Kashmiri Pandits Fleeing again

कश्मीर में जिहाद व हिन्दू प्रताड़ना

(नोट- इस लेख में सरसरी तौर पर ऐसा लग सकता है कि सारे मुसलमान जिहादी हैं लेकिन यह सत्य नहीं है। भारत में अधिकाँश मुसलमान शांतिप्रिय हैं लेकिन वे कट्टरपंथियों, मजहबियों, जिहादियों या आतंकियों की करतूतों के खिलाफ आवाज नहीं उठाते। यही कारण है कि आज के धार्मिक उथल-पुथल के समय (जहाँ हिन्दू इस्लामिक आतताइयों द्वारा पहुँचाए जख्मों का हिसाब मांग रहे हैं) मुसलामानों की जो भी आवाजें आ रही हैं वे सिर्फ और सिर्फ कट्टरपंथियों के हैं। उनकी खामोशी गलत सन्देश दे रहीं हैं : मौनं स्वीकृति लक्षणम I)

जम्मू कश्मीर में कई दशकों से जो आतंकवादी घटनाएँ हो रही है अब उसका नाम जिहाद पड़ चुका है और १९९० या उससे भी पहले से वहाँ के गैर मुस्लिम समुदाय या उनके किसी भी तरह से सहायता करने वाले लोगों या गुटों के खिलाफ चल रही है। इसमें अधिकाँश शांतिप्रिय हिन्दू, सिख या फिर उनके या भारत सरकार के प्रति सहानभूति रखने वाले किसी भी गुट के खिलाफ चलाया जा रहा है चाहे उसमें बीजेपी या कांग्रेस के मुसलमान ही क्यों न हों। अब तो यह जिहाद एक नया ही रूप लेता जा रहा है जिसमें गैर कश्मीरी मज़दूर या कोई भी कार्यरत नागरिक शामिल हैं। यह अत्यंत ही निंदनीय है। पीड़ितों की संख्याँ कागातार बढ़ती ही जा रही है। हाल के कुछ महीनें में मृतकों की संख्याँ लम्बी होती जा रही है जो कुछ नाम नीचे दिए गए हैं।

इस्लाम का आतंकी स्वरुप कश्मीर में जिसे नहीं दीख रहा वह मानसिक रूप से अंधा है।यह जिहाद १९८८ से शुरू है।इसका एक नंगा रूप हमनें जनवरी १९९० में देखा और काश्मिरी हिन्दुओं ने झेला था।वे घटनाएँ पाकिस्तानी आकाओं के इशारे पर जरूर हुआ था परन्तु उसे अंजाम देने वाले ज्यादातर कश्मीरी मुस्लिम ही थे।आज भी जब कश्मीरी हिन्दुओं का वहीं के मुसलामानों के हाथों चुन चुन कर ह्त्या की जा रही है तो इस जघन्य अपराध को अंजाम देने वाले ज्यादातर कश्मीरी मुसलमान हीं हैं चाहे उनके आका पाकिस्तानी ही क्यों न हो।स्कूलों, सरकारी दफ्तरों, बैंकों आदि में कार्यरत हिन्दुओं की शनाख्त उनके अपने ही सहकर्मी मुसलमान करते हैं, सिर्फ गोली चलाने वाला आतंकी होता है।अपवाद छोड़ आज किसी भी कश्मीरी मुसलामानों पर भरोसा करना अपने आप को छलने के बराबर है। मुहम्मद जिसे मुसलमान पैगम्बर मानते हैं, इस्लाम की नीव ही अरबी जनजातियों के नरसंहार के लिए किया था और उसने कुरान में वे सारे आयात रखे हैं जो इस्लाम का अन्य धर्मावलम्बियों के प्रति घृणा तथा असहिष्णुता दिखलाते हैं (read ‘60 hateful & intolerant verses of Quran (part-1 & 2’; https://articles.thecounterviews.com/articles/60-hateful-intolerant-verses-quran-part-1/; https://articles.thecounterviews.com/articles/60-hateful-intolerant-verses-quran-part-2/) ।

कश्मीर में जब से विदेशी शासक १३८९ में आए, तभी से हिन्दुओं / पंडितों का प्रताड़न शुरू हो गया था। वैसे तो हिन्दुओं में एकता की कमी के कारण इस्लामी शासकों ने पूरे भारतवर्ष में नरसंहार किया किन्तु एक छोटे राज्य 'जम्मू कश्मीर' की व्यथा कुछ अलग ही है। यहाँ स्थानीय मुसलमान नेता शेख अब्दुल्ला ने भी साल १९३१ में"All J&K Muslim Conference" नामक पार्टी बनाकर "Quit Kashmir" आंदोलन के मार्फ़त हिन्दुओं / पंडितों की प्रताड़ना शुरू कर दी थी।काश्मिरी हिन्दुओं की दुखद अवस्था नीचे वर्णित है।

