Unemployment in India

विपक्षी राज्य सरकारें निकम्मी हैं; मोदी सबको रोजगार दे

बेरोजगारी की समस्याएँ पिछले कुछ सालों से हर विपक्षी नेता के जुबान पर है। उन्हें लगता है कि केंद्र में २०१४ में मोदी सरकार आने के बाद हर राज्य सरकारों की अपने नागरिकों को रोजगार देने की अपनीं जिम्मेदारी समाप्त हो गयी है और जीविकोपार्जन के लिए नौकरी देने का काम मोदी के मत्थे है। उन्होंने अपने हाथ गंगाजल से धो लिए हैं।

२०१४ में देश में बेरोजगारी की स्थिति भयावह थी। UPA सरकार ने उनकी समस्याओं से अपनी आँखें मूँद ली थी।बेरोजगारों के लिए सिर्फ एक द्वार खुला था। मनरेगा के तहत मिट्टी काट कर सड़क या ऐसी ही कोई निर्माण करना जो अनपढ़ों के लिए तो ठीक था लेकिन पढ़े लिखे बेरोजगारों के लिए अभिशाप। इन सब के अलावे भ्रष्टाचार के चलते उन श्रमिकों की कमाई का बड़ा भाग बिचौलिए तथा सरकारी लोग मार जाते थे।बेरोजगारों में से अधिकाँश के हाथों में ऐसी हुनर या गुण नहीं था कि वे अनेकानेक निजी विभागों में नौकरी पा सके। अतः मोदी सरकार ने एक महत्वाकांक्षी योजना शुरू की जिसके तहत बेरोजगारों को अपनी इक्षानुसार विभिन्न तरह की व्यावसायिक प्रशिक्षण लगभग मुफ्त में दी जा सके जिससे वे प्राइवेट उद्योगो या स्वरोजगार का जीविकोपार्जन कर सके।मोदी सरकार के आने के बाद एक नया मन्त्रालय का गठन हुआ था "Ministry of Skill Development and Entrepreneurship"। मोदी सरकार ने कुल ४० करोड़ बेरोजगारों को कौशल विकास द्वारा साल २०२२ तक व्यावसायिक प्रशिक्षण देने का लक्ष्य रखा था और कमोवेश उसे पूरा भी कर लेगा।

Modi Govt Promise of Vocational training

इस मंत्रालय ने देश के युवाओं को अपनीं इक्षानुसार अनेकानेक कार्यों में व्यावसायिक प्रशिक्षण देने के लिए एक कौशल विकास का महत्वाकांक्षी योजना शुरू किया है जो कमोवेश अपने उद्देश्य पूर्ती में लगी है। कौशल विकास का व्यावसायिक प्रशिक्षण ग्रहण कर आज करोड़ों लोगों ने केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गयी महत्वाकाँक्षी PM मुद्रा योजना से ऋण लेकर स्व-रोजगार शुरू कर अपने परिवार के लिए जीविकोपार्जन कर रहे हैं तथा दूसरों को भी रोजगार दे रहे हैं। इस स्व-रोजगार में जहां एक और कोइ अपना कारखाना या उद्योग लगा रहा है वहीं दूसरी और अनपढ़ लोग ठेले पर सब्जी या पकौड़े भी बेच रहे हैं। दिसंबर २०२१ तक ऐसे लाभार्थियों की कुल संख्या 32,97,63,724 थी और कुल 19,01,398.82 रूपये आसान ऋण के रूप में दिए गए थे। । यह भारत के इतिहास में स्वरोजगार जीविकोपार्जन की अप्रत्याशित संख्याँ है। लेकिन हमारे विपक्षी नेता मोदी सरकार के इतनी बड़ी उपलब्धि तथा लोगों की स्वरोजगार की प्रतिष्ठा को पकौड़ा बेचने की संज्ञा देकर उपहास कर रहे हैं।

Self Employment under MUDRA

यह बात सत्य है कि कोरोना महामारी के बाद अनेकों निजी संस्थान तथा असंगठित क्षेत्र में रोजगार बंद हो गए थे जिससे करोड़ों लोग प्रभावित हुए। अब लगभग सारे रोजगार फिर से शुरू हो गए हैं लेकिन रोजगारों की संख्याँ कम हुई है। इसमें सरकार का कोई दोष नहीं चाहे वह केंद्र या राज्य सरकारें हों। मोदी सरकार का उदारता देखिए कि वो आज भी ८० करोड़ लोगों को पिछले २० महीनें से मुफ्त का राशन बाँट रही है (पढ़ें : क्या मोदी सरकार लोगों को मुफ्तखोर बना रही है ? https://articles.thecounterviews.com/articles/modi-govt-india-bpl-free-ration/). ।

अब जब भी चुनाव का समय आता है हर विपक्षी नेता केंद्र सरकार को घेरने में लग जाती है कि मोदी ने देश के नागरिकों को बेरोजगारी के अँधेरे में धकेल दिया है। इन राज्य सरकारों ने अपनी जिम्मेदारियों से मानो मुँह मोड़ लिया है और अपनी-अपनी नाकामी मोदी के गले मढ़ रहे हैं। और मोदी सरकार के मंत्रियों की अक्षमता तथा कुमति देखिए कि वे अपनीं ही उपलब्धि दिखाने में असमर्थ हैं। यह कैसी विडम्बना है कि देश में केंद्र या राज्य सरकारों के पास कोई ऐसा आंकड़ा नहीं है जिससे वे अपने-अपने राज्यों में रोजगारों की संख्याँ दिखा सके।अभी कुछ दिनों पहले ही मोदी जी EPFO के आंकड़े गिना रहे थे। राज्य व केंद्र सरकारों की यह कमीं अमान्यऔर हास्यास्पद है।

अक्सर ऐसा देखा गया है कि सत्ता के दौरान केंद्र या राज्य सरकारें अपने नागरिकों को रोजगार देने-दिलाने में नाकामयाब और उदासीन रहती है और सत्ता गँवाते ही उन्हें उनकी बेरोजगारी दीखनें लगती है। इसमें मोदी सरकार ही एक अपवाद के रूप में सत्ता में है जो पूरे देश के बेरोजगारों को कौशल विकास द्वारा सशक्त करने में लगी है और लगभग ३३ करोड़ लोगों को सिर्फ मुद्रा योजना के तहत स्वरोजगार दिया भी है (पढ़ें : देश के युवा बेरोजगार क्यों ? https://articles.thecounterviews.com/articles/indian-youth-jobless-unemployed/). I

2011 vs 2019 unemployment in India

साल 2011 वनाम २०१९ का एक आंकड़ा तो यही दिखाता है कि मोदी सरकार के आने के बाद बेरोजगारी घटी थी लेकिन यह आँकड़ा कोरोना महामारी के पहले की है। इसमें राज्य सरकारों के नाकामी का जिक्र नहीं है। इसमें कोई दो राय नहीं कि राज्य सरकारों को भी बेरोजगारी बढ़ने का जिम्मेदारी तो लेना ही चाहिए। वे अपने अपने राज्यों में रोजगार सृजन में नाकामयाब रहे हैं। राजस्थान की कांग्रेस सरकार का २०१८ में चुनावी वादा और वहाँ के आज की बेरोजगारी की स्थिति कितनी भयावह है राहुल गांधी इसका जिक्र तक नहीं करते। उन्हें तथा कांग्रेस के पूरे मकमें को सिर्फ मोदी सरकार को घेरना है।

Rajasthan govt failure to their unemployment

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