चलते चलाते : जोशीमठ
जोशी मठ के उत्तुंग शिखर,
मनोहारी सुंदरता से परिपूर्ण।
अमृत-नदियाँ,कटोरी नुमा घाटी,
चारों ओर ऊँचे-ऊँचे पेड़-पहाड़,
नुकीले,पथरीले,पंक्तिबद्ध शिखरें,
ढँकी ! झरनों, झारियों या बर्फ से।
कर्णप्रयाग ,औली,ये सब गढ़वाली,
रह पाएंगे सुरक्षित,प्रकृति-प्रकोप से?
चोटियों के उपर,गहरा नीला आकाश,
आकर्षित करता है,सहज ही दृष्टि को।
एक टुकड़ा बादल का हवा में उड़ता,
यूँ धुनियाँ की रुई के ढेर से एक फाहा,
उड़ चला! पा कर हवा का एक झोंका।
निचले हिस्सों में पेड़ों की पत्तियों के
चटक गहरे, हरे रंग, जैसे धूप से धुला,
नदी जल से नहा कर निकली, पहाड़ी
देवांगनाओं का अप्रतिम,अद्भुत सौंदर्य।
कमलिनी की कली से भी नाजुक-कोमल,
पहाड़ी सुंदरता,सादगी,स्वयँसिद्ध,परिपूर्ण,
दिखते,'ये'फौलाद से मजबूत पहाड़ी बच्चे,
पैरों-चल,जरूरतमंदों को सामग्री पहुंचाते ।
आपदा की घड़ी में जरूरी राशन-कंबल की,
आस लिये,ठंड में ठिठुरते,शिकायती लहजे,
जोशीमठ के,स्थानीय अनेकों असंतुष्ट लोग!
क्यों हैं उपेक्षित? मजबूत सरकार के होते?
प्रशासन हो सक्रिय! इनके अधिकारों को!
इन्हें सुगमता से पर्याप्त मात्रा में दिलवायें,
हर संभव सुरक्षा!अपेक्षित सुविधा से संवारें,
गरीबों को सन्तुष्टि देने वाले! हितैषी कहाएँ।
लोकहित में सभी कार्य सुगमता से हो साकार,
तभी कहलाये,उत्तराखंड की मजबूत-सरकार!
डॉ सुमंगला झा।