सम्पादकीय : प्रतिमत की समालोचना
चारसाल पहले आरम्भ किये गए प्रतिमत पत्रिका ने यथासंभव विविध समसायिक विषयों पर, विभिन्न विचारों एवं मतान्तरों को व्यक्त करने की यथासंभव कोशिश है। युद्ध की विभीषिका उसके दुष्परिणामों के अलावे उत्प्रेरक कारकों एवं कारणों को जनमानस के प्रतिक्रियात्मक संदर्भ के साथ प्रस्तुत करने का प्रयास लेखन द्वारा किया गया है। विश्व जहाँ एक ओर जीवन के खोज में अन्य ग्रहों की जानकारी प्राप्त कर रहा है वहीं जीवन से परिपूर्ण धरा का विनाश भी इन्हीं मनुष्यों द्वारा, अपने स्वार्थपूर्ति हेतु प्रकृति दोहन एवं अतिआधुनिक शस्त्रों द्वारा अत्यंत तीव्र गति से अनजाने ही किया जा रहा है।
सीरिया, ईरान-इराक, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश जहाँ गृहयुद्ध में झुलसते रहे हैं; वहीं अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर रूस-यूक्रेन तथा इस्राइल-हमास युद्ध के कारण विश्व की महाशक्तियाँ आपसी टकराव की कगार पर हैं। इन सभी युध्द के कारण मानवीय भावनाओं, मानवता, मानवजीवन, अरबों खर्च करके किये गए विकास व्यवस्था तो हताहत हो ही रहे हैं, प्रकृति एवं पर्यावरण भी उससे अछूता नहीं रह गया है।
ज्वालामुखी, भूकम्प, भूस्खलन, सुनामी, बाढ़, सूखा, तूफान तो कहीं चक्रवात का आतंक मनुष्यों के समान्य जीवन को मुश्किलों में कैद कर जीवन-मरण के बीच खड़ा कर दे रहा रहा है। एक ओर जहाँ मानवता के संरक्षक कहे जाने वाले लोग प्रताड़ित एवं हताहत लोगों की जिंदगी बचाने के लिए अथक प्रयास में जुटे हैं वही आतंकवादी कुकृत्यों एवं युद्धों के कारण जीवन का क्षरण हो रहा है। वर्षों की मेहनत से अर्जित की गई संपत्ति, दैनिक व्यवसाय व्यवस्था, आजीविका, आवास की सुविधा के अलावे परिवार-जनों का अचानक छिन जाना किसी के लिए भी हृदय विदारक है फिर भी मानव इसे झेलने के लिए मजबूर है। यह जीवन की क्षणभंगुरता का ऐसा पाठ पढ़ाता है कि पर्वत समान धैर्य वालों का भी मनोबल टूट जाता है। आज प्रत्येक मनुष्य को देश-काल, जाति-धर्म, मजहब-रिलीजन से ऊपर उठ, प्रकृति एवं इंसानियत के हनन के कारक तत्वों तथा कारणों के प्रति चिंतन एवं सुधार करने की आवश्यकता है।
प्रतिमत पत्रिका ने लगभग सभी जीवंत एवं समसामयिक विषयों एवं पहलुओं को आत्मसात कर अपने विचारों को तर्कसंगत ढंग से प्रस्तुत करने की कोशिश की है। राजनीतिक, सामाजिक, साहित्यिक, विज्ञान, पर्यावरण के अलावे धार्मिक तत्त्वों के सकारात्मक एवं नकारात्मक तथ्यों को भी निर्भीकता से उजागर करने का प्रयास किया गया है। यद्यपि अपनी निर्भीकता एवं स्पष्टवादिता के कारण पत्रिका के संचालन कर्ताओं को अपमान जनक शब्दों एवं धमकियों का भी सामना करना पड़ता है परन्तु 'साँच को आँच क्या'? सोना भी तो आग में तप कर ही चमकता है। दृढ़ इक्षाशक्ति के साथ वर्तमान वस्तुतथ्य को प्रवर्तक के प्रवर्तन कार्यों द्वारा एक वैदिक मंत्र ही अग्रसारित कर रहा है। इस नश्वर संसार में ईश्वर की इक्षा ही सर्वोपरि एवं शिरोधार्य है। सामाज की भलाई एवं जागरूकता के लिए सदैव कर्मशील रहना प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है।
"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचिन्।
मा कर्मफल हेतुर्भूर्मा ते सङ्गोsस्त्वकर्मणि।।
श्रीमद्भागवत गीता 2.47।"
... श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि तुम निरंतर कर्मफल के प्रति चिंतन मनन मत करो, तुम्हारा कर्म पर ही अधिकार है कर्मफल पर नहीं, अतः अकर्मण्यता का त्याग कर कर्म करो।