
बिहार की गंदी राजनीति
बिहार में प्रजातंत्र का अभाव
स्वतन्त्रता के पश्चात् बिहार में लगभग सदैव से ही प्रजातंत्र का अभाव रहा है I वहाँ की मतदाता सूचि सदैव से विवादित रही है I इस आलेख का लेखक यानी मैं अपने ९ वर्ष की वाल्यावस्था में मतदान दे चुका हूँ जबकि मुझे यह भी पता नहीं था कि मतदान और मतदाता क्या होते हैं I वहाँ का मतदान अनेकों मापदंड पर दूषित रही है I कागजी बालोत पत्र के जमानें में लाठी और बाहुबलियों का बोलबाला रहता था I बोगस वोट आम बात थी और बूथ पर जबरन कब्जा कर लेना तो मानो बाएँ हाथ का काम था I हाँ ! इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन आने के बाद इसमें परिवर्तन अवश्यआए हैं I यहाँ प्रत्याशियों को वोट उसके गुण के हिसाब से नहीं वल्कि जाति धर्म देखकर दिया जाता रहा है I यही हमारा बिहार था और है I आगे कैसा रहेगा कोई नहीं जानता I
बिहार राजनीति में आपराधिक तत्व
वर्ष २०२५ के उत्तरार्ध में बिहार में विधान सभा चुनाव होने वाला है I सुशासन बाबू के नाम से जाने जानें वाले नितीश कुमार लगातार पिछले २० वर्षों से पलटी मार मार कर कभी बीजेपी तो कभी राजद की मदद से अपनी अल्पमत दल के प्रमुख बने वहाँ के मुख्य मंत्री रहे हैं I उनकी पलटी मारने की यह कला इतना मशहूर है कि कई लोग उन्हें 'पलटी-मार बाबू' के नाम से भी जानते हैं I कोई यह नहीं जानता कि अपनी सत्ता बचाने की लालच में वे अगली पलटी कब मार लेंगे I
उन्होंने गृह मंत्रालय लगातार अपने ही पास रखा है अतएव क़ानून व्यवस्था की जिम्मेदारी उनके ही पास रहा है I लालू प्रसाद / राबड़ी देवी के समयावधि में "जंगल राज" के नाम से चलने वाली बिहार सरकार की छवि काफी हद तक सुधरी है लेकिन राजद के गुंडों एवं अन्य आपराधिक तत्वों ने समय समय पर अपनी हरकत दिखाने की कोशिश करती रही है I ज्ञात रहे कि ये गुंडे और अपराधी लल्लू यादव के M-Y फार्मूले के कट्टरवादी मुसलमान और अपराधी यादव हैं I ये ही लल्लू और राबड़ी के समय लठैत और फिरौती गैंग थे और यही आज कल तेजस्वी यादव के भी ताकत हैं I जब भी चाहें आपराधिक गतिविधि को अंजाम देते रहते हैं I
अब जब चुनाव सर पर है तो नितीश सरकार की छवि धूमिल करने के लिए बिहार के आपराधिक तत्वों की गतिविधियाँ चरम पर है I यह आम तौर से माना जाता है कि मार-काट आदि की ये गतिविधियाँ लालू पुत्र तेजस्वी यादव के इशारे पर हो रहा है I अपना दोहरा चेहरा दिखाते हुए एक तरफ तो वे अपने जाने माने प्रतिद्वंदियों पर हमले करवाते हैं वहीं दूसरी ओर मीडिया में आकर सरकार को बदनाम करते हैं जिससे आने वाली चुनाव में वह स्वयं सत्ता हथिया सके I बिहार में प्रमुखतर राजद द्वारा चलाए जा रहे गंदी राजनीति के इस चेहरे से वहाँ की जनता परेशान और क्षुब्ध रही हैI
