आज विश्व के ज्यादातर मुस्लिम देश चीन के समर्थक हैं, यहाँ तक कि पाकिस्तान भी। चीन जिस तरह सुचारु रूपेण जिंजयांग के उइघुर मुसलामानों का दमन, या यूं कहिए, खातिरदारी करता है, उन्हें मान्य है। आज के मुफ्ती जी की भी कुछ ऐसी ही मनसाएँ हैं। उन्हें भारत का तिरंगा नहीं भाता। वे भी उइघुर मुसलामानों के प्रति चीनी व्यवस्था के मुरीद लगतीं हैं। अब तो मुफ्ती और अब्दुल्ला दोनों ही चीन की दमनकारी नीतियों के समर्थक बन गए हैं।मैथिलि में एक कहावत है "जहिनें देवता ओहिने अक्षत"। तो अगर कश्मीरी या विश्व भर के मुसलामानों को उइघुर मुसलामानों को दिए जाने वाले चीनी व्यवस्था ही पसंद है तो किसी को कोई हर्ज़ क्यों ? फिर मोदी सरकार को मुसलामानों के प्रति चीन की नीतियों को अपनाने से उदासीनता क्यों ?
मोदीजी को चाहिए कि वे अमित शाह जी को निर्देश दें कि भारत केरूढ़िवादी व अतिवादी मुसलामानों की भी ऐसी ही खातिरदारी हो जैसा चीन में होता है। यहाँ भी चीन जैसा ही मुसलामानों के लिए लद्दाख के पठारों में या बंगाल की खाड़ी के एक छोटे से द्वीप पर धार्मिक प्रशिक्षण कैंप हो जहाँ देशहित के अनुरूप उनकी मानसिकता बनाई जाए। कुरान से जिहाद शब्द निकाल दिए जाएँ। धर्म की आड़ में कोई भी अतिवादी या विघटनकारी विचारधारा का अनुकलन न करे । १६ वर्ष से कम के मुसलामान बच्चों को मस्जिद या मदरसा में प्रवेश वर्जित हो तथा कुरान की अनैतिक अशिक्षा न मिले।। यही चीन की निति है और अगर भारत अपने ही देश में मुसलामानों की भलाई चाहता है तो उसे भी चीन की निति अपनानी ही चाहिए। यही मुफ्ती और अब्दुल्ला की मनसा भी है और चाह भी ।
देश में रूढ़िवादी या अतिवादी मुसलामानों की तायदाद कम ही है।ऐसा कोई रिसर्च पत्र नहीं है जिसमें ऐसे लोगों का आँकलन किया गया हो। फिर भी अंदाजन ऐसे लगभग २० प्रतिशत लोग होंगे जिन्हें मुसलामानों के लिए विशेष रूप से बनाए गए प्रशिक्षण कैम्पों में रखने की आवश्यकता हो। आखिर मोदीजी कोपूरे भारतीय या कम से कम कश्मीरी मुसलामानों के प्रति चीन जैसी निति अपनाने में हिचकिचाहट क्यों जो मुफ्ती अब्दुल्ला के मन की मुराद भी है?