Intruder rats part-4

धारावाहिक : मेरी, तेरी, उसकी बातें: घुसपैठिए चूहे (भाग-4)

पता नहीं कैसे ? किसी भी छेद से, दरार से चूहे घुस कर कहीं भी छुप कर बैठ जाते हैं। समस्या उन्हें होती है जो प्रायः उनके घुसपैठ के प्रकोप को झेलते हैं या जिनके घरों में वे अवैध कब्ज़ा कर लेते हैं। सरकारी आवास में अनेकों सुविधाओं के कारण चूहे भी स्वतः आकर्षित होते हैं। खाना-पीना, छुपने-छुपाने के स्थान भी पर्याप्त होते हैं। उनके आगमन को रोकना भी कठिन है। प्रत्येक सीमा रेखा पर पहरेदारी नहीं की जा सकती है। ये खतरनाक घुयपैठिये किसी नाले से, टॉयलेट के कमोड से, यहाँ तक कि रसोई घर के हवा बाहर फेंकने वाले चिमनी से भी घुसपैठ कर जाते हैं। कहीं भी परिवार बना कर प्रजनन में लग जाते हैं, देखते-देखते तादाद इतनी बढ़ जाती है कि घर वालों को घर के अन्दर शान्ति से रहना मुश्किल कर देते हैं ।

मेरे घर में भी कुछ ऐसा ही हुआ चूहे कब आये पता नहीं चला !..ऐसे भी तीसरे महले पर जहाँ सभी दरवाजे एवं खिड़कियों पर लोहे के जाले लगे थे वहाँ इतनी बड़ी सँख्या में चूहों के आने की बातें सोचना जरुरी नहीं होता है। रात में कुटुर कुटुर कुट, कुटुर कुटुर कुट.... सुनाई जरूर देता था लेकिन कुतरे हुए चीजों के अलावे कुछ दिखता नहीं था। अचानक रोशनी करने पर एका -एक सन्नाटा छा जाता था। कुछ दिनों बाद घर से बच्चों के, पति के एयरफोर्स के यूनिफॉर्म के साथ पहने जाने वाले मौजे भी गायब होने लगे। जोड़े का एक ! अतः ढूढ़ना शुरू किया, लेकिन कोई फायदा नहीं, नहीं मिलना था नहीं मिला। सोचना भी फिजूल था, आया को मोज़े की जोड़ी एक साथ रख सुखाने की हिदायत दे, बच्चों के लिये नयी जोड़ी ले कर आ जाती थी। पति जरूर सुबह-सुबह मोजे की जोड़ी न मिलने के कारण भुनभुनाते, चिढ़ते, हिदायतें देते घर से निकलते थे। कभी-कभी तो ऐसी हालत होती थी कि सिर्फ रंग देख कर, लगभग जोड़ मिला कर पहन कर निकल जाते थे। अपने भारत में सर्वव्यापी सिद्धांत है कि घर में मुश्किल हो, गड़बड़ हो, बच्चों में कुछ कमी हो, सुविधा-व्यवस्था सभी के मन-माफिक नहीं हो तो सारा दोष गृहणी के माथे ही मढ़ा जाता है, लेकिन जब बच्चे अच्छा कर रहे हों, सब कुछ सुचारू ढंग से चलता हो तो सारा श्रेय पतिदेव को जाता है। गृहणी की क्या-क्या समस्याएं हैं, उससे घर के अन्य सदस्यों को न कोई सरोकार होता है न ही कोई सहानुभूति।

कुछ दिनों के बाद बच्चों की चड्डियाँ भी गायब होने लगी; ऐसा अनुमान था कि बालकोनी से शायद उड़ जाते होंगे; क्लिप लगाया; लेकिन चड्डियाँ धोने के बाद नहीं, धोने से पहले ही वाशिंग मशीन के पास के इस्तेमाल किये गए कपड़ों की टोकरी से जो प्रायः खुला रहता रहता था उससे गायब हो जाते थे। चीजें गायब चाहे जिस भी कारण से हो! लापरवाही के लिए मुझे ही दोषी ठहराया जाता रहा। बेचारी काम वाली भी यही कहती थी कि आप जो देती हैं, मैं धो-धुला कर सहेज कर यहीं रख देती हूँ। मुझे क्या पता होगा कि कपड़े कैसे कहाँ गायब हो रहे हैं ? कपड़े धोने और सुखाने वाले अंदरूनी बरामदे के ईंट से बने जालीदार घेरे तथा छत के बीच थोड़ी चौड़ी जगह थी जिसमें लगे हुक से रस्सी बाँध कपड़े सुखाए जाते थे। पर्याप्त हवा एवं धूप कपड़ों को मिल जाते थे। कपड़े यथावत वहीं सुखाए जाते रहे क्योंकि घर के सामने के खुले बरामदे में कपड़े सुखाना ऑफिसर कैम्पस के अंदर असभ्यता की पहचान थी।

