indecissive India

विड़म्बना

भारत की अंदरूनी राजनीतिक उथल-पुथल के बीच भी मोदी जी निर्लिप्त भाव से निरंतर कर्मयोगी बने हुए हैं।कर्नाटक चुनाव में कोंग्रेस के द्वारा किये गये झूठे वादों के भुलावे में सामान्य जनता आसानी से आ गयी। उन्हें कर्नाटक में मोदी सरकार द्वारा किये गए सैकड़ों जनहित एवं विकास के कार्य भी यदि दिखाई नहीं दिए हैं तो वे कोंग्रेसियों की देश विरोधी, हिन्दू विरोधी नीतियों की चक्की में पिसे जाने लायक ही हैं। मुस्लिम वोट एवं कहीं-कहीं बूथ-कैप्चर कर जीतने वाली कोंग्रेस पार्टी अब पूर्णतया नग्न हो बेशर्मी से जनता को लूटने का कार्य कर रही है। जनता के लिए कोंग्रेसियों के द्वारा किये वादे ठीक वैसे ही हैं जैसे भेड़ो को कहा गया हो कि इस ठंड में तुम्हें कम्बल दिए जायेंगे लेकिन यह नहीं बताया गया हो कि उन कम्बलों के लिए ऊन तो तुम्हारे ही खाल से उतारे जाएँगे।

लव-जिहाद, धर्म-परिवर्तन धर्म के नाम पर संविधान के विरुध्द आरक्षण आदि तुष्टिकरण करण की राजनीति कर्नाटक के हिन्दुओं के विरुद्ध एक खतरनाक कदम है,जिसके प्रति यहाँ के हिन्दुओं को सतर्क होना जरूरी है,लेकिन क्या वे सतर्कता से मतदान कर पाए? सम्भवतः नहीं! अन्यथा कोंग्रेस किसी भी तरह हिन्दू बाहुल्य क्षेत्रों में नहीं जीत पाती। यह हिन्दुओं की आपसी वैमनस्यता एवं मुफ्त की रेवड़ी के लोभ ही हैं जो उन्हें धीरे-धीरे रसातल में ले जा रही है।

कर्नाटक की सरकार भी राजस्थान, केरल, बंगाल, तमिलनाडु की तरह हिन्दुओं को दुधारी तलवार से घायल करने वाली है। प्रायः सभी कोंग्रेस पार्टी द्वारा शासित प्रदेशों में कोंग्रेसी नेता अपनी वादा खिलाफी के हर ठीकरे को मोदी के सिर फोड़ने की जी तोड़ कोशिष में लगी हुई है या चुप्पी साधे हुए है। युवाओं के लिए रोजगार, सरकारी नौकरियाँ,पेट्रोल के दाम में कमीं करना, गैस सिलिंडर के दाम की कमी ,फ्री बिजली, फ्री चावल, फ्री बस, किसानों की कर्ज माफी, विकास के मुद्दे सभी ठंडे बस्ते में डाल दिये गये हैं।

जनता को निरंतर गुमराह कर हर मुद्दे की नाकामी का दोष बीजेपी एवं मोदीजी पर मढ़ने की कोंग्रेस की परंपरागत नीति जारी है। कितना हास्यप्रद होता है, जब विपक्षी पार्टियाँ अपने द्वारा प्रशशित क्षेत्रों के अंतर्गत होने वाली अराजकता के लिए भी दोष मोदी पर मढ़ने की कोशिष करते हैं एवं बीजेपी प्रशासित क्षेत्रों में अराजकता फैलाने की जी तोड़ कोशिष करते हुए वहाँ की स्थानीय सरकार को बदनाम करने की साजिश में जुट जाते हैं।

विश्वस्तरीय ख्यातिप्राप्त प्राप्त मोदी जी के कदम ज्यों-ज्यों सशक्त भारत, विकसित भारत, सक्षम भारत की भव्यता को उत्कर्ष की ओर ले जा रहे हैं, वहीं उसी तेजी से उनके विरोधियों के दिल भी सुलगते जा रहे हैं। वे मोदी की छवि को धूमिल करने की जी तोड़ कोशिशें कर रहे हैं। विदेशी नुमाइंदों के साथ-साथ विदेशों से पैसे ले कर देशविरोधी गति विधियों में शामिल रहने वाले,विषवमन करने वाले पप्पू के चमचे, कोंग्रेस, कॉम्युनिस्ट और जिहादियों के समर्थक- संरक्षक कट्टर मुल्लों की जालसाजियाँ आये दिन खुल कर सामने आ रही हैं। कैंसर से भी ज्यादा खतरनाक कोंग्रेस, कॉम्युनिस्ट एवं भारत को चूहों की तरह कुतर-कुतर कर खाने वाले आतंकी, रोहिंग्या घुसपैठिये, चार बीबी चालीस बच्चों वाले मुफ्तखोर जमाती तथा उनके समर्थक हिंदुस्तान के लिए आस्तीन के साँप बने हुए हैं। यद्यपि ये जिहादी जमाती सम्पूर्ण विश्व के लिए अभिशाप हैं परन्तु विडम्बना देखिए कि सुशिक्षित एवं सशक्त कहे जाने वाले योरोपीय देश,अमरीका आदि भी इस इस्लामी कट्टरवादिता के कुत्सित कुकृत्यों झेलते रहने के लिए मजबूर हैं। उपहास्पद है! इस्लामी आतंकवाद पर लगाम न लगा पाने की असमर्थता को उदारता का परिधान पहना चुप्पी साधे हैं।

