A sinner must be punished

सम्पादकीय: युद्ध ! अधर्म के विरुद्ध

अतीत काल से धर्मयुद्ध का उद्देश्य शान्ति और धर्म की रक्षा के लिए होता आया है। रामायण, महाभारत पुराणों में धर्म एवं अधर्म की व्याख्या, मूल कथा में अंतर्निहित समानांतर लघु कथाओं में बहुत ही सुन्दर शब्दों में वर्णित है। लघु आलेख में जिसका पूर्ण विवरण देना सम्भव नहीं है।

"सिंदूर" सिर्फ लाल रंग नहीं है। नारी की अस्मिता, सम्मान, शक्ति के साथ-साथ पति के विजित रहने का प्रतीक भी है। हिन्दुओं के लिए सनातन धर्म में प्रस्तुत विभिन्न श्लोक लोक कल्याण, जगत कल्याण, प्रकृति एवं विश्व कल्याण की भावना से जुड़ी हुई है। यहाँ स्त्रियों के नव (नौ) रूपों की पूजा की जाती है। व्यभिचारी होना, शस्त्र रहित तथा निरपराधियों की हत्या पाप है। यद्यपि यहां भी विभिन्न मताबलंबी विभिन्न पंथों के अनुयाई हैं लेकिन सभी मूलतः जीवन की सुरक्षा एवं नारी सम्मान से जुड़े हुए हैं।

स्त्रियों का अपहरण, अपमान, मासूमों की हत्या, लूट - पाट, आगजनी निश्चित ही कभी भी किसी धर्म का हिस्सा नहीं हो सकते हैं। अगर किसी भी पंथ, रिलीजन या मजहब का अनुयाई किसी सामाजिक कुकृत्य को अपने मजहब का हिस्सा मानता है तो वह अधर्म या पाप का अनुआई, पापी ही है। अतः अगर स्वयं की अस्मिता की रक्षा के लिए, अधर्म पर चलने वालों तथा उसको बढ़ावा देने वालों को कुचलने के लिए, युद्ध करना पड़े तो यह 'युद्ध' धर्मयुद्ध ही कहलाएगा।

वर्तमान में इजरायली अपनी अस्मिता तथा अपने स्त्रियों के रक्षा हेतु युद्धरत है तो रशिया भी पीड़ितों की रक्षा हेतु युद्ध की चुनौती को स्वीकारता है। भारत ने भी पाकिस्तान की चुनौती को स्वीकार कर उसे समझाया है कि नारी के सम्मान की रक्षा सनातन हिन्दूधर्म में मात्र धर्म ही नहीं बल्कि पुरुषत्व की वचनबद्धता भी है जिसे निभाना प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य है।

सिर्फ मीठे वचनों से, दोस्तों की तरह समझाने से पाकिस्तान कभी समझने वाला या सुधरने वाला नहीं रहा है। भारत पाकिस्तान द्वारा प्रशिक्षित आतंकियों को तथा आतंकवादी हमलों को कई दशकों से झेलता आ रहा है। इन प्रायोजित आतंकी वारदातों के कारण अफगानिस्तान,पाकिस्तान, बांग्लादेश के हिन्दुओं का लगभग सफाया हो चुका है,जो बचे हैं वे भी नरकतुल्य जीवन झेलने के लिए मजबूर हैं। हिंदुस्तान में भी आतंकियों के निशाने पर(जिन्हें हिंदुस्तान के अंदरूनी आतंकियों एवं देश के गद्दारों का साथ भी प्राप्त है) हिंदुस्तान के बहुसंख्यक हिन्दू ही रहे हैं। हिन्दुओं की उदारवादी प्रवृति एवं अलतकिया मुसलमानों को भाई मानने का परिणाम है कि हिन्दुओं को जिहादियों, मुस्लिम दंगाइयों, यहाँ तक अपने पड़ोसी मुसलमानों के द्वारा भी किए जाने वाले अत्याचार का शिकार होना पड़ा है। अपने जान-माल का नुकसान और परिवार जनों की हत्या को देखना कितना दुःखद है यह तो जिसने अपनों को खोया है उन्हें ही पता है। वर्तमान काल में भी हिन्दू विहीन कश्मीर, पश्चिम बंगाल और देश के अनेक राज्यों में किसी न किसी बहाने से की गई हिन्दुओं की हत्या इसका इसका ज्वलंत उदाहरण है।

' पहलगाम हमले' में भी हिन्दुओं की हत्या प्रायोजित ढंग से धर्म परख कर ही पाकिस्तानी एवं स्थानीय आतंकियों द्वारा करवाई गई है। आतंकियों द्वारा दी गई चुनौती सिर्फ मोदी को ही नहीं बल्कि संपूर्ण भारत के हिन्दुओं को दी गई थी। हिन्दुओं की सामूहिक हत्या करने की धमकी को स्वीकार कर जवाबी कार्रवाई करना किसी भी भारतीय नागरिक का कर्तव्य था। परिणाम स्वरूप भारत सरकार एवं सैनिकों द्वारा जो सधा हुआ परिष्कृत कदम पाकिस्तान के आतंकवादी ठिकानों को नष्ट करने के लिए उठाया गया निश्चित ही सराहनीय है। भारत का यह आक्रामक रवैया एवं दो दिनों के अंतराल में युद्ध विराम, हमें रामायण की इन पंक्तियों की भी याद दिलाता है:

तीन दिवस तक पंथ माँगते रघुपति सिन्धु किनारे,

बैठे पढ़ते रहे छंद अनुनय के प्यारे -प्यारे,

उत्तर में जब एक नाद भी उठा नहीं सागर से,

उठी अधीर धधक पौरुष की आग राम के शर से,

सिन्धु देह धर त्राहि-त्राहि करता आ गिरा शरण में,

चरण पूज दासता ग्रहण की बंधा मूढ़ बंधन में।

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