भारत में युवा बेरोजगार क्यों ?
मैं कुछ महीनें पहले अपनी द्विभाषी पत्रिका “The Counterviews; प्रतिमत” के लिए एक आलेख लिख रहा था “भारतीय युवा बेरोजगार क्यों ?”। उन्हीं दिनों राहुल गांधी ‘NYAY’ की बात कर रहे थे। उनके चापलूसकार हर बेरोजगार को ८००० रुपये माहवारी देने की बात कही थी। बिहार के कई गाँव के लोग जो मज़दूरी कर कमाते, खाते थे… उन्होंने तो प्रण कर लिया था कि भाई जब बेरोजगारो को बिना कुछ किए ८००० रुपये माहवारी मिलेगा तो उन्हें क्या पागल कुत्ते ने काटा है कि दिन भर मज़दूरी कर के उससे भी कम कमाएँ? टीवी चैनलों पर कांग्रेस के प्रस्ताव के पक्ष में बोलने के लिए उनके जी-हुज़ूरीकार, चाटूकार, तनखैये, पिछलगुए तथा यहाँ तक कि नोबेल पुरस्कार विजेता भी आते थे। ये सब नामी गिरामी वकील, शिक्षाविद, इतिहासकार, अर्थशास्त्री यहाँ तक कि कुछ देशभक्त भी थे। उन सबों से यह कहलवाया जाता था कि न्याय तर्क-संगत, युक्तिसंगत तथा आर्थिक रूप से संभव था।
तब तक गबन और धोखाधड़ी के मामलों में न्यायालयों द्वारा जमानत पर छोड़े गए राहुल गांधी और उनकी माताश्री सोनियाँ जी की कांग्रेस की सरकार २०१८ में नरेंद्र मोदी को "चौकीदार चोर है" बताकर चार राज्यों में बीजेपी को हराकर सत्ता में आ चुकी थी। अतः उन राज्यों में तो युवाओं ने तो सपनें भी देखने शुरू कर दिए थे कि कांग्रेस पार्टी उन्हीं राज्यों से NYAY लागू करना शुरू करेगी। उन राज्यों में राहुल गांधी ने पढ़े लिखे बेरोजगारों को पहले से ही चुनावी सपना दिखा रखा था कि उन्हें १२००० रुपये प्रतिमाह "बेरोजगारी भत्ता" दिया जाएगा।
उन दिनों तो हमारे यदुवंशी नेता चाहे इंजिनियर अखिलेश हो या दसवीं फेल ‘महा’ तेजस्वी, सबों की जुबान पर यही सवाल था कि युवाओं को रोजगार क्यों नहीं ? फिर हमनें निकट अतीत पर नज़र डाला I समझ में आने लगा कि ये यदु-कुमार कुछ सालों पूर्व स्वयं भी सत्ता में थे। एक मुख्यमंत्री और दूसरा उपमुख्यमंत्री। दोनों के पिताश्री भी सालों साल मुख्य मंत्री रह चुके थे। एक यदु-कुमार के पिता गबन के आरोप में जब जेल गए तो उन्होंने अपनी अंगूठाछाप अर्धांगिनी को ही मुख्यमंत्री के कुर्सी पर आसीन कर दिया था। फिर ये लोग अपने समयांतराल में सबों को रोजगार देना उचित क्यों नहीं समझा ? तो समझ में आया… कि भाया… युवाओं की नौकरी का मामला हमारे बरसाती नेताओं को तभी दीखता है जब सत्ता हाथ से चली जाती है।
मगर ये मोदी किस खेत की मिट्टी है भला ? इतनी अच्छी खासी बहुमत लेकर २०१४ में सत्ता में आया था। अच्छा दबदबा था। फिर ये १६ करोड़ युवाओं, महिलाओं को मुद्रा योजना के तहत रोजगार क्यों दे रहे थे ? उन्होंने तो २०१९ में और अधिक बहुमत से आने के बावजूद पुनः मुद्रा योजना शुरू कर दिया। क्या किसी पागल कुत्ते ने काटा है उन्हें, कि सत्ता में रहते ही लोगों को रोजगार दे रहे हैं ?
