त्यौहार और वामपंथी
भारत वर्ष को त्यौहारों का देश भी कहा जाता है।देखा जाए तो प्रत्येक महीने कई त्यौहार आते हैं जिसे उत्साह से मनाया जाता है।जिस क्षेत्र की संस्कृति-सभ्यता जितनी पुरानी तथा सांस्कृतिक दृष्टिकोण से जितनी समृद्ध है, वहाँ त्योहारों की संख्या भी उतनी ही ज्यादा है।भारतीयों ने अनादि काल से उत्सवों को उत्साह से मनाने का शायद ही कोई अवसर उपेक्षित रखा हो।बाहर से आने वाले विभिन्न धर्म, संस्कृति, सभ्यता के लोगों के रीति-रिवाजों कोआत्मसात करने के साथ ही अपनी सांस्कृतिक विरासत को भी भारतीय सुरक्षित रखते आये हैं। विदेशी लोग भी अनजाने ही यहाँ की समृद्ध संस्कृति, सभ्यता, रीति-रिवाज, त्योहार आदि को अपनाकर यहाँ की मिट्टी की खुशबू में स्वतः ही घुलनशील बनते गये हैं। सहनशीलता, "अतिथि देवो भवः" के मंत्र के कारण विदेशियों को भारत में किसी कट्टरता का सामना नहीं करना पड़ा है।
भारत की वैदिक सांस्कृतिक विरासत की विशालता तथा उदारता का परिचय अंतरराष्ट्रीय धार्मिक सम्मेलन में विवेकानंद के उदार वक्तव्यों से प्रकट होता है, जिसे दुहराने की आवश्यकता नहीं है। कहने का तात्पर्य यह है कि वैदिक संस्कृति और सभ्यता इतनी विशाल और अद्भुत है कि सभी वर्तमान सभ्य संस्कृतियाँ उन्हीं पुरातन-प्राचीन संस्कृति के बरगदनुमा विशाल वृक्ष की मात्र एक शाखा या पत्ते सी प्रतीत होती है।
कट्टरवादी मझहब या रिलिजन में अंतर्निहित गंदगी-ग्रसित हीनग्रस्तता ही है जिसके कारण प्राचीनतम वैदिक-सनातनी हिंदू धर्म, जैन और बौद्ध धर्म के प्रति अर्ध-विच्छिप्तों के विकृत अटपटे बयान सामने आते हैं। पागलपन के दौरे में मौलानाओं तथा पादरियों द्वारा हिन्दू धर्म, संस्कृति, सभ्यता, तथा त्योहारों के प्रति घृणा की भावनाओं को वामपंथियों द्वारा बड़े पैमाने पर फैलाया जाता है।
इस्लाम की उत्पत्ति प्रचार-प्रसार में असहिष्णुता, अराजकता, अन्य धर्मों के प्रति निरादर तथा उसे विध्वंस के करने की मानसिकता ही वस्तुतः प्रत्येक इस्लामी बाहुल्य क्षेत्र में संघर्ष का कारण बनी है। पूरी दुनियाँ में जाहिल, पापी मंसूबों से भरे इस्लाम की बर्बरता जहाँ भी फैली वहाँ उस धरती की मूल सांस्कृतिक विरासत बर्बाद हो कर मिट्टी में मिल गई है।
दो हज़ार, डेढ़ हजार साल पुरानी संस्कृति क्रमशः ईसाइयत एवं इस्लाम स्वयँ को अच्छा सत्यापित न कर पाने की असमर्थता के कारण आक्रामक रुख अख्तियार करती रही है। उदारवादी विचारतथ्यों की अवहेलना कर धूर्त-राक्षसी संस्कृति जिसे वेदों में अधर्म कहा गया है, संसार के विनाश का कारण बन रही है।
यहाँ ध्यान देने की आवश्यकता है कि भारतवर्ष (आर्यावर्त) में विकसित धर्म शांतिपूर्ण, सौहार्दपूर्ण वातावरण का निर्माण करते हुए स्वेच्छा से सम्पूर्ण विश्व में स्वतः ही फैलते चले गए हैं। इन धर्मों ने उदारता, सहनशीलता, मानवतावादी भावनाओं का पोषण किया है। इन धर्मावलंबियों के त्योहार दुर्गा पूजन, सरस्वती पूजन,बुध्द पूर्णिमा, ओणम, महावीर जयंती, बिहू, संक्रांति, लोहड़ी, दीपावली, नागपंचमी, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, होली, शरदपूर्णिमा, करवाचौथ, तीज, हरियाली-तीज, पितृ-तर्पण, सोमवती अमावस्या, वट-सावित्री पूजन, बिहुला पर्व, समा-चकेवा, रक्षा बंधन, भाईदूज, गोवर्धनपूजन, अन्नकूट, गुरुपूर्णिमा, वरलक्ष्मी पूजन, धनतेरस, कालीपूजा,महाशिवरात्रि, सूर्य पूजा, छठआदि बहुतायत ऐसे अवसरों को प्रतिवर्ष मनाया जाता है। ऊपर वर्णित सभी आयोजनशान्ति ,प्यार ,प्रकृति संरक्षण, जीव मात्र से प्रेम, पूर्वजों के प्रति सम्मान, उच्च कोटि के चरित्रों की आराधना आदि से संबंधित हैं।
