Current generation

चलते चलाते: हमारी पीढ़ी

हमारी पीढ़ी साठ,पैसठ,
सत्तर-पछत्तर के बीच की है।

इन्हें एहसास है लालटेन,डिबिया,
मोमबत्ती या टॉर्च की रोशनी का,
पहली बार बिजली के घर आने,
लट्टू,(बल्ब) के चमक की खुशी का।

'ये' परिचित हैं, उन उपले-लकड़ी,
भूसी और कोयले के चूल्हे की
आग से, घर के औरतों के द्वारा
पकते-पकाते, उपाहार-आहार से।

ठंड के दिनों में इकठ्ठे हो बैठते,
सिगड़ी, बोरसी, घूरे की आग में,
शकरकंदी, आलू, बैगन, भुट्टे, चने,
औ ज्वार की झाड़ के ओढ़े सेंकते।

पढ़ते कम, बातें ज्यादा करते,
लड़ते-झगड़ते, पुनः एक होते,
घर- रिश्तेदारों के सभी बच्चे,
एक कमरा, एक ही बल्ब होते।

ज्ञानी बच्चों का प्यारा काम था
छोटों को पढ़ाना, पाठ समझाना,
धौंस जमाना, डांटना-फटकारना।
ये भी हिस्सा था, पठन-पाठन का।

हम डरते थे, परवाह भी करते थे,
बुजुर्गों- बड़ों की, माता-पिता की,
समाज, पड़ोसी और रिश्तेदारों की,
खानदान के नाक की, बदनामी की।

इक्षाओं की अहमियत बस इतनी थी,
छोटी-छोटी बातों में खुशियाँ भरी थी।

अपनी प्रशंसा, प्यारी सी थपकी,
सभी बड़े खुश हों घर के हम से।
चेहरे की खुशी या गर्व देख उनके,
हम होते खुश!थे सातवें आसमान पे।

समय हमारे कुछ इस तरह बदले,
संयुक्त परिवार, एकाकी में बदले,
एकाकी परिवार भी एक-एक होते,
संघर्ष की आंधी में टूटते- बिखरते।

युवाओं की पीढ़ी वफादारी ढूंढते,
भीड़ के बीच, अकेलेपन से जूझते,
स्वयं में सिमटते,भविष्य की चाहतें,
हवा के झोंके में तिनके से बिखरते।

जिम्मेदारी के चक्र में पिसती सी 'ये'
औरतें,आर्थिक रूप से बनी स्वाबलंबी,
समय नहीं इन्हें, लल्लो- चप्पो करने की,
कड़वी-तीखी-तिक्त,किसी की सुनने की।

तीन पीढ़ियों से ताल - मेल बिठाते,
माता-पिता, बड़े- बुजुर्ग, सास-ससुर,
देवर, जेठ-जेठानी, पति, रिश्तेदारों,
बच्चों की सुनते- सुनाते हम रहे बुढ़ाते।

आज भी हमारी पीढ़ी की औरतें रह रहीं हैं,
समय- चक्र में पिसती,अपनी अहमियत को
ढूंढती, नई पीढ़ी के विचारों को स्वीकारती।
परिवर्तन के इस आंधी को आँचल में समेटती।

परंपराओं में लिपटी, नई पीढ़ी से ताल-मेल बिठाती,
समय, संघर्ष, बातों-विचारों को तौलती-परखती।
सभी की सुनती, सभी की खुशियों में अपनी खुशी!
ढूंढती, पिसती, स्वयं को खोती, स्वयं में सिमटती।

ये अंतिम पीढ़ी है हमारी ऐसी औरतों की! जो रही हैं,
तीन पीढ़ियों, परिवार और समाज की परवाह करती।

डॉ. सुमंगला झा।

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