Islamic oppression in Kashmir
Islamic oppression in Kashmir

कश्मीर घाटी में जब से मुसलामानों की संख्याँ हिन्दुओं से ज्यादा हुई तब से ही हिन्दुओं की दुर्गति होती आ रही है। देश मेंकांग्रेस के लगभग ७० सालों के शासन में लोगों को इन मसलों को उठाने की अनुमति नहीं थी लेकिन 'मोदी राज' में जब से लोगों को बोलने की आजादी मिली है तब से हिन्दुओं / पंडितों की प्रताड़ना के स्वर मुखर होते जा रहे हैं। हाल ही में "कश्मीर फाइल" नामक फिल्म के मार्फ़त १९९० कश्मीरी पंडित नरसंहार की दिल दहला देने वाली क्रूर इस्लामी घटना विश्व पटल पर उजागर हुई है।कांग्रेस ने भारत में स्वतन्त्रता पश्चात हिन्दुओं की अवहेलना क्यों की ? (पढ़ें भारत में हिन्दू असहाय क्यों ? https://articles.thecounterviews.com/articles/hindu-helpless-in-india/) I

मुसलमान बचपन से ही अपने बच्चों को कुरान पढ़ाते हैं। इस तरह दूसरे धर्मावलम्बियों के प्रति उनकी असहिष्णुता बचपन से ही शुरू हो जाती है और लगभग जीवन भर बना रहता है (read ‘Is Quran a source of hate & intolerance?’ https://articles.thecounterviews.com/articles/is-quran-a-source-of-hate-and-intolerance/) । इसी तरह हर शुक्रवार को मस्जिदों में मुल्लाओं द्वारा कैसा खुत्बा पढ़ा जाता है कि अक्सर लोग बाहर आते ही हिंसारत हो पत्थरबाजी या हिंसा में लग जाते हैं ? ऐसा माना जाता रहा है कि खुत्बा के लिए उन्हीं मुल्लाओं को रखा जाता है जो मुस्लिम युवाओं को भड़का सकते हैं। यही कारण है कि चीन में १६ साल से कम के बच्चे को मस्जिद जानें की अनुमति नहीं है। वहाँ वही खुत्बा पढ़ा जाता है जिसे वहाँ के अधिकारियों ने स्वीकृति दी है। फ़्रांस में कुछ मस्जिदों पर मारे गए छापे में कई मुल्ला उन देशों से आए ‘विदेशी टट्टू’ निकले जहाँ अधिकाँश लोग अतिवादी हैं तथा जहाँ मदरसों में अतिवादी तथा आतंकवादी पैदा किए जाते हैं जैसे पाकिस्तान, ईरान, इराक़, मलेशिया आदि। हालाँकि ख़ुत्बे में कुछ मानव मूल्यों की भी बातें की जातीं हैं लेकिन वस सिर्फ और सिर्फ इस्लाम सम्बन्धीऔर मुसलामानों के प्रति। हर ख़ुत्बे में मुल्ले किसी न किसी तरह से यह जरूर बता देते हैं कि इस्लाम का एक दिन दुनिया भर में वर्चस्व तथा इस्लाम को नहीं मानने वाले काफिरों का नाश होगा।अल्पसंख्यक होते हुए भी एकजुट होकर इस्लाम के लिए लड़ने की तालीम इन्हीं ख़ुत्बों में मिलती है।यही कारण है कि इनकी भीड़ कहीं भी इकट्ठी हो जाती है जबकि हिन्दुओं के आपसी तालमेल में कमीं के कारण वे सरकार या पुलिस की आस ताकते रह जाते हैं और ये राक्षस हमारे घर जला जाते हैं।

