विभाजन विभीषिका (भाग-1) और भारतीय धर्म
हिंदूंओं के लिए सदैव से सिर्फ एक ही मातृभूमि रही है, भारत वर्ष। १९४७ के बटवारे में जो हिन्दू या मुसलमान विस्थापित हुए वहअंग्रेजों से आज़ादी पाने के लिए प्रत्याशित था। मोपल्ला हिन्दू नरसंहार, बंगाल विभाजन और उर्दू आंदोलन अनगिनत हिन्दू मुस्लिम विद्वेष के कुछ ऐसे पहलू थे जिससे यह लगभग तय था कि तत्कालीन हिन्दू मुस्लिम सद्भाव लगभग न के बराबर था।कांग्रेस हिन्दू हितों के प्रति उदासीन था और मुस्लिम लीग बस मुसलमानों का वर्चस्व खोज रहा था। हिन्दुओं के आत्म-सम्मान के लिए ही हिन्दू महासभा की स्थापना मुख्यतया उन्हीं लोगों द्वारा की गयी थी जो तत्कालीन पार्टी प्रमुख अजमल खां, चितरंजन दास, अली जौहर और गांधी के ‘हिन्दू-विरोधी’ या ‘मुस्लिम-परस्त’ विचारधाराओं से आहत थे, जिनके समय मोपल्ला नरसंहार हुआ था। तत्कालीन प्रमुख हिन्दू नेताओं का मानना था कि शांतिप्रिय हिन्दू कभी भी मुसलामानों के बीच सुरक्षित नहीं रह पाएँगे। अतः मुसलामानों की स्वायत्तता तथा हिन्दुओं की सुरक्षा के लिए देश का विभाजन लगभग तय था और इसमें नेहरू की कुछ सत्ता लोलुपता भी थी ।
पकिस्तान तो मुसलमानों के लिए बन गया परन्तु गांधी और नेहरू ने भारत को ‘हिन्दू’ या ‘भारतीय धर्म’ वाला राष्ट्र नहीं होने दिया। कारण ? मुसलमान और ईसाई नाराज़ हो जाते। लेकिन इसका नतीजा क्या हुआ ? भारतीय धर्मावलम्बियों के लिए आज कोई भी अपना देश नहीं है। आज विश्व के २३ % मुसलामानों के लिए ५७ देश, ३२ % ईसाइयों के लिए १६ देश, 5% बौद्धों के लिए तीन धर्म-परस्त देश हैं लेकिन भारतीय धर्म के लिए ठन-ठना-ठन। कुछ भी नहीं।
वैसे होता भी कैसे ? मुसलमानों ने तो देश का विभाजन ही मुसलमानों के लिए किया था। लेकिन भारतीय धर्मावलम्बियों में एकता नहीं थी। बहुतेरे हिन्दू चाहते भी थे कि भारत हिन्दुओं के लिए रहे, तो सिख स्वयं के लिए अलग देश चाहते रहे । यहाँ तक कि जब अगस्त १९४७ में भारत का बँटवारा होने वाला था तो सिखों की ‘शिरोमणि अकाली दल’ की एक टीम लन्दन में ‘अलग सिख राष्ट्र’ की गुहार लगाने गया हुआ था। उस समय किसी ने भी एकित 'भारतीय धर्म' के लिए नहीं सोचा I न गांधी, न नेहरू और न ही सरदार पटेल ने । यह नेहरू की कुटिल चाल, ईसाइयों की असहमति और सिखों की अनमनस्यता का नतीजा था कि भारत को 'हिन्दू राष्ट्र' बनाने नहीं दिया गया वल्कि धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र घोषित कर दिया ।
भारत-विभाजन के पश्चात जहाँ पाकिस्तान से लगभग 60% हिन्दुओं, सिखों को पलायन करने के लिए बाध्य किया गया, भारत के अ-सीमान्त क्षेत्र से लगभग ६० से ७० प्रतिशत मुसलमान पाकिस्तान नहीं गए। इसमें कांग्रेस का बड़ा हाथ था। उन्होंने भारतीय मुसलमानों को यह विश्वास दिलानें की भरसक कोशिश की कि पाकिस्तान बनाए जानें के बावजूद भी भारत उनका घर है। इससे कांग्रेस व नेहरू को एक सुदृढ़ ‘वोट बैंक’ भी मिल गया। एक ओर जहाँ पाकिस्तान से अधिकतर हिन्दुओं, सिखों को अपनी संपत्ति से बेदखल कर मुसलमान अतिवादियों ने उन्हें सब कुछ छोड़-छाड़ कर भागने के लिए मज़बूर कर दिया, वहीं भारतीय मुसलमान अपनी ज़मीन पर डटे रहे। यही नहीं, उन्हें यह अधिकार भी दे दिया गया कि वे ‘वक़्फ़ बोर्ड’ बनाकर भारत छोड़ कर जानें वाले मुसलमानों की संपत्ति भी स्वयं ही रखें। नतीजा यह हुआ कि यहाँ से जानें वाले मुसलमानों को तो पाकिस्तान में पलायित सिखों और हिन्दुओं की संपत्ति और ज़मीन जायदाद का हिस्सा मिलता गया परन्तु पाकिस्तान से विस्थापित हिन्दुओं व सिखों को यहाँ कुछ भी नहीं मिला क्योंकि सारी ज़मीन पर वक़्फ़-बोर्ड का कब्ज़ा था। उधर दूसरी तरफ स्वतन्त्रता पश्चात जो अँग्रेज़ चले गए उनकी संपत्ति ज्यादातर मिशनरियों के हाथ लगा। उसमें से पाक हिन्दू विस्थापितों के लिए कुछ भी नहीं था।
