चलते चलाते : बुद्धू हिन्दू
मुफ्तखोरों और रोहिंज्ञा की
असुर-जमात की बढ़ती संख्या,
विक्टिम कार्ड खेल में माहिर,
देशी-दुश्मन हैं जग-जाहिर।
नेताओं की करस्तानियाँ,
कोंग्रेसियों की जालसाजियाँ।
निगल रहे हिन्दूओं को ऐसे,
खुला हुआ मुख!अजगर जैसे।
बनी गले के मौत का फंदा,
राजनीति का खेल है गंदा।
पता नहीं कब बने निवाले,
आज जो कुछ हिन्दू हैं जिंदा ।
कोंग्रेस ने सबको भरमाया,
टोपी पहन,इफ्तार करवाया,
जनेऊ पहन पूजा करवाया,
ढोंगी बन हिन्दू को लुभाया।
पाल रहा! गुण्डा-हत्यारा,
हत्याएँ कितने करवाया?
पहुँचा अतीक है हूरों के घर,
गद्दारों को आज रुला कर।
देशद्रोहियों को दिखला कर,
चेहरे से नकाब उठवा कर,
बेबस से अभिशापित होकर,
गया जहन्नुम राहत पा कर।
हत्यारों को उत्प्रेरित कर,
कितनों की जमीन हड़प कर,
लूट-पाट में भेद नहीं कर,
हिन्दू-मुस्लिम दोनों का घर।
पुलिस बन्धु का कत्ल करा कर,
नित्य नए साजिश रच-रच कर।
मौत का खेल अतीक खेल कर,
गया कलंकित चेहरा लेकर।
हत्यारों का महिमा मंडन,
निर्दोषों के गले का खंडन।
हिन्दू उदार! पाले सारे जन,
दावत मौत को दे बुद्धू बन। डॉ सुमंगला झा।