समय बीतता गया, मेरा वाशिंग मशीन थोड़ा धीमा काम करने लगा, कपडे निचोड़ने वाला हिस्सा (रिंसरभी धीरे-धीरे अटक-अटक कर घूमता था। मैंने सोचा कुछ पुराना होने के कारण ही समस्या हो रही है I काम तो चल ही रहा था लेकिन एक दिन वाशिंग मशीन ने चलना बंद कर दिया, कपडे निचोड़ने वाला हिस्सा भी घूम नहीं रहा था। मशीन चूँकि प्रत्याभूति समयांतराल के अंतर्गत ही था इसलिए कम्पनी वालों को मशीन ठीक करवाने के लिए बुलवाया गया। बेचारे आकर उसके पुर्जे-पुर्जे खोलने में लग गए, ज्यों -ज्यों पुर्जे खुलते जाते चीजों के गायब होने का रहस्य भी खुलता जा रहा था। हमारी खोई चीजें बाहरी एवं बीच के हिस्से की खाली जगह में जिसे सुरक्षा की दृष्टि से खाली छोड़ा जाता है उससे बाहर आ रही थी; साथ ही बाहर आ रहे थे गुच्छों में चूहे के परिवार के दर्जनों बच्चों के समूह ! कुछ तो बिलकुल गुलाबी गुच्छे थे, कुछ इधर-उधर खिसकने वाले भूरे रंग के थे तो कुछ थोड़े बड़े हो चुके थे परन्तु अभी भी इकट्ठे ही चिपके से थे। उन सभी समूहों के पास मूँगफली,मैगी के छोटे-छोटे टुकड़े, ब्रेड के टुकड़े भी थे सबसे आरामदेह था उनका बिस्तर जो मौजे एवं कुतरे हुए चड्डियों का बना था। हैरान थी कि आखिर वे वहाँ पहुँचे कैसे? वस्तुतः उन्होंने पानी के ड्रेनेज पाइप से रास्ता बनाया था एवं पेंदी के प्लास्टिक को काट कर एक छोटा सा छेद बनाया था जिससे उनकी आवा-जाही सुचारु रूप से बिना मशीन की गति-विधियों में व्यवधान डाले जारी रहती थी। बच्चे भी मशीन के स्पंदन से आराम से सोते-जागते बढ़ते रहते थे। मशीन बड़ा था अतः दो परतों के बीच जगह भी काफी थी जिस पर उनका अवैध कब्ज़ा हो गया था। अंदरूनी हिस्सा गंदगी और चूहों से भरा हुआ था। मुझे अपने खोए हुए छोटे-छोटे कपड़े अत्यंत दयनीय दशा में मिल गए थे।

यह दृश्य देख कर उन अवैध बांग्लादेशियों, घुसपैठिये, रोहिंज्ञाओं, आतंकियों, पाकिस्तानियों की याद आ गयी जो रेलवे की जमीन पर, बम्बई के घाटों पर एवं दो देशों की सीमाओं के बीच की खाली जमीन पर झुग्गी झोपड़ी बना कर घुस बैठते हैं। अवैध कब्जा कर, मजार बना कर जमीन से चिपक जाते हैं फिर वक्फबोर्ड वाले उसे वक्फबोर्ड की जमीन बता कर कब्ज़ा कर लेते हैं। इन अवैध कब्जे वाली जमीन पर घुसपैठिये बांग्लादेशी चोरी की हुई रेलवे की चादरें, कंबल से तम्बू बना, उसी में दर्जनों बच्चे पैदा कर लेते हैं। अपने और दर्जनों बच्चे लिए आहार भी चोरी-चकारी, नोंच-खसोट कर जुटा लेते हैं। हथियार एवं बॉम्ब आदि पहुँचाने वाले के लिए यह सुरक्षित स्थान होता है। अनेकों तस्कर भी इन अवैध घुसपैठियों को आर्थिक सहायता पहुँचा अवैध सामग्री के वितरण में मशगूल रहते हैं जिस पर पुलिस को भी शक नहीं हो पाता है। चिन्ता का विषय है कि दर्जनों-दर्जनों गुच्छों में पोषित ये समूह थोड़े बड़े होते ही कहीं भी देशविरोधी कारनामों को आसानी से अंजाम देते हैं। खैर; जो भी हो! उन सभी चूहों के बच्चों को मैंने उसी समय बड़ी सी बाल्टी में निकलवा कर उन गुदड़ियों के साथ ही बाहर पेड़ों के बीच फिंकवा दिया था। उन बच्चों को मारने की तो हिम्मत नहीं हुई थी न हीं उन्हें मारना ह्रदय को स्वीकार था। कुछ प्रौढ़ चूहे जो खट-खुट..खट-खुट सुन कर बाहर भाग चुके थे दूर से बच्चों को फिंकवाने का दृश्य देख रहे थे। मुझे उससे कोई सरोकार नहीं था क्यों कि मैंने बच्चो को फेंका था मारा नहीं था अगर उसे चिड़ियों या बिल्लियों ने अपना आहार बनाया होगा तो मैं क्या करूँ? मुझे अपनी वाशिंग मशीन ठीक करवाना था तो करवाया था। मेरा काम पूर्ववत चालू हो गया था।

चैन से बैठते ही सोचने लगी अच्छा हुआ कि समय रहते अवैध कब्जे वाली जगह मैंने खाली करवाई अन्यथा बहुत से छेद कर ये चूहे पुरे कुनबे के साथ मशीन के तारों या उसके पार्ट-पुर्जे को भी कुतर कर, मशीन ही बर्बाद कर देते और यदि ये सारे घर के अन्दर आ जाते तो ! बाप रे बाप ! कितना खतरनाक होता !..कितनी बर्बादी होती? ऐसे ही कुछ विचार घुसपैठिये बांग्लादेशियों, पाकिस्तानी, रोहिंग्या, आतंकवादी जिहादियों के समूह के लिए भी उठते हैं जो देश की सम्पत्तियों को बर्बाद करने में आये दिन लगे रहते हैं। खैर! चूहों का तो उपाय मैंने किसी तरह ढूंढ लिया!..... लेकिन घुसपैठियों, जिहादियों एवं आतंकियों को निकालने का उपाय क्या है?..... इसके लिए देशवासियों एवं सरकार को सोचने की आवश्यकता है कि वे कैसे इन बर्बाद करने वाले घुसपैठिये समूहों से छुटकारा पायें? क्या सरकार एवं जनता समय रहते इन अंदरूनी घातक दुश्मनों से छुटकारा पा सकेगी ?

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