पाकिस्तानी हुकूमत यह बात जानती थी इसीलिए अपने कौम को भविष्य में सुरक्षा दिलाने के लिए नेहरू-लियाक़त समझौता किया जिसके अनुसार दोनों देशों में रह रहे अल्पसंखयकों को सुरक्षा प्रदान करना था। पकिस्तान तो जल्द ही अपने वादों से पलट कर अल्पसंखयकों को प्रताड़ित कर धर्मांतरण या पलायन के लिए बाध्य करना शुरू कर दिया, परन्तु नेहरू और कांग्रेस नें मुसलमानों को प्रताड़ित होने देना तो दूर, अतिरिक्त सामाजिक सुरक्षा देते गए जिसमें 'Muslim personal law board' का गठन भी शामिल था।
यही कारण है कि जब भी ‘भारतीय धर्मावलम्बी’ धर्म के नाम पर कहीं भी प्रताड़ित किए जाते हैं तो धर्म के नाम पर उन्हें लेने के लिए कोई भी देश नहीं। सिखों ने अपनी आत्मरक्षा के लिए निहंगों की स्थापना की थी लेकिन धर्म के नाम पर हिन्दुओं की रक्षा के लिए आज कोई नहीं है। वो वैदिक और पुरातन युग थे जब क्षत्रिय हिन्दू धर्म की रक्षा करते थे। अतीत में उन्होंने इतनी प्रताड़नाएं सहीं है कि अपने ही धर्म के लोगों ने उनकी अवहेलना और उपेक्षा की है। यह तो ज्ञात है ही कि जब मुसलामानों का पहला गैरिसन भारत के मुल्तान में विजय पाया था तो राजपूतों, ब्राह्मणों और कुछ अन्यों ने तो भू-रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे लेकिन जाट, मेड और कुछ अन्य जातियाँ मुसलामानों का साथ देने ढोल-नगाड़े बजाते उनकी स्वागत को आए थे। तो हिन्दुओं में एकता का अभाव उस समय में भी वैसा ही था जैसे मुसलामानों की जूती चाटने अभी भी हमारे अनेक नेता सदैव अग्रसर रहते हैं कि आने वाले चुनाव में उन्हें कुछ मुसलमान वोट मिल जाएं।
गोधरा में उनसठ कार सेवक को ज़िंदा जला डालने के बाद आक्रांताओं को बचाने के लिए लल्लू यादव ने तो अपने विभागीय जाँच बिठाकर मुसलमानों को दोष मुक्त करार कर दिया I लेकिन मुसलमानों के तलवे चाटने वाली पार्टियों ने राज्य के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की गर्दन काटने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। हिन्दुओं में आपसी फूट का यह मात्र एक उदाहरण नहीं है। अभी भी अगर किसी मुसलमान पर कोई ज्यादती होती है तो साथ-साथ भौकनें के लिए इन तथाकथित लिबरल की टोली इकट्ठी हो जाती है लेकिन अगर मुसलमानों द्वारा किसी हिन्दू की ह्त्या भी की जाती है तो यही लोग हिजड़ों की तरह बधिर और मूक बन जाते हैं। इस लेख का यह कतई ध्येय नहीं कि मुसलमानों पर हमले होने चाहिए लेकिन इन छद्म धर्म निर्पेक्षियों से सावधान भी रहना आवश्यक है।
१९९० में मुसलमानों ने कश्मीर घाटी में जब पंडितों का नरसंहार किया तो इन हिजड़ों की टोली ने उफ़ तक नहीं की लेकिन गोधरा काण्ड के बाद जब हिन्दुओं का धैर्य टूट पड़ा तो मुसलमानों की मौत के लिए इन तथा-कथित लिबरल की टोली ने चीख चीख कर जमीन आसमान एक कर दिया था, भारत को संयुक्त राष्ट्र तक घसीट ले गए।