स्वतन्त्रता पश्चात् सन १९५० के दशक में बिहार की अच्छी स्थिति थी, इसकी गिनती देश के अग्रणी और प्रगतिशील राज्यों में होती थी। राज्य में शान्ति और स्थिरता थी, राजनैतिक गिद्ध बहुत कम थे। गरीबी जरूर थी लेकिन अधिकाँश लोग मिहनतशील थे और ईमानदारी से अपना गुजारा कर ही लेते थे I बेरोजगारी तेज रफ़्तार से बढ़ती चली जा रही थी और उसी रफ़्तार से घट रही थी राजनीति और प्रशासन की जनता के प्रति जिम्मेदारी I जनता में असंतोष बढ़ता जा रहा था लेकिन नेताओं के प्रति रोष नहीं I वर्ष १९६१ से राजनैतिक उठा-पटक शुरू हुई और ३० सालों तक चलती रही।स्वतन्त्रता के पश्चात ४३ सालों में अल्पकालीन 'जन क्रांति, शोसलिस्ट व जनता पार्टी' के छिट-पुट सत्ता परिवर्तन को छोड़, बिहार में कांग्रेस का ही शासन था I समयांतर में सभी भ्रष्ट और अकर्मण्य नेताओं ने मिलकर बिहार को अँधेरे में धकेल दिया है ।
बिहार की गंदी राजनीति का इतिहास
1990 में लालू के बिहार मुख्य मंत्री बनने के बाद उसने शासन प्रणाली को दुरुस्त करने की कोशिष भी की। अच्छी-अच्छी बातें करता था। यादव और मुसलामानों के लिए तो उसने बहुतेरे प्रावधान किए। यादव या मुसलमान जिस भी नौकरी के लिए साक्षात्कार में जाते, चुना जाना लगभग तय माना जाता था। बाद में उनहोंने पीढ़ियों से उपेक्षित पिछड़ी जाति को भी अपनी मुस्लिम यादव समीकरण में शामिल कर लिया जो अच्छा कदम था।
लालू का 'मुस्लिम-यादव (M-Y) चुनावी जनाधार काफी बढ़ चुका था और उसमें कुछ पिछड़ी जाति का भी समावेश हुआ । लालू राज में दूसरी जातियों के लिए धीरे-धीरे समस्याएँ बढ़ने लगी। बहुतों जमींदारों के जमीन जोत रहे कुछ खेतिहरों को उन जमीन के पट्टों का कब्जा मिलने लगा।पिछड़ी जाति को कानूनी रूप से सशक्त किया गया लेकिन साथ ही उच्च वर्ग की अवहेलना होने लगी। बिहार में ब्राह्मण या राजपूत होना अभिशाप बनने लगा। कुछ ब्राह्मण ने अपने जाति नाम रखने ही बंद कर दिए ताकि किसी नौकरी में आवेदन के दौरान उसकी जाति का पता न चल सके ।उच्च जाति के गरीबों की तो मानो शामत ही आ गयी थी। बिना मोटी रिश्वत के नौकरी मिलना नामुमकिन सा हो गया। तभी से बिहार में एक नया वर्ग-कटुता बढ़ने लगा था।
लल्लू यादव बिहार का बेताज बादशाह बन बैठा था। भ्रष्टाचार में लिप्त, अपनीं मनमानी करता था।लल्लू के बहुतेरे यादव लठैत, अंडरवर्ल्ड के बन्दूक और पिस्तौलधारी कट्टरवादी जिहादी और अपराधी बाएँ-दाएँ फिरौती गैंग थे। वह घोटालों पे घोटाले करने लगा और आवाज़ निकालनें वालों के मुँह पहले द्वारा धमका कर, नहीं तो फिर क़त्ल कर बंद कर देता। उसने चांदी के जूते और पैसे के बल, कोर्ट कचहरी में पैरवी करनें के लिए कई चाटुकार रख लिए थे। बाँकी आगे पीछे करने और प्रवक्ता के तौर पर कुछ ऊँची वर्ग के भी लोग रख लिए जिनमें कुछ विद्वान् भी शामिल थेऔर दुर्भाग्यवश अभी भी हैं I कुछ तो पालतू पशु की भाँति अब भी उसी का राग अलापते हैं। लल्लू की चांदी ही चांदी थी। शासन में