
छोटी छोटी बातें- २ (सुन्दरवती महिला कॉलेज, सावन - भादव का महीना)
घटना छोटी सी है I हालाँकि बहुतेरे लड़कियों के साथ घटी होगी, फिर भी सुनाती हूँ।
हमारे कॉलेज का हॉस्टल गंगा नदी के ठीक कछार पर है I यह बिल्कुल खड़ी दीवार जैसा नदी का किनारा था जहाँ से पानी तक पहुँचने में नदी की तेज धारा में गिरने का अंदेशा होता था। मतलब यह कि हम लड़कियों के लिए पानी में जाना लगभग असंभव था I बाढ़ के समय नदी का पानी काफी ऊपर आ जाता था I ऐसा लगता था कि बाढ़ का पानी हॉस्टल की ऊँची चाहरदीवारी को छू लेगा लेकिन ऐसा कभी होता नहीं था। बाढ़ के समय बहते घर, पेड़, फसल या जानवरों को हम प्रायः शाम को छत पर से देखा करते थे।
एक शाम ऐसे ही कई लड़कियाँ छत से बाहर नदी की ओर झाँक रहे थे तो देखा एक घर का टाट (घास - फूस बाँस से बनाई गई झोपड़ी की दीवार) बहता जा रहा था। उस बहते टाट पर पेट के बल लेटे दो लड़के मरणासन्न से दिखते बहते जा रहे थे।... देख .. देख..देख..हाय !...हाय !..देखो! पता नहीं ये लड़के किसके बेटे हैं बाढ़ में बह मर गए हैं..... घर भी बह गया है...पता नहीं कहाँ जाकर, किस किनारे लगेगा...पता नहीं इन दोनों की लाशों का क्या होगा ? बेचारे परिवार वाले..... क्रिया - कर्म भी नहीं करवा पाएंगे, । च..च..उफ्फ.. कितना बुरा हुआ है.. ...इसी तरह की बातें हम लड़कियों के बीच चल रही थी I कुछ और लड़कियाँ भी संवेदना में भाग कर उन बहती लाशों को देखने आ गईं थीं I वह टाट धीरे धीरे किनारे की ओर होता हुआ कॉलेज हॉस्टल की दीवार के काफी पास से बहने लगा I हमारी भी उत्सुकता बढ़ गई थी I
ज्यादा ध्यान से सभी लड़कियाँ-सहेलियाँ उसे स्तब्ध होकर देखने लगे कि तभी अचानक उन मरणासन्न शरीरों ने पलटी मारी I हम सब विस्मित उसे देख ही रहे थे कि तभी उन लाशनुमा लड़कों ने ऊँची आवाज में गाना शुरू किया.....सावन का महीना.. ना...आ.. ना... पवन करे शोर....शोर... जीयरा... रे...झूमे ऐसे.....जैसे वन मा नाचे मोर.....।