चाचा नेहरू ज़िंदाबाद !
हर १४ नवम्बर के दिन 'बाल दिवस' मनाया जाता है और बाल दिवस तो संसार भर में मनाया जाना ही चाहिए क्योंकि आज के बच्चे ही हमारे और विश्व भर के भविष्य हैं। लेकिन इसी दिन जवाहरलाल नेहरू का भी जन्म हुआ था। हमारे नेहरू जी भारत के अनमोल रत्नों में से हैं जिन्होंने भारत माता के अनेकों सपूतों की तरह वह कुछ किया जो करने चाहिए थे। यह बात और है कि उन्होंने बहुत कुछ ऐसा भी किया जो नहीं करने चाहिए थे।
कांग्रेस की वास्तविकता
यह बात सत्य है कि कांग्रेस का गठन एलेन ह्यूम के द्वारा ब्रिटिश सरकार की नीतियों को आगे बढ़ाने के लिए किया था जिसके मार्फत भारतीय भी अपनीं बातें ब्रिटिश सरकार के सामने रख सकते थे। लेकिन कम ही भारतीय मामलों पर हुकूमत की ध्यान जाती थी। इससे मुट्ठी भर अंगरेजी पढ़े लिखे भारतीय अपने आप को बड़े मानने वाले लोग खुश थे कि अब उनकी उठ-बैठ कभी कभार अंग्रेजों के साथ भी होने लगी थी I यह बात और थी कि वे निरंतर अंग्रेजों के दवाब में उनकी हुकूमत के लिए काम करते थे। हिन्दू महासभा के अध्यक्ष रहे पंडित मदन मोहन मालवीय पहले ऐसे कांग्रेस के अध्यक्ष (1909) बने जो बेझिझक अपनी बात कह सकते थे लेकिन कांग्रेस की वास्तविकता उन्हें भी मालूम था । गांधी और नेहरू बहुतों दशक बाद कांग्रेस से जुड़े। अनेकों तत्कालीन देशभक्तों, जैसे बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय तथा बिपिन पाल आदि को भारतीयों के प्रति कांग्रेस की ढुलमुल नीति बिलकुल पसंद नहीं थी I उन्हे ब्रिटिश सत्ता बिलकुल नामंजूर था और इसीलिए उन्होंने एक अलग 'गरम दल' बनाया और ब्रिटिश शासन से भारत और भारतीयों के विरुद्ध नीतियों से प्रति खिलाफत शुरू कर दी। अंग्रेज सरकार धीरे-धीरे परेशान होने लगी और उन्हें महसूस हुआ कि गांधी के 'नरम दल' से कुछ मामलों पर सहयोग करना चाहिए और तब से हिन्दुस्तानियों की आवाज़ सरकार के कानों तक पहुँचने लगी लेकिन यह कतई आवश्यक नहीं था कि उन मामलों पर कार्यवाही भी हो ।
तब गांधी और नेहरू समेत अनेकों नेताओं को लगने लगा था कि आज़ादी के सुर गाये जा सकते हैं। स्वतन्त्रता आंदोलन के दौरान दूसरे देशभक्तों की तरह उन्हें भी कई बार जेल जाना पड़ा था। हालाँकि प्रथम प्रधानमंत्री के लिए कांग्रेस के आतंरिक मतदान में सरदार पटेल को अधिकतम मत मिले थे, फिर भी गांधी जी ने नेहरू को प्रधान मंत्री बनाया I इससे कई नेता विक्षुब्ध थे लेकिन देश हित में प्रतिरोध करना उचित नहीं समझा I मुसलमानों के लिए देश का विभाजन तो हुआ ही लेकिन गांधी का सहारा लेकर नेहरू एक बड़ी विकत चाल चल गए I पकिस्तान तो दिया ही पर भारत में ही बहुतेरे मुसलमानों को रहने भी दिया जो आज नासूर बनकर यदा कदा देश के पुनर्विभाजन का राग अलाप रहे हैं I
नेहरूजी की दूरदर्शिता
