सम्पादकीय : अप्रत्याशित फसादों के कारण
पिछले कई सालों में देश में कई प्रायोजित अप्रत्याशित घटनायें घटती रही हैं। प्रत्यक्षतः ये अलग-अलग क्षेत्रों में घटने वाली घटनाएं कहीं से भी एक दूसरे से सम्बंधित नहीं दिखती हैं, लेकिन थोड़ा विश्लेषण कर गहराई से देखें तो ये सभी एक धुरी के ही वलय के अंतर्गत घूमते दिखाई देंगे।
दो हजार चौदह के बाद से देश में आये सकारात्मक बदलाव पर ज्यादातर शक्तिशाली देशों एवं दिग्गज भ्रष्टाचारियों को यह विश्वास था कि मोदीजी को वे बड़ी ही आसानी से उखाड़ फेंकेंगे क्यों कि उनके पास बाहरी देशों की जालसजियों की तथा सत्तारूढ़ रहने के कालांतर में लूटे हुए पैसों का अकूत भंडार है। प्रशासनिक व्यवस्था में भी जमीनी स्तर से ले कर सुप्रीम कोर्ट के जजों तक एक ही परिवार के इशारों पर चलने वाली जिस संरचना का निर्माण किया गया था उस मजबूत ताने बाने को तोड़ना किसी के बस की बात नहीं रही थी। सफेदपोश देशी दुश्मनों का मानना था कि मोदीजी कुछ दिनों के लिए आये हैं ,हेलो-हाय करके चले ही जायेंगे। लेकिन भ्र्ष्टाचार में लिप्त चोरों के गठबंधन को दो हजार उन्नीस में 'जोर का झटका धीरे से लगा' जब मोदी जी सत्ता में पुनः वापस आ गए। मोदी विरोधियों को मायूसी तो हुई परन्तु अकूत अवैध धन के भंडारण के कारण वे लगभग शान्त ही थे। दूसरी बार सत्ता में आने के बाद बहुत से ऐसे कार्य जो दशकों से ठंडे बस्ते में पड़े हुए थे उन पर राजनीतिक सक्रियता आरम्भ हुई, साथ ही सभी विपक्षियों के द्वारा चक्रव्यूह की रचना भी आरम्भ हो गयी जो एक के बाद एक समयांतराल में प्रदर्शित होते रहे हैं।
देश के जनता के हित छोटी छोटी बातें जो वस्तुतः गरीबों के लिए महत्वपूर्ण हैं उनके प्रति जागरुकता, आत्मनिर्भरता, आर्थिक सम्पन्नता के लिए सकारात्मक कदम उठाये गए। भारत के प्रभुत्व की स्थापना के लिए कई क्षेत्र में भी लिए गए जोखिम भरे निर्णय के साथ ही समयबद्ध तरीके से योजनाओं के निपटान ने जन मानस को उत्साह से भर दिया है। भारतीयों ने अपने प्रधानमंत्री के प्रति श्रद्धा भाव के साथ स्वयँ को गौरवान्वित भी महसूस किया है। देश-विदेश में बढ़ती व्यापार व्यवस्था, रुपैये की अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बढ़ती महत्ता, भारत के हित में निर्णय लेने की क्षमता ने बहुत से देश विरोधी दुश्मनों को अंदरूनी कष्ट पहुँचाया है। ऐसे लोग जो विदेशों से अर्थप्राप्ति कर अराजकता फैलाते थे उनके वजूद पर चोट लगी है। उनकी तिलमिलाहट ही प्रत्येक उत्प्रेरित आन्दोलन ,धरना प्रदर्शन,दंगों के भ्रष्टाचारी रूप में पूरी दुनियाँ के सामने प्रकट हो रहे हैं। भारत की आत्मनिर्भरता, सर्वांगीण विकास की गतिशीलता, सैनिकों का सशस्त्र सशक्तिकरण, स्वदेशी वैज्ञानिकों के अद्भुत, अभूतपूर्व दृष्टव्य प्रामाणिक अनेक कार्य ने विदेशियों के पिट्ठू, भ्रष्टाचारी विपक्षियों के समूह की मानसिकता पर प्रहार किया है वे गर्म तेल में तड़के की जीरा की तरह तिलमिला कर...चिट पिट ,चिट पिट ....करते हुए ..तड़फड़ा रहे हैं ... फट. फट.. फट.. फट की आवाज कर रहे हैं।
