पलायन छोड़ो, आत्मरक्षा में बन्दूक उठाओ
पिछले कई महीनें से कश्मीर घाटी में हिन्दुओं-पंडितों का क़त्ल कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है।यह वहाँ के कट्टरवादियों का जिहाद ही है जिसके तहत वे मोदी सरकार द्वारा चलाए जा रहे कश्मीरियों के पुनर्वास को चुनौती दे रहे हैं।वे नहीं चाहते कि उन्होंने जिन्हें मौत के डर से घाटी से भगा दिया था वे पुनः घाटी में वापस आकर अधिकार पूर्वक रह सकें।अतः जिहादियों ने फिर डर का माहौल शुरू किया है जिससे कुछ लोग फिर से पलायन करने पर मजबूर हो रहे हैं।कश्मीरी पंडित वहाँ पिछले लगभग १० महीनें से धरनें पर बैठे हैं कि उन्हें घाटी से विस्थापित किया जाए। एकजुट होकर कट्टरवादियों के खिलाफ कोई भी कदम उठाने से वे कतरा रहे हैं।
आखिर कश्मीरी पंडितों की दुर्दशा का दोषी कौन ? पाकिस्तानी आतंकी,कट्टरवादी कश्मीरी मुसलमान, कश्मीर में चल रहा इस्लामी जिहाद, भारत सरकार, स्वयं कश्मीरी पंडित या फिर देश के उदासीन हिन्दू राजनीति एवं संगठन ? अपने ह्रदय पर हाथ रख कर जवाब दें तो इनमें से सब दोषी हैं।आइए इसकी संक्षिप्त विवेचना करें।
कश्मीरी पंडितों की दुर्दशा सबसे पहले कट्टरवादी कश्मीरी मुसलमानों द्वारा ही शुरू की गयी थी। सं १८१९ में पंडितों का नरसंहार चरम पर था जब उन्होंने सिख गुरु की सहायता माँगी और क्रूर मुसलमान शासक को हराकर सत्ता अपने हाथ में लेकर कश्मीरी पंडितों को बचाया। बाद में सं १८४६ में सत्ता डोगरा राजा के हाथ दी गयी जब वहाँ के मुसलमानों पर कुछ ज्यादती भी हुई थी। फिर सं १९३१ में शेख अब्दुल्ला ने 'मुस्लिम कॉन्फ्रेंस' की स्थापना कर कट्टरवादी मुसलमानों के द्वारा पंडितों, हिन्दुओं को प्रताड़ित करना पुनः शुरू कर दिया। महाराजा हरि सिंह ने 'ग्लांसी कमीशन' बिठाया जिन्होंने मुसलमानों के लिए सरकारी नौकरी में आरक्षण की पेशकश की। इससे वहाँ के हिन्दू उद्वेलित थे और अपने लिए "रोटी आंदोलन' कश्मीरी पंडित युवक सभा के अंतर्गत शुरू किया। कश्मीरी पंडित और वहाँ के कट्टरवादी मुसलमानों के बीच मतान्तर तथा संघर्ष तभी से चला आ रहा है।
१९४७ में आजादी के बाद पाकिस्तान द्वारा आक्रमण में वहाँ के कबीली मुसलमानों ने सीमावर्ती व पकिस्तान अधिग्रहित इलाकों में पंडितों के जान व अस्मिता पर अनेकों जुल्म ढाए। कश्मीर का भारत में विलय के बाद उनपर जुल्म बंद तो हुए लेकिन उन्हें अपनी सुरक्षा को लेकर सदैव से चिंताएँ रहीं। सं ८० के दशक में जब पाकिस्तान में अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान में रूस से लड़ने के लिए जिहादी संगठनों की स्थापना होने लगी, उसका एक तबका कश्मीर में भी उत्पात मचाने लगा जिसमें भारतीय सैनिक पर 'ऑपरेशन टोपाज़' के तहत छिटपुट आक्रमण और पंडितों को प्रताड़ित करना शामिल था। इन पाकिस्तानी आतंकियों को कश्मीरी अतिवादियों का सहयोग मिलता था।उधर एकमात्र कश्मीरी हिन्दू राजनैतिक 'पैंथर पार्टी' कांग्रेस के छद्म धर्मनिरपेक्ष से प्रभावित थे और उनहोंने भारत के हिन्दू संगठनों से सहायता लेना वाजिब नहीं समझा।