समस्या नूपुर की या सभी की?
हदीस के मुताबिक तथा कई मौलानाओं के वक्त्व में भी इस बात का जिक्र है कि मोहम्मद जिसे मुस्लिम पैगम्बर कहते हैं, उसने छः साल की आयशा से निकाह किया तथा नौ साल में रुखसती की I इसमें कोई आश्चर्य नहीं है क्यों कि उस समय के अरब समाज में ये सामान्यतः होते थे।अरब ही नहीं ज्यादातर देशों में लड़कियों और पुरुषों की उम्र का असामान्य अंतर रहने के बावजूद कोई सवाल नहीं उठाता था। आज भी पुरुषप्रधान मानसिकता से ग्रस्त विभिन्न देश में स्त्री तथा कन्या सुरक्षा के लिए कई कानून बनाये जाने के बावजूद अप्रत्यक्ष और चोरी-छुपे स्त्रियों एवं कन्याओं को मात्र भोग्य की वस्तुओं की तरह ही समझा जाता है। यदि ऐसा नहीं होता तो किसी भी देश में 'रेड लाइट एरिया' या देह व्यापार में संलग्न स्त्रियों या कन्याओं का मिलना असंभव ही था।
अरब देशों में अमीर गरीब सभी अपने हरम में अनेक स्त्रियों को रखना फैशन समझते हैं इसलिए भारत के हैदराबाद से भी अनेक लड़कियों को कुछ पैसों के एवज में उनके मुस्लिम माता-पिता अरबदेशों के बड़े उम्र के अमीरों को बेच देते हैं। ईरान में तो गोद ली गयी पुत्री से विवाह करने की संवैधानिक इजाजत है जिसकी बहुत से वैचारिक दृष्टि से उन्नत देशों ने काफी भर्त्सना की है। अरब देशों के लोगों के लिए इस्लाम के नाम पर अनेकानेक अनैतिक कार्य सहज ही स्वीकृत है क्यों कि उनका मझहब उन्हें यही सिखाता है। किसी भी देश में कभी भी यदि कुरान या मुहम्मद जिसे इस्लामिस्ट अपना पैगम्बर मानते हैं, उसके द्वारा किये गए कुकर्मों पर सवाल उठाया जाता है तो ये जिहादी इस्लामी 'ईश निंदा' के नाम पर अराजकता, आगजनी, हत्याएँ, तोड़-फोड़ कर अशान्ति फैलाते हैं। इन इस्लामी मज़हबियों की अपराधी मानसिकता का विकसित होना स्वाभाविक ही है क्योंकि इन्हें बचपन से कुरान की तालीम द्वारा अन्य धर्मों के लोगों को कुफ्र कहके उनके प्रति घृणा का पाठ पढ़ाया जाता है।
विचार से देखें तो भेड़ और भेड़ियों की जमातों के मज़हबियों के लिए वस्तुतः कुरान से अलग कुछ भी सोचने की इजाजत ही नहीं है। मानसिक रूप से विकृति के शिकार ये जमाती कुरान का विश्लेषण करने, अन्य धर्मों का अध्ययन कर, धर्म-अधर्म का तुलनात्मक अध्ययन कर, स्वयँ के आत्मिक उन्नयन करने की भी कोई कोशिश नहीं करते हैं। मज़हबी तालीम देने वाले तालिबानी भी इन्हें तर्कपूर्ण ढँग से कुछ सोचने की कोई इजाजत नहीं देता है। ऐसा लगता है कि भेड़ियों, लोमड़ों या लकड़बग्घों के ऐसे जमाती समूह हैं, जिन्हें स्वयँ का दिमाग इस्तेमाल करने की कोशिश से भी भयानक जिहादी राक्षसों द्वारा चबाये जाने का ही डर रहता है।
विभिन्न धर्मिक पुस्तकें एवं उसमें निहित मानवीयता के प्रति उद्दात्त विचारों को पढ़ने और समझने के बाद ऐसा महसूस होता है कि जिस डेविल,शैतान,दानव, राक्षसों की चर्चा धर्म ग्रंथों में की गई है वे सारे शैतानी, दानवी, डेविल और राक्षसी प्रवृतियाँ इन इस्लामियों में कूट-कूट कर भरी हुई हैं। परन्तु चोर को चोर कहो,या डाकू को डाकू तो उसे भी बुरा लगता ही है इसीलिए वे अपने पाप भरे अधर्मी कारनामों को बेपर्द होने से बचाने के लिए समाज के सत्यप्रिय, शान्ति प्रिय समुदाय को धमकाने,मारपीट एवँ आगजनी कर डराने में लग जाते हैं। सत्यम, शिवम,सुन्दरम के प्रतीक आदिदेव शिव के प्रति अभद्र टिप्पणियों के प्रति नूपुर का कथन तो स्वाभाविक आक्रोश है। नूपुर के कहने का ढँग भले ही अरुचिकर हो परन्तु यह तथ्य असत्य नहीं है।