बिहार में राक्षस रूपी रावण का प्रकोप बढ़ गया है। आई. एन. डी.आई. ए. नाम से 'चोर नाम के बैनर' तले सभी ठगों का ठगबंधन बन गया है। कुरान के आतंकी एवं घृणा के समर्थित आयतों के साथ जिहादियों के कारनामों को विदेशियों ने पहचान कर उसे जलाया भी है। आतंकवादी विचार धारा के पोषक कुरान के अनुयायियों के हृदय भी विदेशियों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति के व्यवहारिक प्रदर्शन से जल उठे हैं। ठीक वैसे ही जैसे हिन्दुओं के हृदय हिंदुस्तान में हिन्दूधर्म, संस्कृति एवं देवी -देवताओं के अपमान के बाद बेबसी से जलते रहते हैं। यद्यपि कई देशों में खुले हृदय वालों ने वैदिक संस्कृति के उद्दात विचारों, इसमें निहित तथ्यों एवं सत्य को आत्मसात भी किया है।
पिछले महीने से नए काण्ड के रूप में मणिपुर की हिंसक घटनाएँ सामने आई है। ईसाई मिशनरियों के चाल में फँसे कुकी एवं नागा समुदाय के द्वारा किये जा रहे नशे के व्यापार (अफीम ) पर रोक लगाए जाने एवं मैतीय को भी जनजाति का दर्जा दिए जाने के कारण ,ये मिशनरियों द्वारा भड़काए गए दंगे-फसाद हैं। रोड बन जाने के कारण सेना की आवाजाही एवं सीमाओं पर निगरानी बढ़ी है। जगह-जगह फौजी टुकड़ियों के तैनात होने से बर्मी, मँगोलियन,चीनी घुसपैठियों एवं हथियार-तस्करों को भी असुविधा हो रही है अतः सेना को बदनाम करने के लिए स्त्रियों का भी इस्तेमाल हो रहा है। हिंदुस्तान के बहुत से नेता जिन्होंने चीन या अन्य किसी देश से लुके-छिपे व्यक्तिगत लाभ के लिए अर्थ प्राप्ति की एवं जिसके एवज में उन्हें विदेशियों की जालसाजी को सफल करना था उन्हें भी कठिनाइयाँ होने लगी हैं। आर्मी की तैनाती, गस्त की सुविधाओं ने सीमाक्षेत्र के अनेक देशविरोधी गतिविधियों एवं तस्करों को कष्ट दिया है। यह जमालघोटे की खुराक की तरह है जिसके कारण खुलेआम अवैध कार्यों में लिप्त लोगों के पेट में दर्द आरम्भ हो गया है और परिणाम "मणिपुर खबर" की सुर्खियों में है।
इसरो के वैज्ञानिकों की सफलता ने कई जलने वाले हृदय पर प्रहार किया है। कई देश में रहने वाले भारत विरोधियों के जीभ से निकले शब्दों लगता है कि उन्हें तेज मिर्च वाले जमीं कन्द का अचार खिला दिया है, जिसकी तीव्रता और खुजलाहट ने अप्रत्याशित ढंग से अनेक व्यक्तित्व को कष्ट दिया है। उदाहरण के तौर पर ब्रिटिश के पार्लियामेंट के एक सदस्य का व्यंग्यात्मक ढंग से चंद्रयान-३ के लिए बधाई देना है। लेकिन किया क्या जाए? कुछ लोग ऐसे ही होते हैं जिन्हें दूसरों की अच्छाई और प्रगतिशीलता से ही कष्ट होता है। इन हलकान होने वाले लोगों के कारण कोई कर्मठ ,चलना तो नहीं बन्द करते हैं यही गौरव का विषय है। मोदी जी का कर्मठ कर्तव्यनिष्ठ व्यक्तित्व ही उन्हें अनेकानेक कठिनाइयों से सबक लेते हुए चलते रहने की प्रेरणा देता है एवं यही इनका ध्येय भी है।
कहा जाता है : हाथी चले बाजार, तो कुत्ता भूँके हजार।
देश के संविधान ने भौंकने का अधिकार दिया है तो भौंकने वाले तो भौंकेंगे ही।