कुछ क्षण वेद को
वैदिक ज्ञान एवं सनातन हिन्दू धर्म के जीवन शैली को अपमानित करने का नतीजा, युध्द, प्राकृतिक प्रकोप, मानवाधिकारों का हनन,चरित्रहीनता,अन्ध पाखण्ड धूर्तता का बोल बाला,और भी जाने कितने तरह के पाप दुनियाँ में पसर गए हैं।पेड़ो मैं धागा बाँधना, पत्थर की पूजा,नदियों की पूजा,चूहों,गिलहरी, गरुड़ के अलावे सभी जानवरों को देवी-देवताओं का वाहन बनाना प्रकृति संरक्षण का ऐसा मंत्र ऋषि मुनियों ने आसानी से कर्म काण्ड में समाहित कर दिया था कि प्रकृति अपने आप सुरक्षित रही थी।आधुनिकता की दुहाई देने वाले एवँ विदेशी रिलिजन तथा मजहब ने ज्यों-ज्यों हिन्दुओं के द्वारा अपनाए गए दार्शनिक मंतव्यों को जो वस्तुतः दैनिक क्रिया-कलापों से जुड़े हुए कर्मकाण्ड जैसे थे उसको नकारना शुरू किया, स्वयँ ही गर्त में गिरते चले गए।प्रकृति संरक्षण के लिए अध्ययन करने वाले अगर हिन्दुओं के दर्शन एवं कर्मकाण्ड को अपनाते तो आज रिसर्च की जरूरत ही नहीं होती।सोचती हूँ ऋषि मुनियों ने कितना ज्यादा अनुसंधान किया होगा कि प्रकृति संरक्षण को दैनिक एवं धार्मिक त्यौहारों से बाँध कर मानव हित में सर्वसुलभ ज्ञान को जीवन में अंतरात्मा की गहराई तक उतार दिया था।.......
सूर्यपूजा करते वक्त आदित्य स्त्रोत पढ़ने वाले या दैनिक जीवन में अर्ध्य देते वक्त का मंत्र की गहराई को न समझ पाने के बावजूद भी इसमें प्रदत्त सामान्य ज्ञान को ग्रहण करते हैं। उदाहरण देखें-
ध्येय: सदा सवितृमण्डल ,
केयूरवान कवच कुण्डलवान किरीट,
हारिहिरण्य मय वपुरधृतशंखचक्र,
एहि सूर्य सहस्त्रांसो तेजोराशे जगत्पते,
अनुकम्पयो मा गृहाण अर्घ्य दिवाकरः।
लोग गहराई में न भी समझें तो इस बात से अस्वीकार नहीं कर सकते हैं कि सम्पूर्ण जगत में जीवन की उत्पत्ति का रहस्य सूर्य की तेजोराशि के अंश में निहित है। इसी प्रकार जब हम नवग्रह का मंत्र जपते हैं कि:-
ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरान्तकारी,
भानु, शशि, भूमिसुतो बुद्धश्च,
गुरुश्च,शुक्रो, शनि, राहुकेतवे,
सर्वे ग्रह शान्ति करा भवन्तु।
तो सामान्य रूप से सभी ग्रहों का ज्ञान प्राप्त करते हैं।
इसी प्रकार जब वैवाहिक विधान में अरुंधति तारे को देखते हैं तो इसके संदर्भ में हम ज्ञान पाते हैं कि जिस प्रकार अरुंधति तारे एक दूसरे के चारो ओर चक्कर लगाते रहते हैं, उसी प्रकार पति-पत्नी भी एक दूसरे की प्रदक्षिणा आजीवन करते रहें। अगर ध्यान दिया जाय तो वैवाहिक अनुष्ठान जीवन भर याद रहते हैं, साथ ही हम अरुंधति तारे के रहस्यमय तथ्यज्ञान को जीवन में अपना कर सुखी दाम्पत्य जीवन को प्राप्त करते हैं। इसी प्रकार सप्तऋषियों की कथाओं से हम सप्तसितारों के समूह को पहचान जाते हैं। ध्रुव की तरह अटल होना स्थिति की जड़ता के साथ प्रायोगिक रूप से प्राचीन काल से ही उत्तरदिशा का ज्ञान प्रदान करता है जो पहले जहाजियों को दिशाओं का ज्ञान प्रदान करता है।
नवरात्रि के प्रत्येक श्लोकों में एवँ नव दुर्गा के नौ नारीस्वरूप की पूजा हमें उनकी अवस्थाओं का ज्ञान एवं आदर करना सिखाती है। पौराणिक कर्मकाण्ड एवं प्रकृति पूजा में छिपे तथ्यों को यदि हम हर किसी को समझा पाते तो प्रकृति संरक्षण के लिए आज आंदोलनों एवं आये दिनों सेमिनार करने की आवश्यकता ही नहीं होती। हिन्दूओं के जीवन शैली एवं वेदों में ऐसे अकाट्य तर्क हैं, जिसे समझे बिना प्रगतिशीलता की कल्पना एवं अंधाधुंध प्रद्योगिकी, विकास के नाम पर प्रकृति क्षरण को आगे बढ़ाना, मानवतावादी भावना के विरुद्ध जाना है, जहाँ यह आने वाली पीढ़ी के लिए तकलीफों का अम्बार लायेगी ।अच्छा यही होगा कि प्रगति के साथ-साथ मनुष्य वापस वैदिक विचारों की महानता को आत्मसात कर लोकहित में उसे ग्रहण करने के लिए वैदिक जीवन प्रणाली भी अपनायें,जहाँ 'संतोष ही सच्चा सुख है' को जीवन का आधार माना गया है।