आज हमारे हिन्दू नेता भी मुसलमान वोटों के लिए हिन्दू के ही दुश्मन बने हैं।गांधी और नेहरू के समय से ही पकिस्तान से धार्मिक प्रताड़ना से पलायित भारतीय धर्मावलम्बियों को यह सांत्वना दी जा रही है कि भारत सरकार उन्हें नागरिकता प्रदान करेगी।वे पिछले ७० साल से आस बांधे प्रतीक्षा कर रहे हैं लेकिन कांग्रेस की सरकारों ने उन्हें कुछ नहीं दिया। लेकिन जब मोदी सरकार ने उन्हें नागरिकता दिलाने के लिए नागरिकता क़ानून लाया तो मुसलमानों के तलवा-चट्टों ने वोट बैंक की राजनीति के लिए उस क़ानून को निरस्त करने में जमीन आसमान एक कर दिया। कांग्रेस और कम्मुनिस्टों ने मुसलमानों को भड़काकर दिल्ली व देश भर में दंगे करवा दिए।
गांधी और नेहरू ने पाकिस्तान में रह रहे भारतीय धर्मावलम्बियों की सुरक्षा के लिए कुछ भी नहीं किया। उन्हें मुसलमान रूपी भेड़ियों के बीच छोड़ दिया जो उन्हें समय समय पर नोचते और खाते रहे। परिणाम यह हुआ कि वे पाकिस्तान में वे असुरक्षित महसूस करने लगे और समय समय पर अपनी अस्मिता बचाने के लिए भागते रहे। वे पाकिस्तान में असहाय थे। भारत सरकार ने कभी भी कुछ ऐसा नहीं किया या होने दिया जिससे पाकिस्तान को यह महसूस कराया जा सकता कि अगर वहाँ हिन्दू और सिख सुरक्षित नहीं रह सकते तो यहाँ के मुसलमान भी असुरक्षित हो सकते हैं । इसी का परिणाम है कि भारतीय धर्म मूल के लोग हर मुस्लिम देश में प्रताड़ित व असुरक्षित हैं। दूसरे देशों की बात तो छोड़िए, ये अपने ही देश में मुसलमान-बहुल क्षेत्र में असुरक्षित महसूस करने लगे हैं और पलायन को मजबूर हो जाते हैं।
सिख तो अपनी एकता और तलवार की ताकत पर फिर भी अपना दबदबा रखते हैं लेकिन हिन्दुओं की आपस में फूट, उनमें एकता आने ही नहीं देतीं और नतीजा ? पलायन। यह हमें कश्मीर में भी देखने को मिला था जहाँ से मुसलमानों के आतंक ने हिन्दुओं को तो पलायन पर मज़बूर कर दिया लेकिन अधिकतर सिख वहीं डटे रहे। उन्हें मुसलमान आतंकियों का सामना भी करना पड़ा, बलिदान भी देना पड़ा लेकिन वे अब भी वहाँ डटे हैं ।
ऐसा ही कुछ अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान में भी होता आ रहा है । अफ़ग़ानिस्तान में तालिबानी और अन्य जिहादी मुसलमान रूपी राक्षसों ने उनपर इतनी हिंसा की कि उनकी समझ में अब आया है कि अपने बाहुल्य क्षेत्र में मुसलमान कभी भी हितैषी नहीं हो सकते। बहू बेटियों को बे-आबरू कर उन्हें पाकिस्तान में भी बार-बार यही महसूस कराया जा रहा है लेकिन उनमें से कुछ लोग यह समझ नहीं पा रहे। भारत में नागरिकता क़ानून का सिख भी विरोध कर रहे हैं। लगता है जिहादियों से अभी तक उनका जी नहीं भरा है। खालिस्तान का सपना दिखाकर प्रताड़ित करना पाकिस्तान की इस्लामिक सरकार पिछले ५० सालों से करती आ रही है और आगे भी करती रहेगीI
वाह री भारत सरकार और यहाँ की धर्मनिरपेक्षता; और वाह री भारत का संविधान। भारत में ही हिन्दू असुरक्षित हैं। और बिडम्बना यह कि आप 'हिन्दू राष्ट्र' की बात भी नहीं कर सकते। वोट बैंक की राजनीति कर रहे राजनेता तथा उनके वोट बैंक ‘मुसलमान और ईसाई’ नाराज हो जाएंगे। साथ ही सिखों को भी लगता है कि हिन्दू राष्ट्र से उनकी अवहेलना होगी। यह वही स्वत्रंत्रता पूर्व आपस में फूट वाली वाली स्थिति है । भारतीय धर्मावलम्बियों को तो इससे निपटना ही पडेगा अन्यथा