Dr Sumangala Jha Chief Editor

सम्पादकीय : लोक कथाओं के गुप्त तथ्य

किसी देश को विकसित एवं सम्पन्न बनाने में सैकड़ों वर्ष गुजर जाते हैं।असीमित संसाधनों एवं अर्थ की आवश्यकता की पूर्ति के लिये मनुष्य दिन रात परिश्रम करता है एवं लंबे समय की तपस्या उसमें शामिल होती है। परन्तु उसी सभ्यता, संपन्नता, वैज्ञानिक ज्ञान का विनाश करने के लिए स्वार्थी मनुष्य बहुत कम समय में बहुत ज्यादा खर्च कर हैवानियत का परिचय देता है। संघर्ष मनुष्य के जीवन से जुड़ा हुआ है, परन्तु जीवन-संघर्ष की दिशा नकारात्मक हो या सकारात्मक इस पर पौराणिक ऋषि-मुनियों की तरह चिंतन करने की आवश्यकता आज समूची दुनियाँ को है।

मानवीय सभ्यता के विकास के साथ ही कुछ सामाजिक नियम भी अनुभव के आधार पर ऋषि-मुनियों ने बनाये हैं जिसका वर्णन विभिन्न धर्मग्रंथों में विस्तार से दिया गया है। पौराणिक ग्रंथों, लोक कथाओं एवं उपनिषदों में लंबी औपन्यासिक परिपेक्ष्य युक्त कथा के अंतर्गत अनेक लघु कथाओं का भंडार है। इनके द्वारा अनेक शास्त्रों का ज्ञान, प्रकृति संरक्षण, विशेष पूजा-पाठ, धार्मिक आयोजन, उत्सव से संबंधित किस्से पड़े हैं।इन्हीं ग्रंथों में राजनीति, कूटनीति, समाज के प्रति नैतिक शिक्षा देने की कभी न मिटने वाली कला भी विकसित है जो आज भी पहले के समय की तरह ही जीवन्त है। आज दुनियाँ भर की हालातों को देखते हुए कुछ किस्सों की चर्चा स्वतः संज्ञान में स्फुरित होती है।

भष्मासुर कथा , तीन अति ज्ञानी तथा एक सामान्य बुद्धि वाले ब्राह्मण भाइयों की कथा, एक साधू द्वारा कही गयी घोड़े की कहानी के साथ-साथ धोबी के गधे एवं कुत्ते की कहानी अलावे भी बहुत सी कहानियाँ हैं। बचपन में ये किस्से 'उपनिषद की कथाओं' के रूप में मात्र आनन्द की अनुभूति के लिए या हँसने-हँसाने के लिये पढ़ी या सुनाई जाती थी। आज दुनियाँदारी के अनुभव के बाद किस्सों का प्रायोगिक अर्थ समझने एवं इसमें अंतर्निहित गूढ़ तथ्य उजागर होते है। छोटी-छोटी कथाओं की जीवन्तता वसुधैव कुटुम्बकम का मंत्र देने वाली जम्बूद्वीप में स्थित भरतखण्ड रची गयी है; परन्तु समूची दुनियाँ के लिए उपयोगी हैं। अपने राष्ट्र ,अन्य देशों के अंदर एवं अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के बीच भी पौराणिक कथाओं में निहित सनातनी सत्य की उपयोगिता एवं उपादेयता आज भी प्रतिबिंबित होती है।

शिवजी ने ये जानते हुए कि भष्मासुर स्वार्थी एवं राक्षस प्रवृत्ति का है उसे वरदान दे डाला कि जिसके सिर पर वह हाथ रखेगा वह भष्म हो जाएगा। भष्मासुर को सिर्फ शिव की शक्ति से ही डर था अतः वरदान के सत्यापन के लिए एवं उन्हें अपने मार्ग उन्हें हटाने के लिए शिवजी के सिर पर हाथ रखने के लिए आगे बढ़ा।फिर क्या था शिवजी अपने दिए गए वरदान के कारण भस्मासुर के डर से भागने लगे।क्या दृश्य रहा होगा शिवजी को भष्मासुर के डर भागते हुए दिखने का? भला हो विष्णु भगवान का जिन्होंने मोहिनी रूप धारण कर कामातुर भष्मासुर के साथ नृत्य का प्रस्ताव रख, नृत्य कराया तथा अति बलशाली भष्मासुर को उसी के हाथों भष्म करवा दिया। ऐसे भष्मासुर को मिटाने नारीरूप में भगवान विष्णु तो आने से रहे, परन्तु कथा अभी जीवित है।

