Tolerating Hindu

आधा-अधूरा

आजकल पत्रकारों के कुछ खास समूह आधे-अधूरे तथा झूठी खबरें फैलाने में इतने माहिर हो गए हैं कि उनकी पत्रकारिता पर विश्वास करना बेमानी लगता है। शब्दों के उलट-फेर,वाक्य रचना की कला मुख्यतया ध्यान देने योग्य समाचार का अर्थ बदल देती है। सी. जे.वर्लमे ने शिमोगा के 26 वर्षीय हर्षा नामक बजरंग दल के कार्य कर्ता की मुसलमानों द्वारा की गई हत्या के बारे में गलत खबर फैला कर, उसे बदनाम करने की कोशिश की है जो जघन्य अपराध की ही तरह है। अपनी इस शर्मनाक हरकत पर माफी माँगने के बजाय जश्न मनाना उससे भी ज्यादा निंदनीय है। इन जनाब को शायद योरोप में ईसाई नाबालिगों के साथ, बाहर से आ कर बस जाने मुसलमानों के व्यवहार का पता ही नहीं है। यदि है तो पैसों के लिये इतने गिर चुके हैं कि ईसाई स्त्रियाँ जो मुसलमानों द्वारा टिशू पेपर की तरह इस्तेमाल की जा रही है, उसे नजरअंदाज कर रहे हैं ।

ये बिके हुए पत्रकार जिहादी मुसलमानों की गन्दी मानसिकता का, कुरान में निहित आतंक के समर्थक उद्धरणों का, सरिया कानून में स्त्रियों को प्रताड़ित करने के तरीकों का तथा उन पर लगी पाबन्दियों की भत्सर्ना करते हुए,हिंदुस्तान में जड़ें जमाती जिहादियों की तरफदारी बहुत ही बेशर्मी से करते हैं। क्रूरता के पोषक, पूरी दुनियाँ को गिरफ्त में ले, सरिया कानून लागू करने की ख्वाहिश रखने वाले जिहादी इस्लामिस्टों की बहुतायत संख्याएं अवैध घुसपैठिये हैं जिन्होंने यहाँ के स्थानीय मुसलमानों के साथ मिल कर हिन्दुओं, वैदिक सनातन धर्म को अपमानित करने की कोशिश की है। यह शायद इनकी भी मजबूरी भी हो सकती है क्योंकि स्वयँ के धर्म और संस्कृति को श्रेष्ठ साबित न कर पाने की विवशता ही इन्हें हिंदुत्व की गहराई में नहीं जाने देती है। जिस तरह घोड़ों के आँखों पर आंशिक पर्दा लगा कर इधर-उधर देखने की इजाजत नहीं दी जाती, एवं वे मालिक के चाबुक के इशारे पर चलने को बाध्य होते हैं, कुछ इसी प्रकार पादरी और मुल्ले क्रमशः ईसाई, मुसलमानों को बाइबल और कुरान के अलावा अन्य धार्मिक ग्रंथों को पढ़ने-समझने की क्षमता से विहीन कर हिन्दुओं के खिलाफ उत्प्रेरित करते हैं।

हिन्दुओं की सुसंस्कृत, सभ्य,पवित्र जीवन शैली, ईश्वर और मनुष्य की रचनाओं का सम्मान, दया, उदारता, सहनशीलता, बहुआयामी विशेष ज्ञान की संपन्नता, द्वैत-अद्वैतवाद की व्याख्या आदि की गहराईयों का अध्ययन किये बिना ही ये वर्ग विशेष के फट्टू लोग कुछ भी फूहर वक्त्व दे देते हैं। रविश कुमार, बर्षा दत्त, अरफा खानम ऐसे बहुत से पत्रकार हैं जिन्होंने झुठे, हिन्दू विरोधी, आतंकियों के समर्थन में लेखन तथा वक्त्व दे कर पत्रकारिता की गरीमा पर स्याही पोतने का काम किया है। देश-विदेश में कुछ विकृति ( गन्दगी) फैलाने में लिप्त विभिन्न कलाओं में माहिर कुछ नामी, कुछ बदनाम अभिनेता-अभिनेत्रियाँ, विदेशी पत्रकार अपने गिरेबान की गंदगी को देखने-समझने के बजाय भारत, मोदीजी तथा हिन्दुओं को अपमानित करने में ही गर्व महसूस करते हैं। घटनाओं को तोड़-मरोड़ कर आधा-अधूरा न्यूज देने में लगे रहते हैं।