कई मौलानाओं की जुबान से भी आइसा के निकाह और रुखसती के उम्र की चर्चा मीडिया में मौजूद है। आज के सामाजिक संदर्भ में प्रगतिशील मानसिकता के पढ़े-लिखे मुसलमानों के लिए भी नूपुर द्वारा उद्धरित वक्त्व अनुचित नहीं हैं। सामान्यतः कोई भी परिवार चाहे वह मुस्लिम ही क्यों न हो, वर्तमान समय में अपनी छः साल की पुत्री का निकाह पचपन के उम्र के मर्द के साथ करना पसन्द नहीं करेंगे। फिर क्या कारण है कि नूपुर के सच्चाई भरे वक्त्व को ईश निंदा का नाम देकर सभी जगहों पर आगजनी तोड़-फोड़ और दंगे भड़काए गये हैं? वस्तुतःभारतदेश-विरोधी एवं हिन्दू-विरोधी कारनामों में लिप्त देशद्रोहियों के नकाब का हटाया जाना ,छद्मवेशी धर्म-निरपेक्षता का बेपर्द होना ही उत्पात और आगजनी का मूल कारण है। नूपुर का सौ प्रतिशत सत्य वक्त्व तो मात्र एक बहाना है।
आज के शैक्षणिक एवं वैचारिक दृष्टि से विकसित ज्यादातर देशों में नाबालिग से वैवाहिक संबंध भी बलात्कार के रूप में माना जाता है,यहाँ तक कि जंगली जानवर भी परिपक्वता तक इंतज़ार करते हैं। (यद्यपि पाकिस्तान, अफगानिस्तान या अन्य इस्लामिक देशों में आज भी स्त्रियाँ भोग्या के रूप में ही हरम में अनेकानेक संख्याओं में रखी जाती है जहाँ नैतिकता, स्त्री-सम्मान और मानवाधिकार कोई अर्थ नहीं रखता है ) I ईश निंदा या हंगामा मचाने वाले मज़हबियों के लिए पाप और बर्बरता से भरे युद्धनीति को धर्म कहना और एक पापी को ईश्वर का संदेश वाहक कहना अधर्म और राक्षसी प्रवृत्ति से परिपूर्ण शैतानी संस्कृति की वकालत करना है। तलवार द्वारा बर्बरता फैलाने वाले,जबरन कलमा पढ़वाने वाले मज़हबियों को इंसान कहना भी अनुचित ही है।
इस्लाम किसी भी गणतांत्रिक शांतिपूर्ण धर्म एवं देशों के लिए लाइलाज मवादयुक्त बदबूदार कोढ़ या पीड़ा दायक कैंसर से घातक बीमारी की तरह है। अपने कट्टरपंथी क्रूर पापी कुकृत्यों के कारण ये जिहादी इस्लामिक समूह या उसके समर्थक समूची दुनियाँ में बदनाम और घृणा के पात्र बने हुए हैं। इस्लामोफोबिया, ईश-निंदा या अल्पसंख्यक-प्रताड़ना का नाम दे कर अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय से मुफ्त की सुविधाएँ एवं सहानुभूति बटोरने वाले इन जिहादियों को क्या दुनियाँ पहचान नहीं रही है ? हँसी आती है ये सोचकर कि क्या अन्तर्राष्ट्रीय ग़ैरइस्लामियों के समुदायों को भी यह नहीं दिखाई दे रहा है कि इन जिहादी जाहिल इस्लामी भेड़ियों के कारण संसार काफ़िरोफोबिया का शिकार हो रहा है?
यद्यपि बोलने या नहीं बोलने से इस्लाम और कुरान में निहित बुराइयों से मुँह नहीं मोड़ा जा सकता है। ग़ैरइस्लामियों को जानना जरूरी है कि दुनियाँ का सबसे ज्यादा क्रूर,पापपूर्ण, विध्वंसात्मक, ढोंग पर आधारित तथा जिहादी आतंकवादियों के विभिन्न समूहों का जन्मदाता भी कुरान और इस्लाम ही है। प्रामाणिक तौर पर पुराणों में वर्णित राक्षसी संस्कृति और पापियों के वृत्तियों का वर्णन हू बहू वही है, जो कुरान में इन जिहादी इस्लामी मज़हबियों को कुरान के तालीम द्वारा सिखाया जाता है एवं उन्हें आँख मूंद कर भेड़ों-भेड़ियों-लकड़बग्घों की तरह अनुकरण करने के लिए प्रेरित किया जाता है।
नाइजीरिया, इराक, सीरिया, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, सूडान या इजरायल के पड़ोसी फिलिस्तीन के अलावा भारत और यूरोपीय देश भी इस्लाम में निहित गन्दगी, बर्बरता,पत्थर बाजी,भीड़तंत्र और झूठतंत्र से प्रताड़ित हो रहे हैं। चिंताजनक है कि निजी स्वार्थवश विश्व के बड़े-बड़े नेता भी समूची दुनियाँ में छाई हुई आक्रान्तक अशांति के मूल कारण को नज़र अंदाज़ करते हुए चेतना शून्य सी बनी हुई है। इस क्रूर जिहादी मझहब का तिरस्कार दुनियाँ में मानवता तथा मानवतावादी मूल्यों की रक्षा के लिए अति आवश्यक है। क्या सभी जगहों पर जिहादी राक्षसों का वर्चस्व कायम हो जाएगा तभी विश्व के नेताओं की नींद टूटेगी?