शक्तिशाली रूस को कई भागों तोड़ने के लिए कुछ ऐसी ही लीला अमेरिका की भी रही है। जिहादियों की फौज को कट्टरवादिता तथा हथियारों से सुसज्जित होने वरदान दे,बड़ा किया ; परन्तु मकसद पूरा होने के बाद जिहादियों की अवहेलना की, फलस्वरूप अमेरिका के अपने व्यपारिक टावरों पर अपने ही हवाईजहाज से विस्फोटक हमले झेलने पड़े तथा लाखों लोगों की जिंदगी ख़त्म हो गयी।

ताकत के गलत इस्तेमाल से क्या होता है यह जरासंध की कथा बताती है, अब यहाँ जरासंध को फाड़ने के लिए भीम कहाँ से आयेंगे? बदले की भावना ,स्वयँ की सुरक्षा की मजबूरियाँ युध्द को जन्म देती है। ओसामा बिन लादेन को मारने के चक्कर मे अफगानिस्तान तो पिटा ही पाकिस्तान को आर्थिक फायदा हुआ परन्तु अपने दीन को समर्पित पाकिस्तान ने ओसामा को आश्रय भी दिया जो बाद में वहीं मारा गया । ताकतवर और कुटिल नीति पर चलने वाले अमेरिका को इतने पर संतुष्टि नहीं मिली। उपनिवेशवाद के लोभ से अफगानिस्तान को वरदान स्वरूप सुविधाओं एवं हथियारों से सम्पन्न करते रहे । अफगानी भी तालिबानियों के प्रति चुपचाप वफादार बने हुए मुफ्त की सुविधाओं का लाभ लेते रहे। अंततः पूर्व वरदान के कारण पहले तैयार किये गए भस्मासुर के प्रकट होते ही अमेरिकन दुम दबा कर भाग खड़े हुए। वे ये भूल गए जिन आतंकियों को खदेड़ा, वे तो कट्टरपंथी दीन के प्रति समर्पित अफगानिस्तानियों के बीच पहले से ही सहज स्वीकृत थे। बेवकूफ अमेरिकन अपने देश की जनता के टैक्स के पैसों से शातिर मुफ्तखोरों को खिलाते-खिलाते थक गए एवं समय रहते मजबूरन वापस अपनी जगह आ गए । इस तमाशे में बहुत से अफगानिस्तानियों को अन्य देशों में पलायन करवाने तथा उन्हें अपने घर में भी शरण देने के लिए भी मजबूर हुए। वरदहस्त वाले अमरीकन को, उन्हीं से वरदान पाए हुए 'तालिबानी- भष्मासुर' के डर से भागते देख 'शिव की शक्ति शिव के ही पीछे,भागे डमरू वाला' का गीत याद आ गया साथ ही रणछोड़ कृष्ण की कथा भी याद आ गयी है।

अब दूसरी कथा है तीन ज्ञानी तथा एक कम ज्ञानी ब्राह्मण की - ये चारों जंगल से गुजर रहे थे। पहले ज्ञानी को कुछ हड्डियों के अवशेष दिखे तो उन्होंने अपने ज्ञान से बता दिया कि ये एक आदमखोर बाघ के अवशेष हैं, दूसरे ने अपने ज्ञान से उसमें अस्थि-मज्जा-रक्त भी संचित कर दिए, तीसरे ज्ञानी ने अपने ज्ञान द्वारा उसमें प्राण संचार करने का आवाहन किया तो चौथे ने प्रार्थना की मान्यवर कुछ अवकाश दें ताकि मैं पेड़ के ऊपर छुप जाऊँ। बेचारे दूर पेड़ के ऊपर भाग कर किसी प्रकार अपनी जान बचा गए। ऐसे सेक्युलर आदमखोरों में प्राण प्रतिष्ठा करने वाले ज्ञानी ब्राह्मण कोंग्रेसियों में भरे पड़े हैं तथा सामान्य ज्ञानी बीजेपी में भी हैं ,जिन्हें आदमखोरों की तुलना में इन महान ज्ञानियों के ज्ञान से ज्यादा खतरा है। नाम बताने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि मीडिया द्वारा दंगल, ताल ठोक कर,आर-पार, सच्ची बात, हल्ला बोल आदि में मंत्रसिद्ध बुद्धिमानों को आसानी से सुन-देख सकते हैं। इन बुद्धिमानों में कुछ वर्णसंकरों की संख्या भी हैं।

