घातक होता गया। कांग्रेस पार्टी की फिरका-परस्त कट्टरवादी मुस्लिम पार्टियों से चुनावी सहयोग ने अपने ही मुँह पर कालिख पोतने जैसा घृणित काम किया है (पढ़ें ‘Congress loses conscience’ https://articles.thecounterviews.com/articles/congress-rahul-radical-muslims-furfura-iuml-kerala-assam-bengal/) I

यह तो सर्विदित है कि राहुल गांघी जी की पदयात्रा कुछ भी है लेकिन भारत जोड़ना तो कतई नहीं; क्योंकि भारत न टूटा है और न ही टूटने के कोई आसार हैं।हाँ इतना जरूर है कि कांग्रेस पार्टी के अंदर के विद्वेष और दरार अवश्य हैं साथ ही हाल के वर्षों में राहुल गांधी के खिलाफ आवाज बढ़ती जा रही है। इसीलिए पार्टी के अंदर ही उनकी लोकप्रियता और स्वीकार्यता बचाने की जद्दो-जहद जारी है जिसके लिए यह पद यात्रा आरम्भ की गयी है(पढ़ें "“भारत जोड़ो”: कितना मिथ्या कितना सत्य ?" https://articles.thecounterviews.com/articles/bharat-jodo-protest-of-congress/) । इसके अलावे विपक्ष में जहाँ तृणमूल, राजद और जदयू का कद बढ़ता जा रहा था वहाँ कांग्रेस का रुतवा बढ़ाने के लिए भी यह प्रयास है।इसके लिए कांग्रेस ने काफी खर्च किया है और यह खर्च बढ़ता ही जाएगा।६० वातानुकूलित कंटेनर, उसे ढोने के लिए ६० लारी, टेंट, बेडिंग,फर्नीचर ,रसोई पकाने के सामान और रसद आदि सब लगाकर लगभग १०० गाड़ियों का काफिला १५० दिनों के लिए चल रहा है। कांग्रेस के पास धन की कोई कमी नहीं, यह देश के अति भ्रष्टतम राजनैतिक दलों में से एक माना जाता रहा है। याद रहे, २०१३ में एक रिपोर्ट में छापे खबर के अनुसार सोनियाँ गांधी विश्व के अमीरतम औरतों में से एक थीं।

यात्रा की शुरुआत में तो कांग्रेस के नेतागण और "भारत जोड़ो" यात्रा के समाचार सोशल, टीवी मीडिया और समाचार पत्रों के मुखपृष्ठ पर छाए रहे लेकिन अब लोगों में उनके लिए एक ऊब सी आने लगी है। इस यात्रा के ठंढे पड़ने में हाल के दिनों में तीन राज्यों में चल रहे चुनावी गतिविधियाँ भी हैं।साथ ही इस यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने जैसी हरकतें की है उससे कांग्रेस की बदनीयती और हिन्दू विरोधी मानसिकता फिर सामने आने लगी है। इस यात्रा के दौरान लोगों ने भारत विरोधी या पाकिस्तान समर्थक नारे भी लगाए हैं।याद रहे राहुल गांधी और कन्हैया कुमार दोनों ही "टुकड़े टुकड़े" गैंग के सदस्य हैं। फिर इस यात्रा में भारत की भलाई के लिए क्या अपेक्षा की जा सकती है ? कुछ भी नहीं। यह बात और है कि इस यात्रा से कांग्रेस को तीन राज्यों हिमाचल, गुजरात और दिल्ली में चल रहे चुनावों में भारी नुक्सान होने की आषंका भी है जहाँ राहुल गांधी और कांग्रेस के अन्य शीर्ष नेता प्रचार नहीं कर सके।

यात्रा के दौरान राहुल गांधी की काफी सारी फूहड़ता भी दिखी है वह चाहे सड़क पर दौड़ लगाने का हो, नाचने का या फिर अपरिचित लड़कियों और महिलाओं को गले लगाने का। इसका श्रेय यात्रा संयोजक को जाता है जो पहले से ही आने वाले पथ में ऐसे विज्ञापनी फोटो शूट के लिए मसाले तैयार रखते हैं चाहे वह हिजाब वाली लड़की हो, अन्यान्य कोंग्रेसी कार्यकर्ताओं की बहु-बेटीको छाती से लगाना हो, तलवार भाँजना हो या फिर बच्चे का पैसे वाला गुल्लक। ये चित्र कतई पद यात्रा के संजीदगी का संकेत नहीं देतीं।

जनता से जुड़ने की पद यात्राएँ हमेशा अच्छी होती हैं। अगर रास्ते में आने वाली जनता बेरोकटोक यात्रा करने वाले नेता से जुड़ सके और अपनी अपनी बातें रख सके तो उस क्षेत्र के राजनैतिक तथा सामाजिक परिपेक्ष का एहसास होता है।लेकिन अगर चुन- चुन कर सिर्फ उन लोगों को मिलने दिया जाए जो ऐसे यात्रा के संयोजकों को भाता हो तो फिर उसका कोई महत्त्व नहीं वल्कि अपने आप से छल करने जैसा है।आज कांग्रेस इस यात्रा के मार्फ़त एक विज्ञापन जैसा फिल्म बना रही है जिसके निर्माता निर्देशक सोनियाँ-राहुल गांधी और उनके इर्द गिर्द रहने वाले चाटुकार हैं। ऐसे यात्रा से न तो कांग्रेस की भलाई होगी न ही बीजेपी को कोई नुकसान। हाँ ! राहुल गांधी का अपने ही पार्टी में शायद रुतवा बढ़ जाए। जहाँ तक क्षेत्रीय दलों के सहयोग का सवाल है तो कोई नया राजनैतिक दल जो अब तक कांग्रेस का सहयोगी न रहा हो, नहीं जुड़ा है।अतः अगर कांग्रेस पार्टी २०२४ लोकसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ विपक्षी मोर्चा का नेतृत्व करने का सोच रहा हो तो जरूर उसे मायूसी होगी।

कांग्रेस पार्टी द्वारा शुरू किया गया "भारत जोड़ो यात्रा" किसी भी प्रकार भारत जोड़ो नहीं वल्कि 'राहुल गांधी व कांग्रेस बचाओ' जैसा प्रतीत होता है।इसे किसी भी तरह गांधी जी के पदयात्रा से तुलना करना गांधी जी का अपमान होगा जिन्होंने सिर्फ और सिर्फ भारत के लिए निःस्वार्थ अपना आंदोलन किया था न कि अपनी छवि बढ़ाने का; जैसा अभी राहुल गांधी और कांग्रेस कर रही है।

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