Chief Editor Dr Sumangala Jha

सम्पादकीय : वर्ष २०२४ के परिपेक्ष में

साल २०२४ के प्रारम्भ में विश्व के बहुतेरे भविष्य वेत्ताओं ने इसके मंगलमय होने की भविष्यवाणी की थी लेकिन आज जब इस वर्ष के अंतिम दिन हम इसका आकलन करते हैं तो पाते हैं कि यह साल ने मानवता के लिए कुछ और नए सवाल खड़े कर दिए हैं I विश्व में युद्धरत देशों का दायरा बढ़ गया है I आज युद्ध जहाँ उक्रैन, गाज़ा और सूडान में पूर्ववत चल रहा है वहीं यह लेबनान, रूस, ईरान तथा सीरिया की सरजमीं पर भी अपने पाँव पसार चुका है I सूडान में तो जिहादियों ने तीन अफ्रीकी जनजाति फर, मसेलित और जाघवा का पूरी तरह नरसंहार कर दिया है। विडम्बना यह है कि संयुक्त राष्ट्र ने चुप्पी साध रखी है I उधर दूसरी ओर बांग्लादेश और सीरिया में तख्ता पलट कर जिहादी तंत्र ने अपना अधिपत्य जमा लिया है तथा वहाँ के धार्मिक अल्पसंख्यकों पर दमन शुरू कर दिया है I संयुक्त राष्ट्र इस पर भी चुप है I जिहादियों ने तो रूस के मॉस्को और दागिस्तान में भी अपनी मारकाट की गतिविधि शुरू कर दी है I ऐसा लगता है मानो जिहादियों ने विश्व शान्ति को भंग करने का बीड़ा अपने सर ले लिया हो I

वर्ष २०२४ में विश्व के कई देशों में चुनाव कराए गए जिसमें सबसे बड़े दो प्रजातंत्र शामिल थे I भारत ने मोदी जी को अपने तीसरे कालावधि के लिए बहुमत दिया तो वहीं दूसरी ओर अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प को सत्ता में वापस लाया I उधर यूरोप में दक्षिणपंथियों का वर्चस्व बढ़ता दीख रहा है जिसमें पहले इटली और हाल में जर्मनी और फ़्रांस शामिल हैं I लगता है ये देश अपनी धरती पर पाँव जमाए मध्यपूर्व के शरणार्थियों से त्रस्त हैं I उधर नेटो के सदस्य देश बड़े शख्ती में हैं कि ट्रम्प के आने के बाद उनकी अपनी अपनी शस्त्रों की दुकानें कैसी चलेंगी I ट्रम्प ने तो बता ही दिया है कि वे रूस उक्रैन युद्ध को बंद कर देंगे I दूसरी ओर चीन भी समझ चुका है कि लद्दाख में भारतीय सीमा पर उसकी हेकड़ी नहीं चलेगी अतः वह अपनी सेना को धीरे धीरे ही सही, वापस बुला रहा है I लगता है आने वाले महीनों और सालों में विश्व शांति का ऐसा ही मिलाजुला स्वरुप देखने को मिलेगा I इस पत्रिका की और से हमारी भी शुभेक्षा विश्वशांति के आवाहन के प्रति ही प्रतीक्षारत रहेगी।

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