पतति पतितः पतन्ति : कांग्रेस
यूँ तो कॉंग्रेस के नेता अपने अटपटे एवँ झूठे बयानबाजी के लिए प्रसिद्ध हैं। आये दिनों मोदीजी, आर एस एस, बजरंग दल, हिन्दू महासभा, हिन्दू धर्म एवं हिन्दू धर्म ग्रंथों पर अभद्र शब्दों का व्यवहार करना मात्रा संयोगवश नहीं होता है। यह सोच समझ कर बनाई गयी देशविरोधी साजिश तथा हिन्दुओं के प्रति रंजिश के तहत किया जाता है।
कहावत है! खुद को श्रेष्ठ साबित न कर सको तो दूसरों को नीचा दिखाओ। ये गुण अंग्रेजों की गुलामी करने वालों की अनुवांशिकी में ही मौजूद है। स्वार्थी एवं अय्यासी प्रवृत्ति के प्रवर्तक नेताओं में भ्र्ष्टाचार पिछले सत्तर सालों से नेहरू चाचा जी के नेतृत्व में ही मौजूद था। मीडिया की कमजोरियों के कारण अनेक घोटालेबाजों पर पर्दा पड़ा हुआ था। ऐसे भी किस्से सुनने में आये हैं कि वोट की हेराफेरी भी नेहरू जी के समय से ही आरम्भ हो गया था। कई जगहों पर नेहरूजी मुस्लिम नेताओं को खुश करने के लिए हिन्दू नेताओं को मिले सारे वोट भी अपने चहेते मुस्लिम के पाले में डलवा देते थे। EVM के अभाव में मनमानी करना आसान था। इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में भी निजी स्वार्थ की वजह से जनता द्वारा चुने हुए हिन्दू नेताओं को जबरन पीछे धकेल,नेहरू सदैव मुस्लिम नेताओं को ही संतुष्ट करने में लगे रहते थे। नेतृत्व के शक्तिशाली ओहदों पर मुस्लिम समर्थक या झूठे धर्म निरपेक्ष हिन्दू नेता ही उन्हें पसन्द थे । मुस्लिम वोट के लोभ के कारण शिक्षा व्यवस्था में सदैव मुस्लिमों की वरीयता रही, इसी कारण इतिहास के साथ छेड़छाड़ कर मुगलों को गौरवांवित करने का काम सफल रहा है। ऐसे हिन्दू बहुल राष्ट्र में आजादी की लड़ाई में भाग लेने वाले बहुत से बुजुर्ग जिंदा थे इसलिए सच्चाई लोक-कथाओं एवं बुजुर्गों के मुख से अनुभवों के रूप में उजागर होते रहते थे। हृदय में नेहरू नीतियों के प्रति विरोध होने के बावजूद हिन्दू अपने भोलेपन एवं गाँधी जी की भक्ति के तहत नेहरू को झेलते रहने को मजबूर थे।
मुगलों के अत्याचार एवं हैवानियत की कथाएं नालन्दा-तक्षशिला में ही नहीं ननकाना साहिब के स्वर्णमंदिर के चित्रकला प्रदर्शनी में भरे हुए हैं। विदेशी एवं मुल्लों की सांठगांठ के तहत सिखखों कि वीरगाथाओं एवं त्याग को उजागर करने वाले चित्र भी यदि भविष्य में गायब कर दिए जाएं तो आश्चर्य नहीं होगा। धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हिन्दुओं को ईसाई रिलिजन में या इस्लाम में परिवर्तित करने का काम जो कोंग्रेसियों के कार्यकाल में अबाध गति से बढ़ता जा रहा था उस पर हिन्दुओं द्वारा आपत्ति किये जाने के परिणाम स्वरुप बहुत से अत्याचार पूर्व काल में और आज भी हिन्दुओं पर निरंतर होते रहे हैं। घटनाओं का पूर्ण विवरण समाचारों में