धागों की मजबूती एवं अनुशासन की सिलाई चाहे कितनी भी मजबूती से क्यों डाला गया हो निरन्तर खींचा-तानी में कभी धागा, कभी सिलाई, तो कभी कपड़े फट ही जाते हैं, ऐसा ही कुछ बीजेपी वालों के साथ भी हो रहा है। बीजेपी में भी कुछ ऐसे नेता हैं जो स्वयँ की मजबूत छवि न बना पाने के स्थान पर मोदीजी की ही छवि लेकर जनता के ह्रदय में पैठना चाहते हैं। ऐसा ख्याल हानिकारक है। कई नेता को अयोग्यता के कारण यदि मनमाना स्थान का टिकट न मिलता है या उन्हें चुनाव लड़ने से रोका जाता है तो अपनी नाकामयाबी का दोष मोदी को देते हुए विषवमन करते हुए भ्रष्टाचारियों के चँगुल में फँस जाते हैं, जहाँ वे मजदूर बन अपने आका को आर्थिक फायदा पहुँचाते नजर आते हैं। जनता के लिए महाराष्ट्र के वसूली सरकार को भुलाना कठिन है।
कांग्रेस के आलाकमान तो शातिर सियार की तरह ही हैं। इस्तेमाल करो, जेबें भरो तथा काम निकलने के बाद अपने विरुद्ध बोलने वालों या गुलामी न स्वीकार करने वाले नेताओं को चाटुकारिता न करने वालों को निकाल फेंको। वह भी ऐसे ठिकाना लगाओ कि वे राजनीती तो क्या दुनियाँ से भी कैसे लापता हो जायें यह भी रहस्य ही रह जाए। छोटे-मोटे लोगों की तो कहीं चर्चा भी नहीं होती है बड़े-बड़े सूरमाओं की (शास्त्री जी एवं अन्य भी बहुत से नेताओं ) बातें भी आज तक रहस्य ही बनी रह गयी है।
कांग्रेस के काले कारनामों के लम्बे फेहरिस्त रहस्य ही बने रहते हैं क्यों कि इसे वे प्रकाशित होने ही नहीं देती है। बोलने वालों की हत्या करवाना, बखिया उधेड़वाना, टुकड़ों में कटवाना, गुप्त सिलाई लगाना तोड़ना, चिथड़े करने के लिए दस गुण्डों को लगा देना आला कमान दर्जिन के लिए मामूली बात है। अभिव्यक्ति की आजादी की बातें करने वाले कांग्रेस के राज्य में न तो ये आजादी पहले थी न ही उनके द्वारा शासित प्रदेशों में आज ही है। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर मोदी विरोधी, हिन्दू विरोधी, देश विरोधी गति विधियों को बढ़ावा देना इनका काफी पुराना अभ्यास है। आजकल इस तरह के अभ्यास का प्रायोगिक उदाहरण कर्नाटक राज्य में होने वाली हिन्दुओं एवं जैन साधु की हत्या तथा मणिपुर में होने वाले उत्पात हैं।
गाहे-बगाहे विभिन्न समुदायों को एक-दूसरे के खिलाफ उकसा कर, गैर बीजेपी राज्य में निशाना बना, जान-माल विहीन करना, पलायन के लिए कश्मीरी पंडितों की तरह मजबूर करना कोंग्रेसी पालित गुंडों का प्रिय सगल बन गया है। यहाँ बंगाल की चर्चा व्यर्थ है क्यों कि वहाँ डण्डेबाजी, पत्थरबाजी, आगजनी पुराने हथियार हो गए हैं, आजकल वहाँ बॉम्ब, जेलेटिन की छड़ें, आधुनिक हथियारों की बहुतायत है जो वहाँ की ममतामयी देवी के कृपाप्राप्त तस्करों के मार्फ़त आयातित होते रहते हैं एवं टी. एम्. सी. विरोधियों के खिलाफ दीपावली की पटाखों की तरह इस्तेमाल किये जाते हैं। कहने की जरुरत नहीं है कि टी. एम. सी के नेताओं का टाँका बंगलादेशी घुसपैठियों एवं रोहिंग्याओं के साथ मजबूती से सिला है इसीलिए जो कोई भी इस गुप्त सिलाई को उधेरने की कोशिस करते हैं वे बिना चेतावनी के ही स्वर्गगामी हो जाते हैं।
मौत का खेला किसी डायन को आनंद देता है; यह सिर्फ किस्से कहानियों में ही नहीं होता है, इसका प्रत्यक्ष दर्शन बंगाल में किया जा सकता है। केरला स्टोरी यहाँ पर्दे पर नहीं, प्रत्यक्ष दिखाई जाती है। यहाँ की सरकार के निर्देशानुसार पुलिस प्रशासन भी शांति का ओढ़ना ओढ़, चुप्पी साधे बेबस नागरिकों पर होते जुर्म के खेल को देखती रहती है।जुर्म के विरुद्ध आवाज उठाने वालों के वस्त्रों के साथ शरीर के धागों को भी उधेरने का काम ममता दर्जिन दीदी द्वारा अपने आकाओं को खुश रखने के लिए किया जाता है। यदि वह ऐसा नहीं करेगी तो उनका भी बखिया उन्हीं हथियारों से उनके आकाओं द्वारा उधेड़ा जा सकता है जिन्हें आयातित करके ममतामयी का ह्रदय आतंकीयों के लिए उदारवादी बना हुआ है।
"देश बना है आज अखाड़ा ,नेताओं ने गुण्डा पाला।
जनता भेड़ -बकरियों जैसे,हत्यारों के बने निवाला।
राजस्थान ,बंगाल ,बिहार,झारखण्ड या मणिपुर हो,
महिलाओं को ढाल बना कर,दंगे आगजनी उकसा कर,
देश विरोधी तस्कर गुण्डे मकसद में हो रहे सफल हैं।"