नेहरूजी काफी दूरदर्शी थे। स्वतन्त्रता उपरान्त जब गांधी जी ने नेहरू को कांग्रेस को समाप्त या बर्खास्त करने की सलाह दी थी, नेहरू ने नहीं माना। वे जानते थी कि जल्द ही और भी कई राजनैतिक दल बनेंगे और तब कांग्रेस का 'आज़ादी की लड़ाई' वाला बर्चस्व चला जाएगा। इसीलिए उन्होंने कांग्रेस को बर्खास्त नहीं किया। वैसे इस बात से मना नहीं किया जा सकता कि नेहरू जी ने कुछ अच्छे काम भी किए थे जिनमें भारत को तकनीकी रूप से सशक्त करना भी था हालांकि उनका प्रयत्न ज्यादा कारगर सावित नहीं हुआ। आधे अधूरे मन से काम किए गए थे। वास्तविकता तो यह भी थी कि वे सनकी किस्म के व्यक्ति थे और शासन में कई संवेदनशील मामलों में अक्सर मनमानी करते थे जैसे कश्मीर का भारत में विलय, पाकिस्तान से विस्थापित हिन्दुओं के प्रति संवेदनहीनता अदि अदि I
नेहरू जी की दूसरी दूरदर्शिता तब सामने आईं जब मुसलामानों के लिए पाकिस्तान बनने की बावजूद उन्होंने ने ढेर सारे मुसलमानों को 'कांग्रेस वोट बैंक' बनाकर भारत में ही रहने के लिए प्रेरित किया और लियाक़त समझौते के तहत उन्हें सुरक्षा भी देने का प्रण भी लिया। लियाक़त मियाँ तो उस समझौते से कन्नी काट कर पाकिस्तान में हिन्दुओं को समाप्त करना शुरू कर दिया पर कांग्रेस की सहायता से भारत में मुसलमान न सिर्फ सुरक्षित रहे बल्कि इतना फलने-फूलने लगे कि कश्मीर को छोड़कर भी भारत के १२ जिलों में आज वे बहुसंख्यक हो गए हैं और हिन्दुओं को अपनी ही जमीन से पलायन करने को मज़बूर कर रहे हैं। मुसलमान रूपी कैंसर आज भारत मरण ही हिन्दुओं को ही निगल रहा है।
नेहरू जी की तीसरी दूरदर्शिता कश्मीर में देखने को मिली जो पिछले चार दशकों से एक नासूर बना हुआ है। यह नेहरू और कांग्रेस की दूरदर्शिता ही है कि आज भारत के अंदर तीन भारत हैं। पहला 'क्षद्म-धर्मनिरपेक्ष' भारत जिससे हम दिन प्रतिदिन जूझ रहे हैं, जिसमें धर्म के नाम पर अधर्म का बोलबाला है I दूसरा 'मुस्लिम वैयक्तिक' भारत, जिसमें संविधान के "यूनिफॉर्म सिविल कोड" के बिपरीत मुसलमानों को अपना अलग व्यक्तिगत क़ानून बनाने और मानने की छूट दी गयी है जो कट्टरवादी, आतंकवादी और जिहादी सोच को बढ़ावा दे रही है। तीसरा 'ईसाई भारत' जिसके चर्च में हिन्दू विरोधी गतिविधियाँ आम हैं और यहाँ भारतीय क़ानून नहीं वल्कि वेटिकन रोम का शासन चलता है। विश्व भर में ऐसा बहुरूपिया शायद ही और कोई देश हो। नेहरू चाचा और कांग्रेस के दूरदर्शिता की जय हो।
नेहरू के दिए कुछ नासूर
नेहरू चाचा बच्चों के बहुत प्यारे थे क्योंकि भारत में आने वाती तबाही की उनको कोई आशंका नहीं थी। इसीलिए नेहरू जी के जन्म दिन को भारत 'बाल दिवस' मनाती है। यह नेहरू जी की दूरदर्शिता ही थी कि यहाँ बहुतेरे तकनीकी और नौरत्न संस्थान खुले। स्वतंत्र भारत के सामने सैकड़ों समस्याएँ थी जिसका उन्हेंने भरसक सामना किया।विदेश निति में उनकी पहल कुछ भ्रमित सी ही रही है। उनकी पहल से बना गुट-निरपेक्षता भारत के काम तो नहीं आया और आज के सन्दर्भ में अपनी पहचान खो चुका है।