मनमानी करने लगा। शासन व्यवस्था प्रजातंत्र से हटकर एकतंत्र सी हो गयी। तभी ‘चारा घोटाला’ सामने आया और बेचारे को 1997 में जेल जाना पड़ा। जेल तो चला गया परन्तु अपनी अंगूठा छाप पत्नी रबड़ी देवी को मुख्य मंत्री के कुर्सी पर मूर्ती की तरह आसीन कर गया (और शायद इसीलिए सम्प्रति राष्ट्रप्रति को तेजस्वी ने अपनी माँ के अनुरूप मूर्ति शब्द का प्रयोग किया था) । बिहार में तत्पश्चात भी उसी का बोलबाला था परन्तु जेल के सलाखों के पीछे से। उसकी मनमानी पर शासन की मोहर लगाने के लिए रबड़ी का अंगूठा काम कर रहा था। उसका दबदबा बरकरार था और मुस्लिम-यादव-दलित ‘वोट बैंक’ की कृपा से यह दबदबा २००५ तक बना रहा। लोग त्राहि-त्राहि कर रहे थे। विकास ठप्प, रोजगार ठप्प, आमदनी ठप्प, शिक्षा तो कब की ठप्प हो चुकी थी।
आतताई का अंत
हर आतताई का अंत होता है और लालू-रबड़ी का भी हुआ। २००५ में परिवर्तन की एक ऐसी आंधी आई कि आतताईयो को उड़ा ले गयी। बिहार में JDU - BJP का सुसाशन आया। क़ानून व्यवस्था धीरे-धीरे ही सही, कुछ हद तक ठीक की गयी। बहुतेरे आतताइयों का एनकाउंटर हुआ या फिर जेल। लालू-रबड़ी का फिरौती जंगल राज ख़त्म हुआ। लोगों के मन से भय धीरे धीरे निकला और विकास का दौर शुरू हुआ। बिहार में शहर-शहर विश्व स्तरीय सड़कें बनी। कई कल्याणकारी प्रोजेक्ट्स की भी शुरुआत हुई । कृषि व्यवस्था सुधरी। कुछ पुराने और जर्जर इंडस्ट्रीज का जीर्णोद्धार भी हुआ। भ्रष्टाचार में भी कुछ कमी आयी।
विद्यालयों को सुधारनें का काम भी हुआ लेकिन शिक्षा और शिक्षण का घटिया स्तर नहीं सुधरा। जो कुछ भी कार्यरत विद्यालय या शिक्षण संस्थान थे, जर्जर स्थिति में, सिर्फ नाम के लिए ही थे। नितीश बाबू के राज में कुछ सरकारी मेडिकल, इंजिनीरिंग और पॉलिटेक्निक कॉलेज खुले। लेकिन ऐसा माना जाता है कि लैबोरेटरी में अपर्याप्त प्रायोगिक उपकरण व अत्यधिक रिजर्वेशन के तहत शिक्षकों का अनुभव व स्तर असंतोषप्रद रहा है।इसका नतीजा यह हुआ कि उच्च तकनीकी शिक्षा की गुणवत्ता नीचे ही रहा। विद्यालयों में उच्च स्पर्धा के लिए तैयार कराने वाले शिक्षकों की कमी के कारण होनहार विद्यार्थी अपना नामांकरण करवा कर कोटा या अन्य शहर जाकर पढ़ते और सिर्फ वार्षिक परिक्षा के लिए विद्यालय आते थे। शिक्षा में आरक्षण ने शिक्षकों का स्तर इतना घटा दिया है कि मानो उसकी कमर ही टूट गयी है। अबतक यह किसी भी उपचार के परे चला गयाहै। आरक्षण की व्यवस्था अन्य प्रदेशों में भी है लेकिन कहीं भी पठन-पाठन का स्तर इतना नीचे नहीं है। यह सब लिखने में बुरा लग रहा है लेकिन वास्तिकता से आँखें नहीं मुंदी जा सकती I
नितीश की अंतिम पलटी