हिन्दू कर्म काण्ड और त्यौहार नई पीढ़ियों के लिए भी आदर्श हैं। ये उच्च कोटि के जीवन चरित्र को विकसित करते हैं। प्रकृति संरक्षण, स्त्रियों तथा पूर्वज के प्रति सम्मान की भावनाओं भी जागृत करते हैं।
एक सनातन धर्म ही है जहाँ प्रकृति के साथ ताल-मेल रखते हुए जीव मात्र को विभिन्न देवी-देवताओं के साथ प्रस्तुत कर, उसे महत्वपूर्ण बनाता है। इन संदर्भों में देखा जाए तो ईसाइयत या इस्लाम असभ्य पिछड़े समाज में उत्पन्न होने के कारण प्रकृति तथा जीव मात्र को मानव जीवन से भावनात्मक रूप में जोड़ने में असमर्थ रहे हैं। सामाजिक बन्धनों को उदारता के साथ निभाने के लिए लम्बे समय के अंतराल में भी विशेष तिथि-संदर्भ की महत्ता को नहीं समझ पाए हैं। स्वाभाविकता से विस्तार न पाने के कारण ही ईसाइयत अस्पताल की दवाईयों, शिक्षण संस्थानों आदि द्वारा लेन-देन के व्यपार की तरह (व्यापक स्तर पर कुटिल स्वार्थी साजिश के तहत) भोलेभाले गरीबों पर लादा गया है।लोभ तथा मजबूरियाँ मनुष्य को अमान्य बातें भी स्वीकार करने के लिए बाध्य करती है। ईसाइयत के चंगुल में फँसे धर्म परिवर्तित भारतीय पीढ़ी निरंतर चर्च द्वारा शोषित हो, विदेशी पादरियों को भारत की दौलत से फायदा पँहुचा रहे हैं।
इसी प्रकार जग-जाहिर है कि इस्लाम की वैचारिक तथा मानसिक गुलामी भी बर्बरता, कुटिलता, लूट-पाट तथा मौत का डर दिखा कर हिंदुस्तानियों पर थोपा गया है। भारत के लोभी और कायर हिन्दुओं ने जान बचाने के लिए इस्लाम को मजबूरी में स्वीकार किया है।
निरंतर उत्साह एवं एकजुटता से भारतीय त्यौहारों का उत्सव मनाने वाले भारतीयों को मध्य एशिया के मुल्ले और विदेशी पादरी कट्टरपंथी बना रहे हैं। इनका बहुत बड़ा, बिका हुआ तबका हिन्दू त्योहारों पर अपने कुटिल ज्ञान, भ्रामक प्रचार कर रहे है।
वर्तमान समय में कुछ प्रसिद्ध व्यक्तित्व, मानवाधिकार वाले, पशु सुरक्षा वाले, पर्यावरण सुरक्षा वाले, भारतविरोधी, हिन्दुविरोधी गुट भारतीय त्यौहारों पर काफी सक्रिय हो जाते हैं। ये लोग अपनी दोगली, विकृत, घृणित मानसिकता का परिचय बेतुके वक्तव्य तथा अधकचरे ज्ञान द्वारा पागलपन या अफीम के नशे में चूर हो कर प्रदर्शित करते हैं। गाय-भैंस खाने वाले लोग शुद्ध शाकाहारी त्यौहार जन्माष्टमी पर मोरों के संरक्षण का ज्ञान देने लगते हैं, जैसे जनमाष्टमी में मोरों को हलाल किया जाता हो! ये अनभिज्ञ हैं या पागल? क्या इन्हें पता नहीं मोर अपने पुराने पंख त्याग देते है? क्या मूढ़ों को ज्ञात नहीं कि जनमाष्टमी का मोर के पंख से कोई संबंध नहीं है।