हाँ ! उन दिनों जब मैनें एक आलेख प्रकाशित किया था "हर भारतीय हाथ को मिले काज" (Works to all Indian Hands: Govt unable or unwilling? The Counterviews; Issue 2:04; pp-16; www.thecounterviews.com) और इसका एक प्रारूप निर्मला सीतारमण जी और मोदी जी को भी भेजा था तो शायद उन्हें अच्छा नहीं लगा और इसीलिए कचरे के डब्बे में फेंक दिया होगा। आखिर सत्ता का कुछ तो असर होना चाहिए।
लेकिन फिर… वे पिछले एक वर्ष से ज्यादा समय से ८० करोड़ लोगों को मुफ्त में राशन पानी क्यों बाँट रहे हैं? आखिर मोदीजी ऐसा कर क्यों रहे हैं ? इससे अच्छे तो हमारे ‘पप्पूजी’ निकले। चुनावी वादा कर लोगों को बेवकूफ बना, उन राज्यों से रफ्फू चक्कर हो लिए। एक समय के युवराज रहे उस ‘बूढ़-बच्चे’ को तो कोई याद भी नहीं दिलाता कि उन्होंने चार राज्यों के युवाओं से सरकारी नौकरी देने का वादा किया था और जब तक वह न मिले बेरोजगारी भत्ता तो तय था ही। उनका तो शासन पाँच राज्यों में था, वल्कि अभी भी वे पाँच राज्यों में या तो स्वयं के बल पर या किसी और के कंधे पर विराजमान हो सत्ता की रेबड़ी खा रहे हैं । वहाँ तो राहुल मियाँ सबों को रोजगार दे सकते थे या दे सकते हैं ।
कहते हैं "होनहार बिरवान के हॉट चिकने पात"। राहुल गांधी में वो सारे लक्षण विद्यमान हैं कि वह झूठों का बादशाह बनेगा। बहरहाल… कांग्रेस-शासित प्रदेशों में न तो युवाओं को सरकारी नौकरी मिली, न बेरोहजारी भत्ता और न ही उन्हें न्याय मिला। झूठे वादों से जूझ रहे युवाओं में तो एक समय इतना गुस्सा था कि इक्के-दुक्के लोग 'झूठबोला' पप्पू की टांग तोड़ने तक की बात कर रहे थे, लेकिन धीरे धीरे सब शांत हो गए। सबों को समझ में आ गया कि राहुल गांधी किस मिट्टी का बना है, उसके द्वारा किए गए वायदों की क्या अहमियत है । उन चुनावी वादों को चिर परिचित कोंग्रेसी 'चुनावी जुमला' #PappuPollPromises मानकर सब सह गए।
तो प्यारे देशवासियो ! जब कोई महा लोभी नेता या राजनितिक दल सत्ता के गलियारे से बाहर निकाल दिया जाता है तो उसे जनता की हर दुर्दशा दीखनें लगती है चाहे कुछ बढ़ चढ़ कर ही क्यों न दिखे। लेकिन जिस दिन ये बरसाती नेता या दल सत्ता में आ जाती है वह सबकुछ भूल कर अपनी तिजौरी भरनें लगता है। क्या बिडम्बना है कि सत्तर के दशक का ‘चप्पल छाप’ लल्लू बिना किसी ज्ञात श्रोत की आमदनी के आज सैकड़ों करोड़ों की संपत्ति का मालिक है। कांग्रेस की राजमाता के विदेशी बैंक खाते में बिना किसी कमाई के अरबों की नकदी है। यह बात जब २०१३ में उजागर हुआ था तो अन्ना हज़ारे को चोर बताने वाले कोंग्रेसी नेता मनोज तिवारी को सोनिया गांधी की फटकार पडी थी कि वाशिंगटन पोस्ट के उस खबर पर लीपा पोती की जाए। इसी प्रकरण में कल का 'उड़ता पंजाब' के युवा आज भी उड़ते ही दीख रहे हैं। तो अब कोई बताए कि किस पर विश्वास किया जाए ? झूठबोले राहुल पर, पढ़े लिखे या अंगूठा छाप यदुकुमारों पर या वास्तव में देश और देशवासियों के हित में कार्यरत मोदी जी पर ?