उजागर न हो पाना यह साबित करता है कि समाचार पत्रों पर, न्यायिक व्यवस्था पर, चुनाव व्यवस्था पर, वैश्विक व्यवस्था पर भी नेहरू खानदान एवं कोंग्रेस अधिपत्य जमा कर बैठी थी। नेहरू खानदान, अपने परिवार एवं अपने समर्थकों का ही हित साधने में सदैव लगी रही है। घोटालों का इतिहास देखते हैं तो आश्चर्य होता है सत्तारूढ़ लोगों की अय्यासी के लिए सामान्य जनता को किस हद तक लूटा गया है जिसका हिसाब-किताब भी मुश्किल है।छोटी सी रिपोर्ट जो सरे आम प्रकाशित है,उसके अनुसार 1987 से 2011 तक लगभग चौवालीस घोटाले ऐसे हैं, जिसमें करोड़ो ही नहीं अरबों डॉलर का घोटाला है, जिसकी जाँच कभी हुई नहीं या हुई भी तो पैसे कभी वापस नहीं आये हैं। ज्यादातर घोटालों पर लीपा-पोती कर बातों को रफा-दफा कर दिया जाता रहा है। अगर समय रहते बीजेपी सरकार नहीं आती तो आज घोटालेबाजों के नाम एवं घोटालों की लिस्ट कहीं गुप्त कोठरियों छुपी ही होती।
जनता अनगिनत घोटालों एवं घोटालेबाजों को भुलाकर पुनः रोजीरोटी तथा रोजगार समस्या के तहत चप्पलें घिसते रहते, कुछ पैसों के एवज कीमती वोट कोंग्रेस को ही देते रहते। आम जनता का सशक्तिकरण, आत्मनिर्भरता, स्वयँ को किसी रोजगार में व्यस्त कर अन्य के लिये भी रोजगार उपलब्ध कराना कोंग्रेस के लुटेरेनुमा नेताओं के लिए सरदर्द बन गया है। मास मीडिया की सक्रियता ने पुराने समाचार पत्रों में प्रकाशित घोटालों को भी जन-जन तक फैलाते हुए जनजागरण का कार्य किया है। कोंग्रेसियों के घर ,ऑफिस, खास कर इनके शक्तिशाली नेताओं, चमचों, विदेशी रसूखदारों ,सम्बन्धियों, मालकिन या मालिक के कुकर्म जब प्रकाशित किये जाते हैं ,उसके खिलाफ कोई कार्यवाही की जाती है या प्रवर्तन निदेशालय की छापेमारी होती है तो ये सारे चोर एक साथ बिलबिला उठते हैं। टैक्स न देना या किराया न देना तो गाँधी परिवार की ऐसी नीयत बन गयी है कि ये भारत भूमि के खदानों एवं मंदिरों को ही नहीं प्रत्येक व्यक्ति किसानों ,रेलवे आदि की संपत्ति को भी अपनी निजी संपत्ति समझते रहे हैं। अपनी कुटिलता से ही इन्होंने वक्वबोर्ड को असीमित अधिकार दे कर उसे किसी भी जमीन पर मनमानी कब्जा करने की छूट दे रखी है जिसके कारण सरकारी तथा हिन्दुओं की जमीन पर घुसपैठिये पाकिस्तानी-बांग्लादेश के मुसलमानों एवं भारत के मुसलमानों द्वारा भी अवैध कब्जा किया जा रहा है।
यह भी हास्यप्रद एवं भारत का दुर्भाग्य ही है कि इन घुसपैठिये मुसलमानों के लिए मानवाधिकार वाले एवं देश का उच्चतम न्यायालय भी त्वरित गति से कार्यवाही कर इनके मामलों में स्वतः संज्ञान ले कर कभी अवैध कब्जा वाली रेलवे या जहांगीरपुरी, शाहीन बाग आदि अनेकों जगह जमीन खाली करवाने के स्थान पर रोक लगा देती है। ऐसे निर्णय देने के कारण भारत के जज,वकील आदि भी हिन्दुविरोधी होने