उधर कश्मीरी कट्टरवादियों ने JKLF बनाकर अपना आतंक इतना बढ़ाया कि पंडितों के खिलाफ "रॉलिव सालिव या ग़ालिब का खौफ बनाकर उन्हें १९९० में मार काट मचाकर वहाँ से भागने पर मजबूर कर दिया। नवनामित राज्य्पाल जगमोहन सिर्फ इतना कर पाए कि पंडितों को अपनी अस्मिता बचाकर भागने में सहायता की (पढ़ें ‘कश्मीर में जिहाद व हिन्दू प्रताड़ना’, https://articles.thecounterviews.com/articles/kashmir-jihad-atrocities-on-hindu/; ‘Looking back at Ralive, Tsalive ya Galive: 1990 Genocide of Kashmiri Pandits’ https://articles.thecounterviews.com/articles/ralive-tsalive-ya-galive-january-1990-genocide-kashmiri-pandits/) । कश्मीर के कट्टरवादियों एवं जिहादियों ने पिछले ५० सालों में वहाँ ऐसे हालात बना दिए हैं कि वहाँ के ही मूल निवासी पंडित लगभग समाप्ति के कगार पर हैं।अगर अपने ही देश भारत ने उनकी सहायता नहीं की तो वे डार्विन के सिद्धांत के अनुसार समाप्त हो जाएंगे (पढ़ें‘Social Darwinism, Islam and Kashmir-1990 & Now’, https://articles.thecounterviews.com/articles/social-darwinism-islam-kashmir-1990-now/) ।
अन्य छद्म धर्मनिरपेक्ष राजनितिक दल व कोंग्रेसी विचारधारा वाले राजा कर्ण सिंह ने भी उनकी कोई सहायता नहीं की।कश्मीर में एक ऐसा इस्लामी जिहाद शुरू हो गया जिसमें पाकिस्तानी आतंकवादी समर्थित स्थानीय कट्टरवादी मुसलमान भी साथ होते गए। जिहाद संचालन के लिए अतिवादी मानसिकता वाले वहाँ के मुसलमान, अलगाववाद सिखाने के लिए वहाँ के अधिकाँश मस्जिदों के मुल्ले - मौलवी, देश विदेश से अंतर्राष्ट्रीय जिहाद संगठनों से धन का आना व पाकिस्तान, चीन से हथियार मिलने लगे। आज के दिन कश्मीर में पाकिस्तानी आतंकवाद के अलावे वहीं के अतिवादी मुसलमानों तथा मस्जिदों द्वारा जिहाद भी चलाया जा रहा है जिसे जानते हुए भी भारत सरकार मानने से हिचकिचा रही है। पिछले कुछ दशकों में वहाँ निम्नलिखित आतंकी और जिहादी संगठनों का भरमार हो गया है।
पंडितों का खुलकर साथ देने न कोई हिन्दू संगठन आया और न ही कोई राजनैतिक दल । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का कश्मीर में कोई वजूद नहीं है। उन्हें तलवार और बन्दूक उठाना नहीं आता कि जिहादियों का संहार कर सके।उन पंडितों, हिन्दुओं की भगौड़ा प्रवृत्ति तब भी थी और आज भी है। उनमें अपनी रक्षा-सुरक्षा के लिए आत्मशक्ति न तब थी न आज है। वे इतना भी नहीं समझ पाते कि कश्मीर घाटी से भाग कर जम्मू प्रांत तो चले जाएंगे लेकिन वहाँ की बढ़ती मुस्लिम कट्टरवाद से त्रस्त फिर और कहाँ-कहाँ भागते फिरेंगे ? उन्हें संगठित करने वाला कोई नहीं कि वे एकजुट खड़े होकर रह सकें। वे अपनी सुरक्षा के लिए सरकार को वाध्य करें कि या तो उन्हें ‘अचूक सुरक्षा’ प्रदान की जाए या फिर कश्मीर में रह रहे उन सारे पंडितों को बंदूकें व उसे चलाने की प्रशिक्षण दी जाए जैसा कि जम्मू के सीमावर्ती नागरिकों को पाकिस्तानी आतंकियों से अपनी सुरक्षा के लिए दिया गया है।
