Dark period in Bihar politics

बिहार के गड़ेरिये, भेड़ एवं लकड़बग्घे

पूरे भारत में बिहार को पिछड़ा राज्य की तरह देखा जाना शायद प्रत्येक राजनेताओं की आदतों में शुमार हैं; परन्तु क्यों,जबकि बिहारी अन्य किसी भी राज्य में सबसे मेहनतकश होते हैं। आत्माभिमान उनमें स्वाभाविक रूप से कूट-कूट कर भरा हुआ है जो उन्हें गलत सिध्दांतों या दोहरीकरण की घटिया व्यवहार के विरुद्ध आवाज उठाने की स्वतः प्रेरणा देता है। गौरवशाली इतिहास, समृद्ध विरासत, अत्यंत उपजाऊ भूमि, नदियों की बहुलता के साथ ही अकूत प्राकृतिक संपदाओं का स्वामी बिहार कभी सही राजनेताओं के नेतृत्व में नहीं रह पायी है। भौगोलिक दृष्टिकोण से भी इसकी सीमाओं में घुसपैठयों का आना आसान हो गया है इसके पीछे बिहारियों की स्वीकार-भावनाओं का भी हाथ है, जिन्होंने बांग्लादेश के मुसलमानों और बंगालियों को भी रहने की जगह देने में आनाकानी नहीं की। बिहार के मूल निवासियों की सुरक्षा एवं विकास का ज्यादातर कार्य सरकार के ही भरोसे छोड़ दिया।

नेताओं का चुनाव भी एक ऐसी मजबूरी होती है कि बड़े गुण्डे को चुना जाए या छोटे गुण्डे को,एक ओर कुँआ तो दूसरी ओर खंदस में फँसे बिहारियों के बिखरे वोटों के परिणाम स्वरूप आज बिहार में अनपढ़ों का राज है जबकि बिहारी मूल के आई ए एस, आई पी एस, डॉक्टर, इंजीनियर मेहनतकश मजदूर,सज्जन एवं मेधावी व्यक्तियों को अन्य राज्यों में जाकर रोजी-रोटी कमाना पड़ रहा है।

लालू के राज में सवर्णों, सुशिक्षितों का वहाँ रहना मुश्किल तो था ही,आज भी लालू बेटों तथा अनेक अपराधी मानसिकता वाले जिहादी मुस्लिम नेताओं के कारण, वहाँ के हालत कुछ अच्छे नहीं हैं। तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले नेताओं ने घुसपैठियों और मुसलमानों को वोट के लालच में लगभग सभी इलाकों में जहाँ-तहाँ बस जाने की छूट दे दी है परिणामस्वरूप निहत्थे हिन्दुओं को जब-तब उग्रवादियों एवं जिहादियों का शिकार हो जाना पड़ता है। सुशासन की नीति पर चलने वाले नीतीश भी हिन्दुओं को सुरक्षित वातावरण नहीं दे पा रहे हैं। लालू के चिराग तो खैर ! कुछ कहना ही बेकार है। इन्हें शायद मुसलमान गुंडों को सर आँखों पर बिठाकर रखने में हिन्दुओं की ही हत्याएँ होते देखने में हिन्दुओं के त्योहारों पर दंगे-फसाद होते देखने में ही आनंद आता है। कांवड़ यात्रा एवँ नाग पंचमी से आरम्भ होने वाले विभिन्न त्योहारों पर कोंग्रेसी एवं अन्य वामपंथी धर्मनिरपेक्षता का ढोंग करने वाले नेताओं के विषैले बोल सामने आने आरम्भ हो गए हैं। कांवड़-यात्रा पर किताब उठाने सलाह देने वाले नेता! पत्थर बाजों, हज यात्रियों को किताब पढ़ने की सलाह देना भूल जाते हैं।

सनातनियों की समृद्ध संस्कृति का अनादर करने वाले नेताओं को ये याद ही नहीं रहता है कि इस्लाम अधर्म और राक्षसी संस्कृति का प्रवर्तक है जिसके कारण समूची दुनियाँ अस्थिर और अशान्त है। धोखाधड़ी, हत्या, बलात्कार, ग़ैरइस्लामियों को कुफ्र कह उन्हें लूटने-मारने की वकालत करने वाला इस्लाम कभी किसी देश को शांत, सुरक्षित, सुसंस्कृत नहीं देख सकता है। कारण स्पष्ट है ! क्योंकि इनका (इस्लाम मज़हब) प्रवर्तक ही दानवी प्रवृत्तियों से परिपूर्ण महाराक्षस और हत्यारा था। आज बिहार इस्लामी राक्षसों के कारण तथा उन्हें पालने वाले दोगले नेताओं के कारण समृद्ध, सुसंस्कृत एवं गरीब सवर्णों के लिये अत्यंत असुरक्षित हो गया है। विकास की प्रक्रिया की सुविधाएं भी वहाँ की बढ़ती मुस्लिम आबादी के कारण हिन्दुओं को नहीं मिल पाती है। सरकार बिहार में खास कर गरीब सवर्णों को सुरक्षित वातावरण नहीं दे पा रही है।

आये दिनों कभी कोचिंग सेंटर चलाने वाले ,कभी हिन्दुविरोधी नेता, थोड़े पैसों का लोभ देकर युवाओं को भड़का देते हैं और उन्हें दंगे-फसाद, आगजनी करने में लगा देते हैं। किसी भी फसाद में हिन्दुओं को निशाने पर ला कर,उन्हें लूटा, भगाया,या उनके घरों और संपत्तियों को जलाया जाता है। ऐसे मामले में स्थानीय सरकारें शिकायत दर्ज कराए जाने पर भी न्याय दिलाने में असमर्थ रहते हैं। उदासीनता दिखाते हैं। आतंकवादी, जिहादी मुसलमानों के कारण पलायन जैसे हिन्दुओं के भाग्य में पक्की जगह बना चुका है। ऐसी स्थिति में हिन्दू जो संसार में अल्पसंख्यक हो गए हैं अंततः कहाँ जाएँगे?

निरन्तर हथियार सज्जित जिहादियों और आतंकवादियों के हाथों हिन्दुओं की खत्म होती जिंदगी क्या विश्व समुदाय के लिए कोई मायने नहीं रखती है? मुसलमानों के लिए मानवाधिकार की बातें करने वालों के लिए क्या ग़ैरइस्लामियों तथा अन्य समुदायों की जिंदगी कोई मायने नहीं रखती है? बिहार में हिन्दुओं के लिए नेता गड़ेरिये तथा मुस्लिम भेड़िये-लकड़बग्घे की तरह हैं जो निरन्तर इन्हें बेचारगी एवँ मौत की ओर धकेलते हुए सशक्त होते जा रहे हैं। भगवान ही इन निहत्थे एवं पलायन वादी प्रवृति के हिन्दुओं की रक्षा करें,सरकार तो सिर्फ स्वार्थ साधने में लगी हुई है।

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