पहले भारत के छोटे कसबे, छोटे शहर मुस्लिम बहुल होंगे फिर राज्य और देश का हिन्दू खतरे में होगा I विभाजन के बाद भारत में रह रहे साढ़े तीन करोड़ मुसलमान आजलगभग २१ करोड़ हैं। उनका जिहाद-अल-दावा उन्हे अपनी जनसंख्याँ बढ़ाने के लिए प्रेरित करता है I कश्मीर को तो इस्लामी-कैंसर ने ग्रसित कर रखा है, उसकी बात छोड़िए; भारत के अन्य प्रदेशों के लगभग १२ जिलों में आज के दिन हिन्दू अल्पमत में आ गए हैं और २ जिलों में अगले कुछ वर्षों में अल्पमत में आ जाएंगे। जहाँ भी मुसलमानों के समक्ष हिन्दू अल्पमत में हैं, उन्हें इस्लामी अधिपत्य और जिल्लत सहनी पड़ती है और बाद में पलायन। यह एक चिंता जनक स्थिति है। हमें यह भी नज़र अंदाज़ नहीं करना है कि केरल में सत्ता में आते ही जमात-ए-इस्लामी पार्टी ने उत्तर केरल में सरिया क़ानून लागू कर दिया था। अतः मुसलामानों का ध्येय साफ़ है। जनसंख्याँ बढ़ाओ और इस्लाम लाओ। २०१४ में ISIS का सरगना अल-बग़दादी ने तो दुनिया को खुले आम चुनौती दे दी कि पूरा विश्व इस्लामिक खलीफत बनेगा। तो भारत को भी इस्लामिक बनाने के लिए यहाँ के मुसलामानों में सुगबुगाहट तो है बस संख्यां में अभी कमी है। तो उन्होंने तय कर लिया है, अपनी आबादी बढ़ाओ, बाहर से आए मुसलमान घुसपैठियों को भी आश्रय दो जिससे यह देश मुस्लिम बाहुल्य हो जाए ।
मुसलमान बाहुल्य में आते ही या तो शरिया नियम लागू करेंगे या फिर दूसरे विभाजन की मांग।अपने उद्देश्य को हासिल करने के लिए उनके पास पहले से ही एक अमोघ अस्त्र है "जिहाद" जिसका स्वरुप हम दशकों से जम्मू कश्मीर में देखते आ रहे हैं। वे अपनी औलादों को यह शिक्षा भी देने लगे हैं कि काफिरों का क्या अंजाम हो। काफिरों का गला किस तरह काटने चाहिए यह उन्हें सिखाया जानें लगा है चाहे चोरी-छुपे, दबी आवाज में ही सही। पाकिस्तान से एक विडिओ सामने आया था जिसमें एक जिहादी औरत एक मदरसे में बच्चों के सामने दिखा रही थी कि काफिरों के गले कैसे काटने चाहिए। अन्य धर्मावलम्बियों के प्रति इस तरह की घृणा इस्लाम में आम बात है। उनके मुहम्मद ने अपना उत्तरार्ध जीवन अरब जातियों के प्रति घृणा, असहिष्णुता और नरसंहार में ही बिताया था । कुरआन में इसी की सीख है।इस विषय पर विस्तृत में कई लेख, आलेख और पुस्तकें छपीं हैं (read 'Islamic Hate, Intolerance, Bigotry and Fascism and global caliphate' https://articles.thecounterviews.com/articles/islamic-intolerance-bigotry-fascism-global-caliphate/) इस्लाम, ईसाई, बौद्ध और यहूदी ने तो अपने लिए धर्म राष्ट्र बना लिए हैं अब बारी है हिन्दू या भारतीय धर्म की।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, जो एक देश-परस्त संस्थान है, अपने विघान में 'हिन्दू राष्ट्र' और 'अखंड भारत' की कल्पना की है और इसके लिए देश के लिबरल गैंग एवं छद्म धर्मनिरपेक्षी उसे अक्सर साम्प्रदायिक होने की संज्ञा देते हैं। लेकिन इसमें साम्प्रदायिक क्या है, यह समझ के परे है।क्या विश्व के तीसरे सबसे बड़े धर्म-समूह के लिए एक विशेष ‘धर्म राष्ट्र’ की कल्पना करना गलत है ? अगर हाँ तो ५७ मुस्लिम देश और १६ ईसाई देशों के खिलाफ ये लिबरल गैंग क्यों नहीं भौंकते ? उनको संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार समिति के 'संज्ञान' के दायरे में क्यों नहीं लिया जाता ?