के तोहमत के घेरे में आते हैं क्योंकि जहाँ अपराधी मुल्लों के पैरवीकार अपराधियों के लिए जमानत तक द्रुतगति से ले आते हैं वहीं हिन्दुओं के मामलों में किसी भी कोर्ट का स्वतः संज्ञान लेना तो दूर की बात उच्च या उच्चतम न्यायालय तक सामान्य हिन्दुओं पहुंचना भी आसान नहीं होता है । ऐसे अनेक उदाहरण के आधार पर क्या यह समझा जाये कि कोंग्रेसियों के नेता विदेशियों एवं मुस्लिम जमातों के हाथों बेमोल बिके हुए हैं, जिन्हें आतंकियों एवं जिहादियों द्वारा मन माफिक नचाया जा रहा है। ऐसे में यूरोपियन टाइम्स का कथन सच ही प्रतीत होता है कि 'दुनियाभर में सबसे ज्यादा मूर्ख मतदाता भारत में रहते हैं जो घुसपैठियों को बसाने की पैरवी करने वाले नेताओं को वोट देते हैं'।कोंग्रेसियों के राजनीतिक चरित्र में नित्यप्रति आने वाली गिरावट का अंदाजा लगाना अत्यंत कठिन है।उनके शासन काल में लगभग हर साल दंगे, बॉम्बविस्फोटों में हिन्दुओं की मौत होती रही है। विभिन्न राज्यों में मज़हबियों की जनसंख्या बढ़ोतरी के कारण, घुसपैठिये के आतंकवाद के कारण हिन्दुओं का पलायन या हत्या आमघटना की तरह ही हो गई थी जैसा कि आजकल लव-जिहाद की जाल में फँसी हिन्दू लड़कियों की लाशों का बोरियों, थैलियों, सूटकेस या फ्रीज़ में पाया जाना हो गया है। छिटपुट घटनाओं के नाम के रूप में भी कुछ मुख्य दंगा में मारे जाने वाले लोगों की संख्या कुछ निम्न प्रकार से है:-
1947 - 5000-10000 बंगाल दंगा।
1967-200 मरे राँची का दंगा।
1969-200 मरे अहमदाबाद दंगा।
1970-80 मरे भिवंडी का दंगा।
1979-125 मरे जमशेदपुर में सी.पी.आई.एम.के.शासन।
1980-5000 मरे नेल्ली आसाम।
1984-184 मरे भिवंडी।
1985- 300 मरे गुजरात दंगा।
1986- 59 मरे अहमदाबाद ।
1989- 1070मरे भागलपुर दंगा।
1990- 300 मरे हैदराबाद ।
1992- 176 मरे अलीगढ़ में।
ये तो ऐसी मौतों का आंकड़ा है जो कोंग्रेसियों के शासन काल में हिन्दुओं को प्रताड़ित करने के लिए प्रायः प्रायोजित ढँग से करवाये गए ही कहे जा सकते हैं क्यों कि इन जगहों पर मज़हबियों के बीच से हिन्दू पलायित हो गए हैं या मारे गए हैं जिन्हें भीडू-भुलक्कड़ हिन्दुओं ने भुला दिया है। आजकल भी जहाँ कहीं कोंग्रेस ,कम्युनिस्ट, टीएमसी आप पार्टी की सरकारें हैं वहाँ हिन्दुओं के पलायन एवं हत्याकांड में कुछ कमी नहीं आयी है।कश्मीर से कश्मीरी पण्डितों का पलायन, बंगाल के दंगे में हिन्दुओं की हत्या, बिहार के रोहिग्या मुस्लिम बहुल इलाकों में दलितों एवं हिन्दुओं की घरों का जलाया जाना साधारण घटना है।