नेहरू चाचा ने हमें काफी सारे नासूर भी दिए हैं।पहला तो उनके और कांग्रेस की लापरवाही है कि भारतीय विभाजन पश्चात यहाँ के ९.४ % मुसलमान आज ~१८ % के करीब है और अपने ही देश में हिन्दू अल्पसंख्यक बनते जा रहे हैं। जम्मू कश्मीर को छोड़कर भी भारत के १२ अन्य जिलों में हिन्दू अल्पमत में आ गए हैं और जल्द ही दो और जिलों में मुसलमान बहुसंख्यक हो जाएंगे। यह चिंता का बड़ा कारण है क्योंकि यह सर्व विदित है कि वहुसंख्यक मुसलमानों के बीच कोई भी गैरमुस्लिम असुरक्षित ही रहेंगे और देर-सवेर उनको पलायन करना ही पड़ेगा नहीं तो उनकी जिंदगी और अस्मिता दोनों ही संकट में रहेगा ।
यह उनकी दूरदर्शिता ही थी कि पाकिस्तान से भागनें वाले हिन्दू और सिख अपना सब कुछ गँवाकर यहाँ भाग आए परन्तु यहाँ से पलायन करने वाले मुसलमानों की सारी संपत्ति उनके 'वक्फ बोर्ड' के पास ही रहा, हमारे किसी शरणार्थी के काम नहीं आया (read “Waqf acts of Loot-India” )। नेहरू के ही नक्शेकदम पर चल कर कांग्रेस ने वक़्फ़ बोर्ड को एक ऐसा सुरसा बना दिया जो भारत सरकार की ही नहीं अपितु हिन्दुओं की व्यक्तिगत व सार्वजनिक-धार्मिक स्थली जमीन भी इस कदर हड़पने लगी है कि वे आवाज भी नहीं उठा सकते I इसी तरह मिशनरियों के यहाँ से जानें के बाद उनकी भी संपत्ति चर्च को ही मिली ।
उन्हींने दूसरा नासूर जम्मू-कश्मीर में दिया है। पहले तो उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ विजयी होते और आगे बढ़ते भारतीय सेना को रोक कर एकतरफा युद्ध विराम घोषित कर कश्मीर का बड़ा सा भू भाग गँवा दिया। जम्मू-कश्मीर को अलग दर्जा देकर आने वाली पीढ़ी को एक सर दर्द दे दिया जो कट्टरवादी, आतंकवादी और जिहादी सोच को बढ़ावा दे रही है। जम्मू-कश्मीर के आतंरिक मामले को संयुक्त राष्ट्र में ले जाकर एक अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बना दिया जिससे हम आजतक जूझ रहे हैं।
तीसरे, उन्हेंने १९६२ की चीन के आक्रमण में भारतीय सेना के हाथ कुछ इस तरह बाँध दिए थे कि बेहतर होते हुए भी अपनी सेना को हार का मुँह देखना पड़ा। लद्दाख का एक बड़ा भू-भाग को चीन को अधिग्रहण कर लेने दिया। उधर उनहोंने भारत के लिए एक बड़ा मौका गँवा दिया जब संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् की स्थाई सदस्यता लेने से इंकार कर दिया और यह सदस्यता चीन को दिए जानें की वकालत की। वही चीन आज हमारे सर पर बैठ कर तांडव कर रहा है। जय हो चाचा नेहरू की।
अंततः अब लगता है कि कांग्रेस जिस मकसद से ह्यूम द्वारा बनाई गयी थी वह वह आज भी वही भारत को कमजोर करने का काम कर रही है। कोंग्रेसी १८८५ में भी हिन्दुओं के किसी काम के नहीं थे और आज भी इनको हिन्दुओं से घृणा है। वोट बैंक के लिए ये इतने गिर चुके हैं कि शांतिप्रिय हिन्दुओं को तालिबानी, मुस्लिम ब्ब्रदरहुड और ISIS का दर्जा देते हैं। यह तो हिन्दुओं का असीम सब्र ही है कि कोंग्रेसी नेताओं की घृणा बर्दास्त किये जा रहे हैं। आज-कल हम जिस कांग्रेस को भारत में देख रहे हैं वह हिन्दू विरोधी, भारत विरोधी तथा भ्रष्टाचार से लिप्त है। इसके अधिकतर नेता जमानत की 'बेल गाड़ी' पर सवार हो जेल की तरफ अग्रसर हैं। यह कांग्रेस कट्टरवादी मजहबियों का समर्थक है जो पहले भी देश विभाजन कर चुका है और एक और देश विभाजन की ओर अग्रसर है। इस कांग्रेस की हमें कतई आवश्यकता नहीं है।
चाचा नेहरू ज़िंदाबाद !