हिन्दुओं की सहनशीलता, उदारता, अतिथि देवो भवः,सर्वे भवन्तु सुखिनः या वसुधैव कुटुम्बकम का परिणाम यह हो रहा है कि हिन्दुओं तथा हिन्दू धर्म के देवी-देवताओं के विरुद्ध बोलना ये जाहिल अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझ बैठे है। ईसाइयों और मुसलमानों के लिये वैदिक सनातन सँस्कृति के विरुद्ध बकवास करना बहुत आसान हो गया है क्यों कि हिन्दू प्रतिक्रिया या प्रतिकार करने के लिये हथियार, हत्या या आगजनी का सहारा लेना उचित नहीं समझते हैं। 'क्षमा ही धर्म है' का पाठ हिन्दुओं के संस्कार में कुछ इस तरह घुले हुए हैं कि किसी की हत्या तो दूर, किसी को नुकसान पहुँचाने की भावना भी इन्हें पापकर्म के बोध का एहसास कराती है।

एक ही महीने में हिजाब विवाद के तहत लगभग सोलह हिन्दुओं की हत्या की जा चुकी है परन्तु इन मामलों को किसी पत्रकार ने कोई तवज्जो नहीं दी है। हत्यारे यदि मुस्लिम हैं तो कई उपायों द्वारा उनकी दरिंदगी पर पर्दा डालने की कोशिश की जाती है।धर्म परिवर्तन के लिए बाध्य की गई लावण्या की मौत भूली हुई कहानी बन गई है। चोरी करने वाले अखलाक, तबरेज, गुजरात दंगे आये दिन याद दिलाये जाते हैं। ट्रेन में मुसलमान आतंकियों द्वारा मारे एवं जलाए कारसेवक, स्त्रियाँ-बच्चे, किशन,अंकित शर्मा, पुलिस, दिलबर नेगी, चंदन, रूपेश, प्रीति माथुर, तिवारी, पालघर के सन्त, साधु, पुजारी आदि की हत्याएँ हिन्दू होने के कारण इन दोगलों के लिये मात्र मामूली घटना होती है। बंगाल, राजस्थान, तमिलनाडु, कश्मीर, केरल में मारे गए हिन्दू तथा हर्षा जैसे बहुत से बजरंग दल के कार्यकर्ता, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा बीजेपी के कार्य कर्ताओं की हत्याओं को, जिन्हें मुस्लिम समुदाय के द्वारा किया गया है तुष्टिकरण की राजनीति के तहत छुपाने की भरपूर कोशिश की जाती रही है।

मुस्लिम बलात्कारियों तथा हत्यारों के पक्ष को सही ठहराने की कोशिश में हिन्दुओं की हत्याओं पर उच्च या सर्वोच्च न्यायालय तथा मानवाधिकार वालों ने कभी भी स्वतः संज्ञान लेने की हिमाकत नहीं की है। दिल्ली दंगे में शामिल बहुत से मुसलमानों को जमानत दे दी गयी है। बांग्लादेश के ताहिर हुसैन के घर में फिर से जमावड़ा होने के कारण आस पास के हिन्दू प्रताड़ित हैं तथा औने-पौने दाम पर घर बेचने के लिए मजबूर भी हैं। लेकिन खेजड़ीवाल को सिर्फ मुस्लिम दंगाईयों के परिवार वालों की चिन्ता है,जिन्हें वे आर्थिक मदद भी देते हैं । हिन्दुओं की असुरक्षित दयनीय स्थिति, घर बेचने की मजबूरी, आये दिन होने वाली अप्रिय घटनाओं पर न कोर्ट स्वतः संज्ञान ले रही है न ही दिल्ली की सरकार। जगह -जगह सरकारी जमीन पर सड़कों के किनारे मकबरे और मस्जिदों की बहुतायत हथियारों को जमा करने का स्थान बनता जा रहा है जो कभी भी आतंकवादी हमलों के लिये इस्तेमाल किया जा सकता है।