वर्ष २०२२ में जब राजद के प्रलोभन को देख नितीश बाबू ने पलटी मारी तो उनकी पार्टी बड़े अल्पमत में थी I उन्हें अक्सर यह डर सत्ता रहा था कि लल्लू यादव उस पर हॉबी होते जा रहे थे और उन्हें घुटन सी महसूस होने लगी थी I लालू पुत्रों की नजरें मुख्यमंत्री की कुर्सी हथियाकर नितीश कुमार की कार्यक्षमता को बंधक बनाने का था, बिहार की किस्मत रसातल की ओर बढ़ती गयी ।जंगलराज की पुनः स्थापना हुई जिसके फलस्वरूप गुंडागर्दी, मारपीट, ह्त्या, रंगदारी, चोरी, लूट-पाट, बलात्कार आदि आम बात हो गयी है जो किसी अखबार के पन्ने पर कम ही आता था। सबसे बड़ी बात हुई कि लालू कुनबे की सोशल मिडिया पर पकड़ बढ़ गयी। हर पांचवें मिनट राजद या उसके अनेकानेक हैंडल से बिहार के चमकने की खबर आने लगी थी । कुर्सी हथियाने के पहले महीनें ही वहाँ की स्वास्थ्य सेवा दुरुस्त हो जानें का ढकोसला किया जानें लगा था और फिर वहाँ की कृषि व्यवस्था की । फिर खबर आयी कि वहाँ इंडस्ट्रीज के भरमार होने लगे और एक अखबार ने तो उसके झूठी चित्र तक लगा दिए। हर आए दिन १० लाख सरकारी नौकरी देने की बात की जा रही थी I पहले के दिनों में तो इन झूठ कार्यों का श्रेय थोड़ा नितीश कुमार को भी दिया जाता था लेकिन बाद में उन्हें भी अलग थलग कर दिया गया । यह सब देखते नितीश को फिर से पलटी मारनी पड़ी जिसको वे अंतिम कहते हैं I
सम्प्रति २०२५ का बिहार विधान सभा का चुनाव जब सर पर है और लालू कुनबे की साख दूषित हो चली है तो बिहार में बढ़ती अपराध से स्वतः ही लगता है कि इसे सुनियोजित तरह से लल्लू कुनबे द्वारा संचालित किया जा रहा है और इसका ठीकरा नितीश के मत्थे फोड़ा जा रहा है I इतना सबकुछ तो प्रथमद्रष्टा में ही झलक रहा है I सत्ता पाने के लिए यह एक गंदी राजनीति नहीं तो और क्या है ? राजद की यह कुत्सित मानसिकता उसे कहाँ तक रसातल में ले जाएगी, पता नहीं I
सत्ता में सशक्त राजनीतिज्ञ का आभाव
नितीश कुमार अब बूढ़े हो चले हैं और उनकी सोच में कुछ भी ऐसा नयापन नहीं जो राज्य की विकास को गति दे सके I उन्होंने न तो अपनी पार्टी और न ही अपने समर्थक पार्टी में से किसी होनहार व्यक्ति को आगे बढ़ने या बढ़ाने का काम किया I इस सब का यह नतीजा हो रहा है कि BJP-JD(U) गठबंधन में साफ़ सुथरी छवि वाला होनहार और प्रगतिशील नेता की कमी है जिसे आगामी चुनाव में भावी मुख्यमंत्री दिखाया जा सके, जो नितीश बाबू का जगह ले सके I ऐसे में तेजस्वी यादव चाहे चारा चोर का ही पुत्र क्यों न हो, चाहे रेलवे भर्ती में 'Land for Job’ घोटाले का अभियुक्त ही क्यों न हो, चाहे मेट्रिक फेल ही क्यों न हो, अपनी चापलूस गैंग को पूरी तरह संचालित कर बिहार के मुख्यमंत्री बननें का सपना देखरहा है I उसका ‘M-Y’ तंत्र पूरी तरह से गतिमान है जिसमें बांग्लादेशी और रोहिंग्या भी जुड़ गए हैं, जिन्हें राजद तंत्र द्वारा वोटर लिस्ट में सम्मिलित भी कर किया है I यही कारण है कि चुनाव आयोग के द्वारा बिहार के वोटर लिस्ट का सत्यापन कराना लल्लू कुनबे को विचलित कर रहा है I भगवान्बचाए बिहार को गंदी राजनीति से I