मानवाधिकार की बातें करने वाले, प्रेस की स्वायत्तता पर बातें करने वाले समूह अपनी ओछी राजनीतिक बयानों से कुछ ऐसे ही बने हुए हैं-जैसे 'चोर बोले जोर से'। देश के अन्दर रहने वाले दोहरी प्रवृत्तियों की मानसिक विकृतियों के शिकार लोगों पर सरकार का शिकंजा अत्यंत आवश्यक है। ये भारत विरोधी गतिविधियों के समर्थक देश को बर्बादी की ओर ले जाने में लगे हुए हैं और विडंबना देखिए कि अनेक कोंग्रेसी नेता इनके समर्थन में बेतुके बयानबाजी कर रहे हैं। भारतीयों को यह समझना आवश्यक है कि इन्हें विदेशों से आर्थिक सहायता भी हिन्दू विरोधी देशविरोधी गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिए मिलते हैं। धर्म और जाति से परे प्रत्येक भारतीय के लिए आवश्यक है कि वे अपने देश में देशविरोधी कारनामों को बढ़ावा न दें एवं दुश्मनों की चालों को समझें। निजी स्वार्थ वश कई नेता कट्टर वाद को बढ़ावा दे कर अनेक देशों को बर्बाद कर चुके हैं एवं वहाँ के मूल,सम्पन्न वाशिन्दों को शरणार्थियों के आवास में भेज उनसे उनके देश भी छीन चुके हैं। बहकावे में आकर गृहयुद्ध को प्रोत्साहित करना देश की बर्बादी का मूल कारण है। इराक, सीरिया, यमन, लीबिया, अफगानिस्तान आदि अनेकों देश स्वविवेक के अभाव में बर्बादी की कगार पर हैं।

मनुष्य चाहे किसी भी विचार धारा या धर्म से जुड़े हों,लेकिन यदि वह विश्वशांति, विश्वहित, मानवहित को अपने आचरण में नहीं लाता है तो वह जीवमात्र के लिए खतरनाक है और अस्वीकृत है। ईश्वर ने मानवजीवन बहुत तपस्या के पश्चात प्रदान किया है इसे जीव की भलाई के लिए उपयोग में लाना ही मनुष्य का कर्तव्य है। यदि विवेक रहित मनुष्य धर्म, मजहब, रिलिजन के नाम पर तलवार,गोली-बारूद या अपने घृणित आचरण से किसी अन्य धर्म पर दबदबा कायम करने के लिए व्यक्ति, समाज या विशेष समुदाय का नुकसान करता है, हत्या करता है तो वह जानवरों से भी ज्यादा निकृष्ट है।बकरीद पर लाखों करोड़ों जीव की हत्या यह सोचने के लिए मजबूर करता है कि आखिर जानवर कौन है निरीह बेजुबानों को दर्दनाक मौत देने वाला या दर्द से कराहते हुए दूसरों की जीभ के स्वाद के लिए मौत को प्राप्त करने वाला?

धर्म तो जीव मात्र को सम्मान देता है, सद्चरित्रता की पैरवी कर मानव एवं समाज को दया-प्रेम-ज्ञान-घ्यान के मार्ग पर अग्रसर कर उन्हें सदैव प्रगतिशील बनाता है।'चरैवेति-चरैवेति' के मंत्र के साथ समाज सुधार एवं प्रगतिशीलता के लिये प्रगतिशील विचारों को अपनाने की वकालत करता है,अतः जिन मजहब एवं रिलिजन में अप्रिय, अराजक, घृणित तत्व एवं घृणा, हत्या, बदचलनी फैलाने वाले विचारों को प्रश्रय दिया गया है, उन्हें स्वयँ ही इन अस्वीकार्य तत्वों का त्याग करना चाहिए।

ऐसे उद्धरण जो आज भी कुरान एवं बाइबल में मौजूद हैं, घृणित, अप्रिय व्यवहार, चरित्रहीनता, अपहरण, लूट-पाट, हत्याएँ आदि को मजहबी कार्य मानते हैं उन विचारों से बाल-मस्तिष्क को विषाक्त करते हैं,तिरस्कृत किये जाने चाहिए। अंबेडकर द्वारा जैसा कि मनुस्मृति को जलाने के संदर्भ में किया गया था ठीक वैसे ही कुरान एवं बाइबल के अंतर्निहित घृणित हिंसात्मक आयतों एवं संदर्भों के लिए भी विरोध किया जाना चाहिए। धर्म जब तक आत्मउन्नयन को विकसित करती है तभी तक वह धर्म है। ज्यों ही कोई मजहब या रिलिजन अन्य धार्मिक आस्थाओं वाले व्यक्तियों के प्रति घृणा फैलाते हैं, उनकी हत्याएँ करने-करवाने को जायज ठहराने की वकालत करते हैं, वह अधर्म हो जाता है जिसका उन्मूलन आवश्यक है।

एकतरफा सहनशीलता, भाई-चारे के राग, धर्मनिरपेक्षता का छद्म आडंबर करने वाले प्रायः धूर्तता , धोखाधड़ी के सहारे लूट-पाट, हत्याओं में मशगूल रहने हैं।कोई भी कट्टर इस्लामिक जिहादी समूह मानवतावादी विचारों,धर्मों, एवं शान्ति की चाहत रखने वाले समुदायों के लिए घातक है। अन्य धार्मिक समुदायों का इनके प्रति उदारता, सहनशीलता या इसे 'रिलिजन फ़ॉर पीश' बताना मूर्खता पूर्ण ही नहीं बल्कि आत्महत्या की ओर बढ़ते कदम की तरह ही घातक एवं विडंबनाओं से परिपूर्ण है।

Read More Articles ›


View Other Issues ›