बाजे झुनझुना
नाम के संदर्भ में आम आदमी पार्टी (आ आ प) संक्षिप्त में (आप) ऐसा लगता है कि ये आपकी अपनी पार्टी है। अपनी ईमानदारी का दावा करने वाले इस आफत पार्टी के गुरु आई.आई.टी उत्पाद गुप्त-शातिर उत्पात के पर्याय ही हैं। अपने तेज दिमाग का इस्तेमाल गलत एवं मुख्य रूप से देश विरोधी कारनामों को उत्प्रेरित करने में लगा कर, ये भी भटके हुए नौजवान की ही तरह भटके हुए प्रौढ़ की श्रेणी में आ गये हैं। इनकी पार्टी के कारनामों को देख-सुन कर लगता है कि ये देशविरोधी मानसिकता रखने वाली किसी विदेशी के इशारों पर नाचने वाली पार्टी है। इसके ज्यादातर नेता शातिर सियार की प्रवृत्ति वाले हैं। इस पार्टी के तेजश्वी गुरु सत्ता, पैसा एवं तीव्र गति से सब कुछ हासिल कर लेने की महत्वाकांछा के कारण कई धरनाजीवी एवं आन्दोलन जीवियों के उपकारक बन गए हैं । कांग्रेस के नुमाइन्दों की तरह ये भी तुष्टिकरण, मुफ्त की रेवड़ियाँ, भयादोहन, झूठे वादों के अलावे अपने सहायक एवं सहयोगी नेताओं से भी भष्टाचार कराने में इतने पारंगत एवं तीव्रगामी हो गए कि अपने ही द्वारा खा कर फेंके गए, केले के छिलके पर पाँव रखते ही फिसल गए हैं। अपने पाप भरे कारनामों का कहीं सबूत नहीं छोड़ने के बावजूद ये शातिरता के जाल में अपने नुमाइन्दों को फँसाने के बाद खुद भी उलझे हुए हैं।
" मैं कट्टर ईमानदार हूँ जी, हमारे मनीष सिसोदिया, संजय सिंह, सत्येंद्र जैन के अलावे लगभग बीस 'आ आ प' के नेताओं के समूह जो फ़िलहाल जेल में मौजूद हैं, वे भी मेरे ऐसे ही ईमानदार हैं जी। सिसोदिया के तो लॉकर में भी झुनझुना ही मिला जी।"....... तो अब प्रवर्तन निदेशालय क्या करे ? अब प्रवर्तन निदेशालय "आप" की पार्टी का झुनझुना बजा रहे हैं। जनसम्पर्क साधनों का उपयोग व्यक्तिगत फायदे के लिए टैक्सपेयर के पैसों से करने में इस कट्टर ईमानदार महोदय ने तो देश के सभी नेताओं को अपने पीछे छोड़ दिया है। फ़िलहाल इनका प्रत्येक टी. वी. चैनल पर प्रति पाँच मिनट में प्रकट होने का सिलसिला बंद होने के कारण आम जनता राहत महसूस कर रही है।
महुआ के फूल खुशबूदार होते हैं, अपने विशेष खुशबू के कारण ये भौरों के आकर्षण का कारण बनती हैं । इसका देशी ठर्रा इतना नशीला होता है कि जो लोग उसे पीते हैं, वे इसे पीते ही टुन्न हो जाते हैं, जिसे इसकी लत लगी फिर उसका नशे से मुक्त होना कठिन होता है। मनुष्य नशे की लत में महुआ के ठर्रे के लिए उचित अनुचित कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं। ऐसे तो महुआ के वृक्ष ,पत्ते, फूलों के किस्से बहुत से हैं लेकिन महुआ मोइत्रा की कहानी कुछ ज्यादा रोचक है। उनकी अदाएँ, संसद में उनके बोलने का अंदाज या प्रश्न पूछने के एवज में किसी को लूटने, वसूली करने या भयादोहन करने के तरीकों पर तो निश्चित ही अनुसंधान किया जाना चाहिए। जोर-जोर से अपनी झनकती आवाज में प्रश्नों की झड़ी लगाने वाली सांसद फिलहाल संसद सत्र से बहिष्कृत किये जाने के कारण झुंझला रही हैं एवं उनके समर्थक भी झुनझुन कर रहे हैं।