बकरीद में हज़ारों की संख्याओं में हलाल होने वाले जानवरों की अनदेखी कर, ये घटिया लोग गाय के दूध पर बछड़ों के अधिकार की बात करते हैं। हलाल बकरों के खून से होने वाले प्रदूषण और उसकी सफाई में पानी की बर्बादी की उपेक्षा कर 'होली' पर पानी के बचत का उपदेश देते हैं। औरतों को काले तम्बू में रखने वाले बुद्धिजीवी, हिन्दू लड़कियों के लिए परिधान की स्वतंत्रता के पैरवीकार बन त्यौहारों पर पहने जाने वाले साड़ी, सिंदूर, मंगलसूत्र तथा सिर पर के पल्लू को पिछड़ापन कहते हैं। हलाला, तीन तलाक, बहु-विवाह तथा औरतों का एफ.जी.एम करवाने वाले तथा उसके समर्थक गिरोह दुर्गा पूजा, सरस्वती पूजा, करवाचौथ, तीज आदि त्योहारों पर बकैती कर औरतों के सम्मान और समाज में उसकी बराबरी की बात करते हैं। बहनों से विवाह करने वाले रक्षाबंधन और भ्रातृद्वितीया पर जहर उगलते हैं। दिन में पाँच बार सियारों की तरह ध्वनि-प्रदूषण फैलाने वाले तथा सड़क पर नमाज पढ़ने वाले दीपावली पर ज्ञान प्रदान करने लगते हैं, जिसमें मंदबुद्धि फिल्म अभिनेता आमिर खान भी शामिल होते हैं।ईद, बकरीद, मोहर्रम के समय भीड़ इकट्ठा करने वाले दोगले नेताओं को छठ पर्व में कोरोना फैलने का डर सताता है। अनेकों उदाहरण भरे पड़े हैं जब कुटिल वामपंथी गुट हिन्दू त्योहारों पर गन्दी मानसिकता का परिचय देते हैं।इतना ही नहीं प्रायः हिंदुत्व के प्रति जलन की भावना के कारण कट्टरपंथी इस्लामी और ईसाईयों द्वारा लूट-पाट की साजिशों के तहत, उत्पात मचा कर, उत्साह पूर्ण त्योहारों को गमगीन बनाना इनका उद्देश्य होता हैं।
हिन्दुओं के लिए एकजुट होकर ऐसे इस्लामी या ईसाई लुटेरों की कुत्सित हरकतों पर पूर्णविराम लगाना आवश्यक है। भारत सरकार को चाहिए कि जिन देशों में हिन्दू धर्म-प्रचारक सनातन वैदिक धर्म का प्रचार-प्रसार नहीं कर सकते हैं वहाँ के विदेशी धर्म-प्रचारकों को भी भारत आने की अनुमति नहीं दें। कट्टरवादिता विदेशों के इस्लाम या ईसाई प्रचारकों द्वारा फैलाई जाती है जो यहाँ की बहुसंख्यक समुदाय का अपमान है।
हिंदुस्तान में प्रत्येक त्यौहार का विशेष पौराणिक महत्व है। यह सभी प्रकार के लोगों के बीच सामाजिक सौहार्द को बढ़ाता है।उदारवादी हिन्दू ईद, बकरीद, क्रिसमस, ईसाई नववर्ष भी ईसाई तथा मुस्लिम दोस्तों के साथ सभी मिल कर मानते हैं। हिन्दूओं द्वारा भी विधर्मियों को भी रोजे के दौरान भोज खिलाया जाता है।मंदिरों द्वारा गरीब मुस्लिम तथा ईसाइयों को भी बिना उनका धर्म परिवर्तन कराए आर्थिक सहायता भी दी जाती है।इस उदारता को कमजोरी समझ कट्टरपंथी मौलानाओं मुस्लिम-समुदाय कुरान की सीख से प्रभावित हो कर दीवाली, होली या दशहरे में हिन्दुओं को परेशान करते हैं, इसी तरह ईसाई बाहुल्य प्रदेशों में भी किसी न किसी बहाने हिन्दू त्योहारों पर हिन्दुओं को परेशान किया जाता है।
ये वामपंथी, लिबरल, झुठे सेक्यूलर गैंग, मध्यएशिया या पाश्चात्य संस्कृति को अपनाने के बाद दुविधा की स्थिति में अपनी फूहरता, असभ्यता, जहिलता को ही अपना गौरव समझते हैं। धर्म परिवर्तन के कारण असहज-विकृत अवस्था के लोग स्वयँ के पूर्वजों से कटे हुए हैं, बिके हुए हैं।ये मूढ़ लोमड़ और गिद्ध-बुद्धि होने के साथ-साथ मानसिक रोगी भी हैं। अस्पष्ट व्यक्तित्व के ऐसे मानसिक रोगियों का इलाज विश्व स्तर पर जरूरी है। संसार के इन मानसिक अपँगों को चाहिए कि हिन्दू त्यौहारों की महत्ता, गूढ़ता तथा रहस्य को समझने के लिए हिन्दू धार्मिक गंथों का अध्ययन करें।