राजस्थान में गहलौत सरकार आतंकी समुदाय 'पी एफ आई' को मीटिंग या यूनिटी मार्च निकालने की छूट दे, हिन्दुओं को असुरक्षित कर देश के दुश्मन को मजबूत रही है। हिन्दुओं तथा भगवाधारी सन्यासियों को बदनाम करने की योजनाओं पर हिन्दू विरोधी समुदाय तन्मयता से कार्यशील हैं। इस्लामिक बोर्डिंग स्कूल के तालीम देने वाले प्रिंसिपल ने तेरह बच्चियों का बलात्कार कर उन्हें गर्भवती किया उसे 'गुरु' के नाम से सम्बोधित करना, मुस्लिम लड़कों द्वारा भगवा पगड़ी बाँध पुलिस पर पत्थर फेंकने का कार्यक्रम भी हिन्दुओं और राष्ट्रवादियों को बदनाम करने की साजिश या अलतकिया चालों का ही हिस्सा है। जुबेर-चुन्ना द्वारा बनाया गया वीडियो, तस्लीमा नसरीन द्वारा दिखाये गए हिजाब कार्टून, वस्तुतः मदरसे की तालीम,इस विशेष समुदाय के चरित्र का सटीक चित्रण करते हैं।

झारखंड में सरस्वती पूजा के अवसर पर मुल्लों द्वारा हिन्दु बच्चे की हत्या के लिये न्याय माँगने वाले प्रदर्शन कारियों पर ही कार्यवाही कर कईयों को जेल में डाल दिया गया है जिसकी किसी पत्रकार ने भत्सर्ना नहीं की है। मानसिक रूप से विच्छिप्त बच्ची का बलात्कारी केरल का शिहाब स्वतंत्र घूम रहा है जिसकी निंदा किसी बामपंथी ने नहीं की है। नाओमी बार्टन ऐसी हस्तियों को भारतीय गणतंत्र में अन्य धार्मिक समुदायों के अधिकार से कोई मतलब नहीं है। उन्हें संस्थानों की नियमावली नहीं दिखाई दे रही है। भारत के मुसलमानों के अधिकार को तवज्जो देने वाले ये पत्रकार एवं मानवाधिकार वाले कभी पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान तथा इस्लामिक देशों में जाकर वहाँ के अल्पसंख्यकों तथा औरतों के अधिकार की बातें करने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाते हैं। क्योंकि इन्हें भी पता है कि भारत और हिन्दुओं के खिलाफ बोल कर भी वे सुरक्षित ही हैं। यदि यही स्वतंत्रजीवी पैसों के लिये आत्मा को बेचने वाले, आधा झूठ बोलने वाले, तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करने वाले पत्रकार तथा बदनाम हस्तियां इस्लामिक देशों में इस्लाम की बुराइयों या पैगम्बर की सच्चाईयों को बताने की कोशिश भी करें तो लकड़बघ्घों द्वारा जिंदा ही चबा लिए जाएँगे।

इस्लामिक देशों के अल्पसंख्यक की प्रताड़ना के बारे में बोलने या लिखने की हिम्मत ये नपुंसक पत्रकार जुटा नहीं पाते हैं क्योंकि कि वहाँ के राक्षसों द्वारा चबा कर पचा लिये लिये जाएँगे जैसा कि कई विदेशी व्यवसायिकों के साथ पाकिस्तान एवं पाकिस्तानी मानसिकता वाले इस्लामिक देशों में हो चुका है। अन्ततः यही कहा जा सकता है कि आधी-अधूरी, झूठी,खबरों को तोड़-मरोड़कर पेश करने वाले हिन्दूओं, हिंदुत्व, हिन्दूधर्म, हिंदुस्तान के खिलाफ लिखने-बोलने वाले पत्रकार तथा नामी-बदनाम हस्तियाँ भी आतंकवादियों की तरह ही खतरनाक हैं। देश और मानवता के हित के लिए, दोहरीकरण के नीतियों पर चलने वाले ये पत्रकार या मानवाधिकार वाले वास्तव में सामाजिक रूप से बहिष्कार किये जाने योग्य हैं, आतंकियों की तरह सजा पाने के भी हकदार हैं।

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