कश्मीरी मस्जिदों में भी कुछ ऐसा ही होता आ रहा है। जनवरी १९९० में वहाँ के हर मस्जिद में लाउड स्पीकर बज रहे थे "रॉलिव सालिव या ग़ालिब (Convert, Flee or Die) (read Looking back at Ralive, Tsalive ya Galiv; January 1990 Genocide of Kashmiri Pandits’; https://articles.thecounterviews.com/articles/ralive-tsalive-ya-galive-january-1990-genocide-kashmiri-pandits/) । आज भी हर आतंकवादी किसी न किसी तरह मस्जिदों से जुड़ा हुआ होता है।आज विश्व में ५७ इस्लामी देश हैं और ज्यादातर देशों की एक ही कहानीं रही है, 'वहाँ के धार्मिक अल्पसंख्यकों का नरसंहार' ।इस्लाम का यह घृणित रूप हमनें २१ वीं सदी में भी बार बार देखा है चाहे वह कश्मीर (पंडित), इराक़ (यज़ीदी), नाइजीरिया (ईसाई) या कहीं और हो। हमारे पड़ोस में अफगानिस्तान पाकिस्तान बांग्लादेश मलेशिया आदि में हिन्दुओं सिखों बौद्धों का नरसंहार होता चला आ रहा है और हम आँख मूंदे बैठे हैं।इस्लाम का यह कैंसर अब हमें पुनः निगलने के लिए तैयार है।अक्सर आवारा कुत्तों की तरह देश के भौकनें वाले छद्म मानवाधिकार गिरोह बिलकुल खामोश है और खामोश है संयुक्त राष्ट्र संघ का मानवाधिकार आयोग भी (Read ‘Biased and Shameless Amnesty International’ https://articles.thecounterviews.com/articles/biased-shameless-amnesty-international-part-1/) । कश्मीर तथा लक्षद्वीप में हिन्दुओं का लगभग सफाया हो चुका है, बारी है असम, बंगाल तथा केरल की।अगर हिन्दू यूं ही हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहे तो कश्मीरी पंडितों की तरह उन्हें भी पलायन करने की नौबत आ जाएगी जैसे कैराना, मुर्शिदाबाद तथा मल्लापुरम आदि में हो रहा है।

आज कश्मीरी पंडित फिर से जम्मू पलायन करने को सोच रहे हैं क्योंकि उनमें (या यूं कहिए हिन्दुओं में ) एकता की कमी है। हालाँकि क़त्ल किए जा रहे हिन्दू / पंडित परिवारों की मानसिकता सबसे पहले अपने और अपने स्वजनों की सुरक्षा से ग्रस्त है। देश के लगभग पूरे हिन्दू समाज हाल की इन घटनाओं से व्यथित हैं लेकिन पलायन तो इसका कोई समाधान नहीं। वे पाँच उंगली एक सशक्त मुट्ठी बननें से झिझक रहे हैं। क्या वे जानते नहीं कि जम्मू में उनका क्या हश्र होगा ? जम्मू में अभी लगभग 67% मुसलमान हैं। वहाँ भी कई इलाके में हिन्दुओं के प्रति असहिष्णुता शुरू हो गयी है। आज न तो कल कश्मीर से पलायन किए हुए पंडितों को जम्मू से भी पलायन करना होगा। फिर वे कहाँ जाएंगे ? अतः आज इस्लामी अतिवादी, हिन्दुओं के प्रति जो भी ज्यादती कर रहे हैं, उसका निदान तो हमीं को करना होगा। हो सकता है मोदी सरकार इसमें हमारी कुछ सहायता कर सके, अन्य कोई सरकार तो कभी नहीं।

जम्मू कश्मीर को छोड़कर देश के १२ मुस्लिम बाहुल्य जिलों में हिन्दू अल्पमत में आ गए हैं। अगर हिन्दू कश्मीरी पंडितों जैसे ही भगौड़े बने रहे तो उन्हें उन जिलों से पलायन करना होगा। आज तो मोदी के रहते हम और आप अपनीं आवाज उठा सकते हैं। लेकिन बीजेपी के जाते ही मुसलामानों की जूती चाटने वाले कांग्रेस, तृणमूल, समाजवादी पार्टी या राजद मुसलामानों के वोट के इतने लोलुप होंगे कि आपको आवाज भी नहीं उठाने देंगे जैसा राजस्थान, बंगाल व केरल में हो रहा है।जमात उलेमा के मौलाना महमूद मदनी ने तो यहाँ तक कह दिया कि अगर हिन्दुओं को मुसलमान से दिक्कत है तो वे कहीं और चले जाएँ (https://www.dailypioneer.com/2022/state-editions/jamiat-raised--islamophobia-----banner-of-over-gyanvapi-row.html) ।

इस्लाम धर्म के नाम पर भारत के विभाजन के पश्चात रह गए 9.5% मुसलमान आज फिर से लगभग 18% हो गए हैं और इनकी हिम्मत देखिए, हिन्दुओं को अपनी ही सरजमीं से बेदखल करने पर तुले हैं। नेहरू और गांधी ने तो भारत को हिन्दू राष्ट्र बननें नहीं दिया जो हर हिन्दुओं के दिल और दिमाग में एक नासूर के तरह चुभता रहेगा (पढ़ें 'भारत एक ‘हिन्दू-राष्ट्र’ : क्यों हो या क्यों न हो ? https://articles.thecounterviews.com/articles/india-hindu-nation-rashtra-indian-religions/)। समय आ गया है हिन्दू एकजुट और सतर्क हो जाएँ। एक भी हिन्दू को अपने स्थान से पलायन न करना पड़े इसके लिए सरकार के साथ साथ हमें भी जागरूक होना पडेगा।जिहादियों के खिलाफ लोहा लेना ही होगा। उनकी मिट्टी पलीद करने का वक्त आ गया है।

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