तीसरी है एक साधु द्वारा कही गयी बाघ,घोड़े एवं इंसान की कहानी , जिसमें एक घोड़ा बाघ से बचने के लिये,उसे मरवाने के लिए, एक शातिर इंसान से सहायता लेने की गलती कर बैठा, अपने नाक में नकेल लगवा कर अपनी पीठ भी उसके हवाले कर दिया, फिर क्या ? आज भी घोड़े की पीढ़ियाँ इंसान को पीठ पर बिठाने की गुलामी के लिए मजबूर हैं।
अतः शातिर देश या शातिर व्यक्तित्व से जिन कमजोर देशों ने या कमजोर नेताओं ने मदद ली उसने अपनी नाक और पीठ दोनों ही शातिरों के हवाले कर दी है। पीठ पर शातिर मजबूत सवार एवं नाक में नकेल पड़ी हुई हो तो ऐसे देश या नेताओं के पास विकल्प क्या है ? वह इशारों पर नाचे या हंटर की चोट खाये! यहाँ भी किसी देश या नेताओं का नाम लेना उचित नहीं है क्योंकि ओपन सीक्रेट (जग-जाहिर गुप्त बातें) की उचित हिंदी क्या होनी चाहिए मालूम नहीं है।

चौथी कथा, धोबी, गधे एवं कुत्ते की भी है। जिस कुत्ते को मालिक धोबी के घर में चोरी होते देख भौंकना चाहिए था वह चुप ही रहा लेकिन बेचारे गधे ने रेंक-रेंक कर धोबी की नींद हराम कर दी। परिणाम स्वरूप अपने मालिक के प्रति वफादारी निभाने के बावजूद भी वह गधा बेचारा पिटता रहा,चोर चोरी कर चला गया। धोबी ने अपना बोझा ढोने वाला गधा भी खोया और अपनी संपत्ति भी गँवाई। यद्यपि इस कहानी का (अमेरिका +योरोपीय) समुदाय (रूस + चीन) के बीच के अप्रत्यक्ष युध्द में पिटने वाले यूक्रेन से कुछ लेना देना नहीं है। परन्तु सत्य यही है कि बिना सोचे-समझे वफादारी निभाने के लिए दूसरों का काम करने वाला कभी-कभी (देश हो या मनुष्य) गधा की तरह अकारण बुरी तरह पिटता भी है। विश्वव्यापी घटनाओं के परिपेक्ष्य में गधा कहाँ-कहाँ, कौन-कौन है ये सोचने वाली बात जरूर है। ऐसे एक कहावत यह भी है कि 'यदि बर्बाद करने वाले दोस्त ही मिल जायें तो दुश्मनों की आवश्यकता ही नहीं होती है'।

रूस के टुकड़ों में बँटने के बाद भी विकसित ,आधुनिक एवं समृद्ध देश सीरिया, टर्की, इराक,अफगानिस्तान, पाकिस्तान,अजरबैजान आर्मेनिया, सूडान, नाइजीरिया के नागरिकों के अलावे भी अनेक देश अंदरूनी एवं वाह्य युध्द से जूझ रहे हैं। अब शातिरों के निशाने एक शांतिप्रिय देश हिंदुस्तान भी है, जिसे अंतर्कलह में झोंकने की कोशिशें की जा रही है। निरपेक्षता से स्वयँ के देशहित के लिये सोचना किसी भी देश के प्रधानमंत्री के साथ-साथ प्रत्येक नागरिक का प्रथम कर्तव्य है। मोदीजी कर्तव्यनिष्ठ हैं! अतः देश की जनता के लिए उनका साथ देना उनके प्रति पूर्ण विश्वास के साथ डटे रहना आवश्यक है। यदि जनता मोदीजी के प्रति अविश्वास कर किसी देश या देसी नेताओं के उकसावे में आकर देशविरोधी हरकतों को ताकत या मौका देने की गलती करते हैं तो अंजाम भयावह हो सकते है। यह कहना असत्य नहीं होगा कि दो ताकतवर देशों या नेताओं की लड़ाई के बीच कमजोर देश या बेबस जनता दिशाहीन प्यादा बन पिट जाते हैं या घुन की तरह पिसते रहते रहते हैं। प्रबुद्ध जनता एवं नेताओं को भी अपने देश भी बर्बादी की ओर बढ़ने वाले प्रत्येक कदम पर अंकुश लगाना आवश्यक है। जनता को भी देखना और सोचना होगा कि भावनाओं से खेलने वाले ताकतवर देश हो या कुटिल नेता युध्द भूमि (क्षेत्र या देश) में बर्बाद होने वाले तो निरीह ही होते हैं। युध्द एवं अंदरूनी कलह या गृहयुद्ध में कुछ देश बर्बाद हो चुके हैं, कुछ वर्तमान में बर्बाद हो रहे हैं एवं यदि चेतना हीन बन भविष्य में भी दूसरों के घोड़े या गधे बनेंगे तो पिटने वाले भी वही निरीह, गधे और घोड़े होगें।

पौराणिक लघु कथाएँ बहुत हैं परन्तु आजकल के संदर्भ में उनमें छिपे अनेकों तथ्य आज भी समझने योग्य, जीवन्त, प्रायोगिक और विचारणीय हैं।

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