कश्मीर उन पंडितों-हिन्दुओं की जन्मभूमि है और कर्मभूमि भी । उनके पुरखों की जमीन जायदाद को आज उन्हीं के रहमोकरम पर बसाए गए मुसलमान या तो कब्जा कर बैठे हैं या कौड़ी के दाम खरीद कर हथियाते जा रहे हैं। मुट्ठी भर जिहादियों से डर कर वे कहाँ-कहाँ भटकते रहेंगे ? उन्हें एकजुट होकर एक ऐसा मुट्ठी बनना पडेगा जो उन कायर आतंकियों पर सक्षम प्रहार कर सके। काश्मिरी जिहादियों को काटना ही पडेगा चाहे वहाँ की सरकार उसे काटे या फिर पंडित स्वयं इस पुनीत कार्य को अपने हाथों में लें। कश्मीर की सरकार-सत्ता सदैव वहाँ के मुसलमानों के हाथों में रही है वे चाहे जिस भी राजनैतिक दल के रहे हों। उन नेताओं की कभी भी यह मनसा नहीं रही कि इस्लामी आतंकवाद को ख़त्म किया जाए। वे चाहते हैं कश्मीर अशांत बना रहे। वहाँ की सरकार ने कभी यह माना है कि वहाँ जिहाद चल रहा है और न ही वे कभी खुलकर पंडितों के साथ रहे हैं। धारा ३७० हटाने के बाद मोदी सराकर द्वारा कुछ पहल अवश्य की जा रही है जो अपर्याप्त है।इसीलिए घाटी में लाए गए कुछ पंडित भय के माहौल में फिर से पलायन के लिए वाध्य हो रहे हैं।
हिन्दुओं को परजीवी के तरह खा रहे अधिकाँश राजनैतिक दल चाहे कांग्रेस, कम्युनिस्ट, राजद, समाजवादी, तृणमूल, या और कोई दल हो, वे हमेशा हिन्दुओं या हिन्दू हितों के प्रति उदासीन रहे हैं। मुस्लिम दलों को तो मानो हिन्दुओं के तिरस्कार करने का लाइसेंस ही मिला हो। इसीलिए कट्टरवादी मुसलमान आज जम्मू कश्मीर ही नहीं अपितु पूरे भारतवर्ष में जिहाद की ओर अग्रसर हैं। इन दलों से हिन्दुओं की सहायता की कोई उम्मीद नहीं की जा सकती। वैसे लांछना लगाने के लिए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हिन्दुओं व उनके संगठनों को तालिबानी या ISIS के समकक्ष मानते हैं वो चाहे सलमान खुर्शीद हो, शशि थरूर, डिग्गी सिंह हो या स्वयं राहुल गांधी। हिंदुत्व, जो हिन्दुओं की जीवन शैली है, उन्हें इस्लामी आतंकियों जैसा लगता है। तो फिर ये हिन्दू संगठन भी तालिबानी जैसा अस्त्र-शस्त्र क्यों नहीं उठाते और हिन्दू व हिन्दू संगठनों पर आघात करने वालों पर प्रतिघात क्यों नहीं करते ?आज भारत में बीजेपी के अलावे सभी राजनैतिक दल हिन्दुओं को सस्ते व ओछे में ले रही है क्योंकि हिन्दुओं का अनहित चाहनें व करने के बावजूद भी उन्हें हर मतदान में हिन्दुओं के जनमत मिल जाया करते हैं।अपने आप को हिन्दुओं के संरक्षक कहने वाले बालासाहब ठाकरे के पुत्र उद्धव ठाकरे भी आज सोनियाँ गांधी के साये में मुँह छुपाकर दम साधे बैठे हैं। मुसलमान-वोट पाने की उन सबों में इतनी लौलुपता है कि वे कितने भी नीचे गिरने के लिए तैयार हैं।
जो लोग १९९० या उसके बाद घाटी से पलायन किए वे आज तक देश के विभिन्न शहरों में अपने जड़ से अलग, विस्थापितों का जीवन व्यतीत कर रहे हैं।आज आवश्यकता है उनमें इक्षा-शक्ति लाने की जिससे वे सब एक होकर अधिकार पूर्वक अपने बाप दादों की जमीन कश्मीर में रह सकें। इसमें कोई शक नहीं कि वहाँ की क़ानून व्यवस्था जिस भी हाल में हो, मदद के लिए तो साथ होगी ही। पलायन उनके लिए कोई विकल्प नहीं।आवश्यकता पड़ने पर उन्हें अपनी सुरक्षा के लिए बन्दूक उठाना ही होगा और यही आज के सरकार की जिम्मेवारी होती है कि उनके हाथों में बंदूकें देकर उन्हें सशक्त बनाए ताकि समय पड़ने पर वे जिहादियों के खिलाफ स्वयं एवं स्वजनों का आत्मरक्षा कर सके।