भारत तोड़ो, केरोसिन छिड़को, सनातन धर्म एवं हिन्दुओं को रौंदो के सन्दर्भ को अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर प्रोत्साहित करने की भावनाओं से ओतप्रोत हमारे खानदानी शहजादे, नेहरू-खान-माइनो के वंशज "राउल विन्ची" कर्णाटक में कोंग्रेस की जीत से इतने उन्मादित हो गए कि सारे भ्रष्टाचारियों को इकठ्ठा कर ठगबंधन की बेलगाड़ी तैयार कर चुनाव प्रचार में जुट गए हैं। सभी भ्रष्टाचारी एवं विदेशियों के इशारों पर उठक-बैठक करने वाले या बिके हुए नेता एक सुर में बीजेपी, राष्ट्रीय स्वयं सेवी संस्था, प्रजातान्त्रिक व्यवस्था, प्रशासनिक व्यवस्था के अलावे कई मुद्दों पर न्यायिक व्यवस्था एवं मोदी को पानी पी पी कर कोसने में लगे हुए हैं। तीन राज्यों में चुनाव हारने के बाद उन्हें कोसने के लिए एक अतिरिक्त सुर मिल गया है जिसे इ.वी. एम.कहते हैं , इस खटराग से वस्तुतः जो सुर निकल रहा है, वह है- " इतना विनाश म्हारो मैंने ही कियो" परन्तु ये पुराने मंजे हुए कोंग्रेसी उनके घुटे हुए भ्रष्टाचारी नुमाइन्दे एवं उनके मालिक मानाने को तैयार ही नहीं हैं कि ''ई. वी. एम." में कोई गड़बड़ी नहीं है। कॉग्रेस के कर्मों का लेखा-जोखा ख़राब है क्यों की ख़राब इ. वी. एम. का झुनझुना तो पंजाब, हिमाचल, कर्णाटक एवं अन्य गैर-बीजेपी शासित राज्यों को लेकर भी रोया-बजाया जा सकता है। खैर मामूली लोगों के लिए तो राजनीती खट्टे बेर की तरह है, वे सोचते हैं कि वोट देने तक उनके अधिकार सीमित हैं। बहुत से लोग राजनीती से इसलिए भी उदासीन होते हैं क्यों कि लम्बे समय तकलीफों को झेलने के बाद उन्हें विरक्ति हो जाती है। वे नोटा दबाने लगते हैं, कुछ पैसों के लोभ में वोट बेच देते हैं; सोचने लगते हैं कि......"को नृप होहिं हमें क्या हानि, चेरी छाँड़ि होयब की रानी।' फिलहाल हमारे खानदानी शहजादे एवं कांग्रेस के उत्तराधिकारी "राउल विन्ची" उच्चतम न्यायलय से कई बार झिड़कियाँ खाने के बाद झुंझुनाने के बजाय तस्वीरें खिंचवाने में व्यस्त हैं।
नए संसद भवन में बहुत दिनों बाद निर्वाचित वर्तमान सांसदों ने अनुच्छेद तीन सौ सत्तर तथा अन्य विशेषाधिकार के सन्दर्भ में नेहरू, उनके दोस्त शेख अब्दुल्ला एवं उनके दोगले कारनामों का नेहरू-गाँधी-खान के वंसज की उपस्थिति में ही उनका झुनझुना बजाया है। अन्यान्य छिपे सच्चाइयों पर से पर्दा हटने के बाद शायद भारतीयों की, खास कर ठगे हुए हिन्दुओं की आँखें खुल जाए ! प्रजातान्त्रिक व्यवस्था, देश की अखण्डता एवं जनता की सुरक्षा के लिए उन्हें क्या करना है? स्वयं को कैसे मजबूत बनाना है यह भी सोचना है; क्यों कि भारत के हिन्दुओं के लिए एक ही हिन्दू बहुल देश है। यहाँ भी वे कुछ दोगले नेताओं के कारण इस्लाम और ईसाई दोनों के बीच घुन की तरह पिसते हुए किसी तरह अपने सांस्कृतिक परिवेश तथा संस्कृति को बचाने में लगे हैं। हिन्दुओं को अनिवार्य रूप से सोचना होगा कि यदि हिंदुस्तान में भी हिन्दू सुरक्षित नहीं होयेंगे तो वे कहाँ जायेंगे?
इस्लामियों के तो 47 देश हैं ईसाईयों के लगभग 11 लेकिन धर्म के नाम पर बंटवारे के बाद भी हिन्दुओं को अपना हिन्दू राष्ट्र नहीं मिला। इन्हें मिला तो निरन्तर धोखा देने वाले, संविधान में मुस्लिमों के फायदे के लिए अनेकों कानून जोड़ने वाले कोंग्रेसी। मंदिरों के निचोड़ने वाले, ईसाइयत एवं इस्लाम को बढ़ावा एवं सुविधाएं देने वाले कोंग्रेसी! अब भी अगर हिन्दुस्तानियों को खास कर हिन्दुओं को होश न आये तो उन्हें झुनझुना ही मिलेगा बजाने के लिए; जिससे परहेज करना आज की अनिवार्य आवश्यकता है।