हाँ ! भारत के लिए एक मुश्किल अवश्य है। अखंड भारत की कल्पना अब असंगत और अ-तार्किक लगता है क्योंकि पाकिस्तान, बांग्लादेशऔर अफ़ग़ानिस्तान का भारत में विलय संभव प्रतीत नहीं होता। अगर भारत के ही अन्य तीन भारतीय धर्म जैन, बौद्ध और सिख"हिन्दू राष्ट्र" की संज्ञा से अपने आप को उपेक्षित महसूस करती है तो फिर भारत को "भारतीय धर्म राष्ट्र" घोषित किया जाना चाहिए और वो सारे प्रावधान देने चाहिए जो इस्लाम को इस्लामिक और ईसाई को क्रिस्चियन राष्ट्र में उपलब्ध होता है।लेकिन हाँ ! यह भी देखा जाना चाहिए कि कोई भी विदेशी धर्म का जान बूझकर तिरस्कार न हो। इससे मुसलमानों और इसाईओं को नाराजगी तो अवश्य होगी लेकिन इस तथ्य को झुठलाया नहीं जा सकता कि मूल रूपेण भारत इन्हीं चार धर्मों का स्थल था जहाँ इस्लाम और ईसाई धर्म आक्रांता के रूप में आईं और ज्यादातर थोपी गयी है। यह निर्णय बिलकुल अंतर्राष्ट्रीय नियमों के अनुकूल होगा कि विश्व के तीसरे सबसे बड़े धर्म समूह के लिए एक मात्र धर्म राष्ट्र भारत की स्थापना होगी और किसी को भी इससे ऐतराज नहीं होना चाहिए।यह भारत का मामला है और सिर्फ भारतीयों को इस पर निर्णय लेने का अधिकार होना चाहिए।अगर आवश्यक हो तो भारत में इस पर एक विशेष जनमत कराई जा सकती है।
मुसलमानों और इस्लाम के खिलाफ इतना कुछ लिखना चाहे तथ्य ही क्यों न हो, बुरा लगता है लेकिन सत्य से हम कब तक आँख मिचौनी कर सकते हैं ? सत्य तो यही है कि भारत अतीत में मुसलमान आक्रांताओं से पीड़ित होता रहा । मुसलमानों ने पहले अफ़ग़ानिस्तान को भारत से अलग किया, फिर पाकिस्तान। अब वे पुनः अपनी जनसंख्या बढ़ाकर तिबारा विभाजन करने या भारत को इस्लामी राष्ट्र बनाने को सोच रहे हैं। मुसलमानों का साथ देने के लिए हमारे ही कुछ दोगले नेता, ५७ इस्लामी देश, विश्व के १५० से अधिक जिहादी संगठन तथा भारत का अनहित चाहनें वाले बहुतेरे पश्चिमी देश भी हैं। अतः भारतीय धर्मावलम्बियों को सावधान तो रहना ही होगा। हिन्दू राष्ट्र नहीं तो ‘भारतीय धर्म राष्ट्र’ के लिए पहल तो करनी ही होगी। नहीं तो मुसलमान हमें शान्ति से जीने नहीं देंगे। उनका क्या है ? उनके लिए मार-काट, हिंसा, बम धमाका आम चीज है जो हमें आधे से अधिक मुस्लिम देशों में देखने को मिल रहा है। किन्तु हिन्दू तो सदैव से शान्ति के उपासक रहे हैं। हिन्दुओं के पास मुसलमानों से लड़ने के लिए ‘जिहाद’ नामक अस्त्र नहीं है। हमारे पुरखे वैदिक युग से ही शान्ति प्रिय रहे हैं। इस शान्ति के मन्त्र से हम जिहादी दानवों को कैसे नियंत्रित करेंगे, हमें सोचना है। १४ अगस्त १९४७ का दिन हमें तब तक विभाजन विभीषिका का याद दिलाता रहेगा जब तक कि भारत 'भारतीय धर्मावलम्बियों' के लिए पूर्ण सुरक्षित न हो जाए चाहे वह हिन्दू, जैन, बौद्ध या सिख ही क्यों न हो।