अन्य कई राज्यों में हिन्दुओं की हत्याएं या डर के साये में जीवन यापन या बेबसी, शिक्षा, एक बोरी चावल लोभ, जिंदगी की चाहत, दवाइयों की आवश्यकता या धमकियों के कारण धर्म परिवर्तन या पलायन मात्र संयोग तो नहीं हो सकता है। निरन्तर हिन्दुओं को छलने वाली इस पार्टी ने हिन्दुओं को खत्म के लिए उन्नीस सौ सैंतालीस से दो हजार तेरह तक लगभग प्रत्येक प्रान्त में दंगे करवाये लेकिन उसकी चर्चा भी सेंट पित्रोदा को मंजूर नहीं 'जो हुआ सो हुआ' का बेशर्म वक्त्व उनकी हिन्दू विरोधी हत्यारी मानसिकता को ही दर्शाती है। अब जॉर्ज सॉरस नामक वैम्पायर की नजर अपने नुमाइंदों के साथ भारत को अंदरूनी कलह में झोंकने के अथक प्रयास में लगी है।
अपने अशोभनीय कर्मों को भुला ये मोदी की गरिमा को धूमिल करने के लिए विभिन्न विदेशी मीडिया ,प्रचारकों सस्ते घटिया अदाकारों की सहायता लेते रहते हैं। गोधरा के कार सेवकों की हत्याओं को नजर अंदाज सिर्फ दो हजार दो के गुजरात दंगे की ही चर्चा करवाई जाती है। राफेल के मुद्दे उठाए जाते हैं। देश के व्यपारिक व्यवस्था पर सवाल एवं झूठे वक्त्व प्रकाशित किये जाते हैं। गुजरात के विकास एवं सुशासन की चर्चा करते हुए ज्यादातर पत्रकारों की ही लापरवाही बनी रहती है बातों को घुमा कर दो हज़ार दो की चर्चा बार-बार की जाती है।गोधरा काण्ड सुप्तावस्था में चला जाता है।।
जिन पत्रकारों ने मोदीजी के अच्छे कार्यों की चर्चा की है उसे गोदी मीडिया कह कर उसकी छवि पर कालिख पोतने की जी तोड़ कोशिश होती रहती है। हिन्दू विरोधी कारनामों को प्रायोगिक रूप देते-देते कोंग्रेस हिंदुस्तान विरोधी बन चुकी है। अपने अतीत में छद्म धर्मनिरपेक्ष होने का ढोंग करके प्रशासन तन्त्र को हथियार की तरह इस्तेमाल कर सदैव हिन्दुओं को लूटने एवं खत्म करने इरादे से इस्लाम तथा ईसाइयत को विशेषाधिकार देने वाली कॉम्युनिस्ट, कोंग्रेस तथा अन्य विपक्षी पार्टियाँ आज हिंदुस्तान विरोधी बन स्वयँ के ही चेहरे पर कालिख पोतने का कार्य कर रही है। सत्ता और वित्त के लालच में विदेशियों के इशारे पर देश को तोड़ने की या हिंदुस्तान की सनातन संस्कृति को खत्म करने की यह साजिश कभी सी. ए. ए.,कभी किसान आंदोलन, कभी खालिस्तान आंदोलन तो कभी किसी अन्य घटिया या पतित तरीके से देश के सामने आ रहा है। यह प्रत्येक भरतीय, भारतीयता तथा इसके एकीकरण की भावना रखने वाले स्वाभिमानियों, देशभक्तों एवं देश की संप्रभुता को सर्वोच्च समझने वाले लोगों के लिए इस तरह की घटनाएं देशद्रोहियों की विशेष प्रकार की दुराग्रह जनित चुनौती है जिससे निपटना हर भारतीय का कर्तव्य है। भ्रष्टाचारियों, विदेशियों के हाथों बिके हुए नेताओं, देशद्रोहियों को मोदीजी से वैर होना स्वाभाविक है परन्तु प्रत्येक सनातनियों एवं देशभक्तों को मोदीजी का साथ देना देशहित में तथा स्वाभिमान सहित जिंदा रहने के लिए नितान्त आवश्यक है।क्यों कि कोंग्रेस, आप पार्टी, टी.एम.सी.तथा अन्य वामपंथी नेताओं के लिए इतना ही शब्द काफी है कि वे पतति पतितः पतन्ति के पथगामी हैं।